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जसवंत उद्योत
___ श्री अगरचन्दजी नाहटाके सम्पादकत्वमें श्री सादूल प्राच्य ग्रन्थमालासे संवत् २००६में इस ग्रन्थका प्रकाशन हुआ है।
यह ग्रंथ जोधपुरके राठौड़ोंके इतिहाससे सम्बद्ध है । ग्रन्थान्तमें प्रस्तुत पद्यमें कविने सूर्यवंशी बृहद्बाह तककी वंशावली विष्णपुराणसे एवं उसके परवर्ती ६. राजाओंका विवरण लोककथाके आधारसे दिये जानेका उल्लेख किया है । माननीय ओझाजीके मतानुसार सीहाके पिता सेतरामसे परवर्ती राजाओंके नामादि तो इतिहाससे बहत कुछ समर्थित है; पर जयचन्द गाहड़वाल के साथ उनका सम्बन्ध जोड़ना स्पष्टतः भूल है; जब कि पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ गाहड़वाल व राठौड़ोंका एक ही वंश मानकर इसे ठीक समझते हैं।
जसवंत उद्योतके प्रारंभमें इसका रचनाकाल संवत् १७०५ आषाढ शुक्ला तृतीया दिया है; पर इस ग्रन्थमें संवत् १७०७के कात्तिकमें हुई पोहकरण विजय तकका वृत्तान्त पाया जाता है; अतः प्रस्तुत ग्रन्थकी रचनाका प्रारंभ संवत् १७०५में होकर १७०८के करीब परिसमाप्ति हुई समझनी चाहिये; क्योंकि इसके पीछेका कोई वृत्तान्त इस काव्यमें नहीं पाया जाता ।
जोधपुरके राजवंशमें महाराजा जसवन्त सिंह बड़े साहित्यप्रेमी, विद्वान एवं प्रतापी राजा हए हैं। कवि उनके आश्रयमें ही रहता था और कई वर्षों तक साथ रहनेके कारण उसे राठौड़ोंके इतिहासकी अच्छी जानकारी हो गयी थी। फलतः उसने कई स्थानोंमें राठौड़ वंशके प्रधान पुरखाओंसे चली शाखाओंका व उनके विशिष्ट व्यक्तियोंका महत्वपूर्ण निर्देश किया है। मुहणोत नैणसीकी ख्यातसे भी प्रस्तुत ग्रंथ प्राचीन एवं महाराजा जसवंत सिंहकी विद्यामानतामें रचना होनेसे इसका ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है। इससे काव्यको एक मात्र प्रति अनुप संस्कृत लाइब्रेरीमें है।
क्यामखांरासा
मुस्लिम कवि जान रचित क्यामखांरासाका सम्पादन श्री दशरथ शर्मा एवं श्री अगरचन्द नाहटा व भंवरलाल नाहटा द्वारा तथा प्रकाशन राजस्थान पुरातत्व मंदिर जयपुरकी राजस्थान पुरातन ग्रंथमालासे संवत् २०१० में हुआ।
यह रासा अनेक दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है । इसकी साहित्यिक महत्ता उच्चकोटि की है। इसकी शैली में प्रवाह है। प्रेम पूर्ण आख्यायिकाओं और प्राकृतिक वर्णनोंसे कवि जान भी इसे सुसज्जित कर सकता था; वह वीर रसका ही नहीं, शृङ्गार रसका भी कवि था; किन्तु उसने सरल ओजस्विनी भाषामें अपने वंशके इतिहासको ही प्रस्तुत करना उचित समझा; उसने यथाशक्ति मितभाषिता और सत्यका आश्रय लिया। इसकी भी एकमात्र प्रति झुंझुनूके जैन भण्डारसे प्राप्त हुई। बीकानेरके दर्शनीय जैन मन्दिर
श्री अगरचन्दजी नाहटाने यह अत्यन्त लघुकाय पुस्तिका संवत् २०१ में लिखी और प्रकाशित की। इसमें बीकानेरके दर्शनीय जैन मंदिरोंका प्रामाणिक इतिहास दिया मया है। सुन्दर, कलात्मक जैन मंदिरोंके आधिक्यके कारण बीकानेरको जैनतीर्थों में स्थान प्राप्त है।
बीकानेर ज वंदीए, चिरनंदीये रे, अरिहंत देहरा आठ-तीर्थ ते नमुं रे ।
कविवर समयसुन्दरके समय बीकानेरमें आठ मंदिर रहे होंगे; लेकिन आजकल उनकी संख्या चालीसके लगभग है।
बीकानेरकी तीर्थयात्रा पर जानेवाले जैन यात्रियोंके लिए उक्त पुस्तक अच्छी पथदर्शिका है। इसका
६६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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