________________
चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर बम्बईके द्वारा प्रकाशित की गयी। इसमें बम्बईके चिन्तामणि पार्श्वनाथकी स्तुतिपदोंकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, अतः पुस्तकका नाम बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथपर रक्खा गया है। ये समस्त स्तवन वाचक श्री अमरसिंधुरजी रचित है। श्री अमरसिंधुरजीने बम्बईमें रहते हुए ही अधिकांश रचनाएँ की हैं और एक विशिष्ट कार्य यह किया कि श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथका मंदिर, धर्मशाला व उपाश्रय श्रावकोंको उपदेश देकर प्रतिष्ठित किया। इन सबके लिए उन्हें आठ वर्षों तक प्रयत्न करना पड़ा।
भक्त श्रावकोंके लिए यह पुस्तक अनुपम रत्न है। ज्ञानसार ग्रन्थावली
श्री अगरचन्दजी नाहटा एवं श्री भंवरलालजी नाहटा द्वारा सम्पादित एवं श्री अभय जैन ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक सन् १९५९ में तैयार हो सकी। इसमें महायोगी ज्ञानसारजी द्वारा रचित पदावली एवं अन्य रचनाओंका संग्रह है। योगीराजकी प्रामाणिक जीवनी भी दी गयी है। महापण्डित श्री राहुल सांकृत्यायनने इसकी भूमिका-प्राक्कथनमें उचित ही लिखा है कि 'ज्ञानसार ग्रन्थावलीका प्रकाशन करके श्री नाहटाजीने हिन्दी साहित्यके ऊपर बड़ा उपकार किया है।" भाषा, भाव, ऐतिह्य और धार्मिकताकी दृष्टिसे पुस्तक अतीव महत्त्वपूर्ण है। छिताईचरित
यह पुस्तक श्री हरिहरनिवास द्विवेदी एवं श्री अगरचन्दजी नाहटाके सम्पादकत्वमें विद्यामन्दिर प्राचीन ग्रन्थमालाके तृतीय पुष्पके रूपमें सन् १९६० में प्रकाशित हुई है। सम्पादक श्री द्विवेदीने ठीक ही लिखा है।
“छिताईचरित हिन्दीका गौरव ग्रन्थ है। हिन्दीकी लौकिक आख्यान काव्यधाराकी श्रेष्ठ रचनाके रूपमें, राजनैतिक इतिहासकी घटनाओंके कथाबीजपर आधारित सर्वप्रथम प्रामाणिक रचनाके रूपमें छिताईचरितका स्थान हिन्दी साहित्यमें अत्यन्त श्रेष्ठ है."इतनी महत्त्वपूर्ण रचनाकी प्रतियाँ खोज निकालनेके लिए हिन्दी संसार उन (श्री अगरचन्दजी नाहटा)का सदा ऋणी रहेगा।"
यह सत्य है कि श्री नाहटाजीको छिताईचरित लेखन-शोधन-संशोधन और मुद्रणमें अनेक कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा था; लेकिन वे हमारे दृष्टिमें “कठिनाइयाँ' हो सकती हैं; श्री नाहटाजी तो उन्हें 'प्रेरक तत्त्व' कहते हैं। इसलिए उनके लिए वे वरदानभत हैं। निस्सन्देह श्री नाहटाजी छिताई-चरित प्रकाशनमें तथाकथित वरदानके विशेष पात्र रहे होंगे; यह हमारी और द्विवेदीजीकी मान्यता है । पीरदान लालस ग्रन्थावली
यह पुस्तक श्री अगरचन्दजी नाहटा द्वारा सम्पादित और सादुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेर द्वारा सन् १९६०में प्रकाशित हुई है। सम्पादकने इसे चारण जातिके दो उज्ज्वल रत्नों-श्री शंकरदान जेठी भाई और श्री उदयराजजी उज्ज्वलके करकमलोंमें सादर समर्पित किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थावलीमें नारायण नेह, परमेसर पुराण, हिंगलाज रासो, अलख आराध, अजंपा जाप, ज्ञानचरित और पातिक पहार नामक सात ग्रन्थों और ३० डिंगल गीतोंको स्थान प्राप्त हुआ है। लालसजीकी ये समस्त रचनाएँ प्रायः भक्तिप्रधान हैं। इन रचनाओंमें दूहा, चौपई, गाहा, चौसर, मोतीदाम, कवित्त, भुजंगी, पद्धरी, झम्पाताली और डिंगल गीतोंके अटूट तालों साणोर आदि कई ग्रन्थोंका प्रयोग हुआ है। पुस्तकांतमें शब्दकोश और अन्तरकथाएँ देकर उसकी उपयोगिताको और भी बढ़ा दिया गया है। • पुस्तकके प्रारम्भमें कवि पीरदान लालसकी हस्तलिपिका चित्र भी दिया गया है । ६८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org