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प्राचीन काव्योंकी रूप परम्परा
इस पुस्तकका प्रकाशन भारतीय विद्या मन्दिर शोध प्रतिष्ठान बीकानेरने सन १९६२ में किया । श्री अगरचन्द नाहटा द्वारा लिखित प्राचीन काव्योंकी रूप परम्परा पुस्तक उनके गत ३१ वर्षों में लिखे गये प्राचीन भाषा-काव्योंकी रूप परम्पराके सम्बन्धमें लेखोंका संग्रह है जो समय-समय पर नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिन्दी अनुशीलन, सम्मेलन पत्रिका, भारतीय साहित्य, कल्पना प्रभृतिमें प्रकाशित होते रहे हैं। इस पुस्तकमें चचित काव्य रूपोंमेंसे अधिकांशकी परम्परा अपभ्रंशकालसे निरन्तर चली आ रही है। सभा श्रृंगार
इस पुस्तकके संकलनकर्ता तथा सम्पादक श्री अगरचन्दजी नाहटा हैं। इसका प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभासे संवत् २०१९ में हुआ।
सभा शृगार वर्णक साहित्यकी कोटिमें आता है । इस साहित्यका सम्बन्ध किसी वस्तुके उस परिनिष्ठित वर्णनसे होता है जिसे सार्वजनिक रीतिसे आदर्श वर्णनके रूपमें स्वीकार कर लिया जाता था। इस प्रकारके वर्णनमें कवि और कलाकार दोनों ही सहायक होते हैं एवं श्रोता तथा वक्ता दोनोंको इस प्रकारके वर्णनोंमें वस्तुका ज्वलन्त चित्र प्राप्त होता है । इसलिये श्री नाहटा सम्पादित सभा शृंगार पुस्तकमें उपयोगिता असंदिग्ध है। पंच भावनादि सज्झाय सार्थ
प्रस्तुत पुस्तक श्री अगरचन्द नाहटाके सम्पादकत्वमें श्री भंवरलाल नाहटाने सम्पादित की है। इसके कर्ता श्रीमद्देवचन्द हैं। पुस्तकमें पंच भावनाओंका पद्यात्मक वर्णन है । परिशिष्टमें तपस्वी मनियोंकी जीवनियाँ दी गयी हैं। रत्न परीक्षा
यह पुस्तक अभय जैन ग्रन्थमाला बीकानेरसे नाहटा अगरचन्द भंवरलालके सम्पादकत्वमें प्रकाशित हुई है। रत्नपरीक्षा सम्बन्धी इमीगिनी पुस्तकोंमें इस पुस्तकका महत्त्वपूर्ण स्थान है । पुस्तकके भूमिका भागमें विद्वान सम्पादकोंने रत्न परीक्षा सम्बन्धी हिन्दी साहित्यके ग्रन्थोंका सविवरण उल्लेख किया है। इसमें चोटीके विद्वानोंके लेख भी संग्रहीत हैं। परिशिष्टमें नवरत्नपरीक्षा, मोहरांरीपरीक्षा इत्यादि देकर पुस्तकको और भी उपयोगी बनाया गया है। दादा श्री जिनकुशलसूरि
श्री अगरचन्द नाहटा एवं भंवरलाल नाहटाने इस पुस्तकको लिखकर द्वितीयावृत्ति १९६३ में प्रकाशित की है। इसकी भूमिका मनि जिनविजयजीने लिखी है। पुस्तकमें दादाजीकी प्रमाणपुष्ट जीवनी प्रस्तुत की गयी है। पुस्तकान्तमें उनके ग्रन्थोंकी रचना और शिष्यपरम्परापर प्रकाश डाला गया है । पुस्तकान्तमें सरिजी रचित कतिपय प्राकृत संस्कृत स्तवन भो दिये गये हैं। भक्त-माल सटीक
इस पुस्तकका सम्पादन श्री अगरचन्दजी नाहटाने किया है । राघवदासकी यह मूल रचना है और चतुरदासने इसकी टीका लिखी थी। यद्यपि नाभादासजीकी भक्तमालके अनुकरणमें ही राघवदासने अपनी भक्तमाल बनायी, फिर भी वह तद्वत् नहीं है। यह उससे काफी बड़ी है और इसमें अनेक सन्त एवं भक्तजनोंका उल्लेख है जिनका उल्लेख नाभादासजीने नहीं किया है। नाभादासजीने जहाँ केवल वैष्णव
थान दिया है वहाँ श्रीराघवदासने, जो कि स्वयं दादूपन्थी थे, अपने पंथके सन्तोंके अतिरिक्त रामानुज, विष्णुस्वामी, कबीर, नानक आदि अन्य मतावलम्बियोंका भी विवरण दिया है।
७० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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