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________________ जिनहर्ष ग्रन्थावली श्री अगरचन्दजी नाहटा द्वारा सम्पादित और श्री सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेर द्वारा सन् १९६० में प्रकाशित 'जिनहर्ष ग्रन्थावली' श्री अगरचन्दजी नाहटाके ३० वर्षके शोधश्रमका रूपीकरण है । उन्होंने कविकी लगभग ४०० लघु रचनाएँ इस ग्रन्थावली में प्रकाशित की है। महाकवि जिनहर्ष सरस्वतीके वरद पुत्र थे। उन्होंने निरन्तर ६० वर्ष तक काव्यसाधना की थी। उनके भावक पवित्र हृदय और विवेकशील मस्तिष्कने माँ सरवस्तीके रत्नकोशको सम्भरित करनेके लिए सात महाकाव्य, इक्कीस एकार्थकाव्य, इक्कावन खण्डकाव्य और लगभग २०० मुक्तक रचनाओं तथा हजारों फुटकर पदोंका निर्माण किया था। उन्होंने लगभग एक लाख परिमित संख्या पद बनाये थे। श्री नाहटाजीने ऐसे सरस्वती पुत्रको प्रकाशमें लानेका सदैव प्रयत्न किया। उन्हींके निर्देशसे प्रस्तुत पंक्तियोंके लेखकने "महाकवि जिनहर्ष एक अनुशीलन" शीर्षकसे शोधप्रबन्ध प्रस्तुत करके राजस्थान विश्व विद्यालयसे पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। वस्तुतः महाकवि जिनहर्ष इतने व्यापक और विशाल हैं कि उन पर अनेक दष्टियोंसे विचारविमर्श किया जा सकता है। जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि प्रस्तुत पुस्तकका सम्पादन श्री अगरचन्दजी नाहटा और प्रकाशन सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेरने संवत् २०१७ में किया। सम्पादकने इस कृतिको श्री बुद्धिमुनिजी महाराजके करकमलोंमें श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक समर्पित किया है। प्रस्तुत पुस्तक ऐतिहासिकता, भक्तिभावना, भाषा और साहित्यकी दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । सम्पादक महोदयने पुस्तकारम्भमें श्री जिनराजसूरिका प्रमाणपुष्ट जीवनचरित और उनकी साहित्यसेवापर प्रकाश डाला है। पुस्तकमें कतिपय चित्र भी दिये गये हैं। कृतिका साहित्यिक अध्ययन प्रस्तुत करके एक अभावकी पति की गयी है। पुस्तकान्तमें दिये गये राजस्थानी शब्दकोश और श्री जिनराज सूरि प्रयुक्त देशी सूचीसे उसकी उपयोगिता बढ़ गयी है। धर्मवर्द्धनग्रन्थावली प्रस्तुत पुस्तकका सम्पादन श्री अगरचन्द नाहटा और प्रकाशन सादुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूटने संवत् २०१७ में किया है। सम्पादकने इसका समर्पण राजस्थानीके विद्वान् श्री नरोत्तमदासजी स्वामीको किया है। पुस्तकारम्भमें कवि धर्मवर्द्धनकी हस्तलिपिका चित्रण और पुस्तकान्तमें धर्मवर्द्धन ग्रन्थावलीमें प्रयुक्त देशियोंकी सूची दी गयी है। पुस्तकमें कविवर धर्मवर्द्धनजीकी प्रामाणिक जीवनी और उनकी गुरुपरम्पराका परिचय दिया गया है। कविके स्मारक स्तूपका चित्र भी कृतिके आरम्भमें रखा गया है। कविवरकी साहित्यसाधनाका अति सुन्दर और सन्तुलित मूल्यांकन प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. मनोहर शर्माकी सबल लेखनीसे हआ है, जो स्तुत्य है। इस संग्रहकी एक मात्र प्रति बीकानेरके ज्ञान भंडारमें है। सीताराम चौपाई इस पुस्तकके सम्पादक श्री अगरचन्द नाहटा और भँवरलाल नाहटा हैं। इसका प्रकाशन सादुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टी-ट्यूट से संवत् २०१९ में हुआ है। महोपाध्याय कविवर समयसुन्दर १७वीं सदीके महान् विद्वान् और कवि थे। आपका साहित्य बहुत विशाल है। आपने गद्य और पद्य दोनों ही विधाओंमें साहित्यसर्जना की थी। आपकी पद्य रचनाओं में सीताराम चौपाई सबसे बड़ी रचना है। इसका परिमाण ३७०० श्लोक परिमित है । जैन परम्परा की रामकथाको इस काव्यमें गंफित किया गया है। जीवन परिचय : ६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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