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यही महत्व है । स्थानकवासी साधु-सम्मेलन भीमसरके प्रसंगसे हजारों व्यक्ति बाहरसे आये थे उनके मंदिर दर्शनकी सुगमता के लिए पुस्तक रूपमें लिखकर प्रकाशित कर दी गई थी ।
श्रीमद् देवचन्द्र स्तवनावली
श्रीमद् देवचन्द्रजी के प्रामाणिक जीवन और उनके भक्तिरस आपूरित पदोंके संकलनसे श्री अगरचन्दजी नाहटाने उक्त पुस्तक लिखकर संवत् १०१२ में प्रकाशित की है ।
श्रीमद् देवचन्द्रजीका जन्म वि० संवत् १७४६ में बीकानेर के निकटवर्ती किसी ग्राममें हुआ था । आप शनैःशनैः संस्कार विकास करते-करते उच्चकोटि के साधक कवि बन गये । आपने स्वरचित स्तवनोंमें तत्त्वज्ञानके साथ-साथ भक्तिका अखण्ड प्रवाह बहाया है । श्री नाहटाजीने भक्तकविके जीवनचरित्रको लिखते समय जैन दर्शन पर भी प्रसंग वश प्रकाश डाला है, वह प्रकाश कहीं सूचनात्मक है और कहीं तुलनात्मक । भक्त श्रावकों के लिए पुस्तकका मूल्य बहुत है । वह परम उपयोगी है ।
बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री नाहटाद्वयकी कल कीर्त्तिको चतुर्दिक् प्रसारित करनेवाले ग्रंथरत्नोंमेंसे उक्त ग्रंथ भी एक है । ग्रंथ प्राक्कथन लेखक श्री वासुदेवशरण अग्रवालने श्री नाहटाजी के प्रकाण्ड पाण्डित्य, श्रमनिष्ठा और शोध - रुचिकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है ।
इस ग्रंथका प्रकाशन श्री अभय जैन ग्रंथमालाके पंचदश पुष्पके रूपमें सन् १९५६ में हुआ । इसमें बीकानेर राज्यके २६१७ तथा जेसलमेरके १७१ अप्रकाशित लेखों का संग्रह है । प्रारम्भमें शोधपूर्ण-विद्वत्तापरिपूर्ण विस्तृत भूमिका दी गयी है । परिशिष्ट में बृहद् ज्ञान भण्डारकी वसीयत, श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि धर्मशालाका व्यवस्थापत्र और पर्युषणों में कसाईबाड़ा बन्दीके मुचलके की नकल है ।
बीकानेर जैन लेख संग्रह में ९वीं - १०वीं शताब्दीसे लेकर आज तकके करीब ग्यारह सौ वर्षोंके लगभग ३००० लेख हैं । इस लेख संग्रहकी एक विशेष बात यह है कि इसमें श्मशानोंके लेख भी खूब लिये गये हैं | बीकानेर के जैन इतिहाससे सम्बद्ध इतनी ज्ञानवर्द्धक ठोस भूमिका भी इसी ग्रन्थकी दूसरी उल्लेखनीय विशेषता है | बीकानेर राज्य भरके समस्त लेखोंके एकीकरणका प्रयत्न भी इस ग्रन्थकी अन्य विशेषता है ।
प्रस्तुत लेखों में इतनी विविध ऐतिहासिक सामग्री भरी पड़ी है कि उन सब बातोंके अध्ययनके लिए सैकड़ों व्यक्तियोंकी जीवन साधना आवश्यक है । इन लेखोंमें राजाओं, स्थानों, गच्छों, आचार्यों, मुनियों, श्रावक-श्राविकाओं, जातियों और राजकीय, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक इतनी अधिक सामग्री भरी पड़ी है कि जिसका पार पाना कठिन है । इसी प्रकार इन मन्दिर एवं मूर्तियोंसे भारतकी शिल्प स्थापत्य, मूर्तिकला और चित्रकला आदिके विकासकी जानकारी ही नहीं मिलती; पर समय-समयपर लोक-मानस में भक्तिका किस प्रकार विकास हुआ, नये-नये देवी देवता प्रकाशमें आये, उपासना के केन्द्र बने, किस-किस समय भारत के किन-किन व्यक्तियोंने क्या क्या महत्त्व के कार्य किये; उन समस्त गौरवशाली इतिहासों की सूचना इन शिलालेखों, पत्रलेखों, ताड़पत्र लेखों और मूर्तिलेखोंमें पायी जाती है। श्री नाहटाजीने लेख संग्रहके क्षेत्र में यह बहुत बड़ा काम किया है । ग्रन्थके प्रत्येक चित्रफलकपर उनका कठिन श्रम झलकता है और उनकी अगाध विद्वत्ता ग्रंथके आद्यन्त भाग में । इस उत्कृष्ट कोटिके ग्रंथ प्रणयनके लिए नाहटाद्वयकी जितनी ही प्रशंसा की जाय; वह थोड़ी है । इसमें करीब १०० चित्र भी दे दिये गये हैं ।
बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवनपद संग्रह
उक्त पुस्तक संवत् २०१४ में श्री अगरचन्द भँवरलालजी नाहटाके सम्पादकत्वमें ट्रस्टी गण श्री
जीवन परिचय : ६७
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