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अनाहारक का जघन्यकाल
शंका- शास्त्राकार त. रा. वा. पृ० १८६ में लिखा है "जिस पर्याय में एक समय जीकर मर जाता है उस पर्याय की अपेक्षा जीव की स्थिति एक समय है" यह कथन कैसे घटित होता है ?
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
समाधान -- यह कथन अनाहारकपर्याय की अपेक्षा से है, क्योंकि एक जीवका अनाहारकपर्याय का जघन्यकाल एक समय है । कहा भी है
"अणाहारा केवचिरं कालादो होंति ॥ १२३॥ जहरी रोगसमओ ॥ १२४॥ | " ( धवल ७।१८५ ) अर्थ- जीव अनाहारक कितने काल तक रहता है ? जघन्य से एक समय तक जीव अनाहारक रहता है ।। २१२, २१३ ।। ( धवल पु० ७ पृ० १८५ )
- जै. ग. 27-3-69 / 1X / सु. शीतलसागर
केवली के तोन समय संबंधी अनाहारता का प्रपंच
शंका -- केवली समुद्घात में तीनसमय तक अनाहारक रहते हैं। अनाहारक रहने का कारण क्या है ? उस समय नोकवर्गणा का क्या होता है, क्योंकि केवली के नोकर्मवगंणा का ही आहार है ?
समाधान- तीन समय तक अर्थात् प्रतर व लोकपूर्ण केवली समुद्घात अवस्था में मात्र कामणिकाययोग रहता है, अतः उन तीन समय तक मात्र कर्मवर्गणा ही प्राती हैं; नोकवर्गणा का ग्रहण नहीं होता इसलिये अनाहारक कहा है । सयोगकेवली के मात्र नोकर्मवर्गरणा का ही आहार होता है, किन्तु तीन समय तक नोकर्मवगंगा नहीं प्राती है, अतः अनाहार कहा है ।
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- जै. सं. 25-9-58/V / ब. बसंतीबाई, हजारीबाग
मरणोपरान्त जीव का ऊपर जाकर मोड़ा लेना श्रावश्यक नहीं
शंका- क्या जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगमन है ? ऐसी दशा में नरक में जाने वाला जीव अथवा ठीक नीचे जाने वाला जीव कितने मोड़े लेता है ? किस जीव को तीन मोड़े लेने पड़ते हैं ?
समाधान - जीव अनादिकाल से कर्मों से बँधा है । यद्यपि जीव का ऊर्ध्वगमन स्वभाव है, किन्तु अनादि कर्मबन्ध के कारण इस ऊर्ध्वगमन स्वभाव का घात ( अभाव ) हो रहा है । ऊर्ध्वगमन स्वभाव जीव का लक्षण नहीं अतः उसके घात से जीव का घात नहीं होता। जीव का लक्षण चेतना है अतः चेतना के अभाव में जीव का अभाव अवश्य हो जावेगा । ऐसी दशा में नरक में जाने वाला जीव बिना मोड़े, एक मोड़ा प्रथवा दो मोड़े लेकर उत्पन्न होता है और ठीक नीचे जाने वाला जीव बिना मोड़े वाली ऋजुगति से उत्पन्न होता है । ऐसा नहीं है कि पहले समय में जीव ठीक ऊपर जावे तत्पश्चात् अन्य दिशा को गमन करे। ऐसा मानने से जो ऊपर तनुवातवलय के अन्त में स्थित एकेन्द्रिय जीव मरण करे और यदि उसका ऊर्ध्वगमन हो तो उसका प्रलोकाकाश में गमन होना चाहिए, किन्तु आगम से विरोध आता है। दूसरे यदि जीव मरण के समय ठीक ऊपर जावे तत्पश्चात् ठीक नीचे या तिर्यदिशा को जावे तो उसको एक समय के लिए अनाहारक रहना होगा किन्तु ठीक नीचे, ऊपर या तिर्यक्
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