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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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असंज्ञी जीवों के मन नहीं होता अतः मनोयोग भी नहीं होता; किन्तु मिध्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय व काययोग बंध के कारण तो सभी असंज्ञी जीवों के होते हैं । अतः उन श्रसंज्ञी जीवों के प्रतिसमय बंध होता रहता है ।
—जै. ग. 11-9-69 / VII / बसन्तकुमार
आहार मार्गरणा
षड्विध श्राहारों के स्वामी
शंका- केवली नोकर्म आहार करते हैं, देव मानसिकआहार करते हैं और नारकीकार्मण आहार करते हैं । ये आहार किस प्रकार के हैं ?
समाधान -- औदारिकादि तीन शरीरों की स्थिति के लिये जो पुद्गल पिण्ड ग्रहण किया जाता है, वह महार है । कहा भी है
"शरीरप्रायोग्यपुगल पिण्ड ग्रहणमाहारः ।" ( धवल पु० १ पृ० १५२ )
दारिक, वैयिक, आहारक इन तीनशरीर के योग्य पुद्गलपिण्ड के ग्रहण करने को ग्राहार कहते हैं ।
शरीर की स्थिति आयु कर्मोदय में कारण है अतः आहार को प्रयुकर्म का नोकर्म कहा गया है ।
णिरयायुस्स अणिट्ठाहारी सेसाणमिट्ठमण्णादी ।
गविणोकम्मं वव्यं चउग्गदोणं हवे खेत्तं ॥ ७८ ॥ ( गो. क. )
टीका - नरकायुषोऽनिष्टाहारः तद्विषमृतिका नोकर्म द्रव्यकर्म शेषायुषामिष्टान्नादयः ।
निष्ट आहार अर्थात् नरक की मिट्टी आदि नरकायु का नोकर्म है और शेष तियंचादि तीन आयुकर्म का नोकर्म इन्द्रियों को प्रिय लगे ऐसा अन्न पानादि है ।
णोकम्मकम्महारो कबलाहारो य लेप्पहारो य । उज्जमणो विय कमसो आहारो छम्विहो लेओ ॥११०॥ णोकम्म कम्महारो जीवाणं होइ चउगइगयाणं । कवलाहारो णरयसु रुक्खेसु य लेप्पमाहारो ॥११॥ पक्खीणुज्जाहारो अंडयमोसु
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वट्टमाणा ।
देवेसु मणाहारो चउग्विहो णत्थि केवलिणो ॥ ११२ ॥ ( भाव संग्रह )
अर्थ - नोकर्म श्राहार, कर्माहार, कवलाहार, लेपाहार, ओजाहार और मानसिकआहार इस प्रकार आहार के छह भेद हैं । इनमें से नोकर्माहार और कर्माहार चारों गतिवाले जीवों के होता है । कवलाहार मनुष्य तथा पशुओं के होता है और वृक्षों के लेपाहार होता है । अंडे के भीतर रहनेवाले पक्षियों के प्रोजग्राहार होता है और देवों के मानसिक आहार होता है। इनमें से चारप्रकार का आहार केवली भगवान के नहीं होता है ।
- जै. ग. 23-12-76 / VII / न. म. जैन
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