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________________ अच्छी सामग्री प्रस्तुत की बड़ा कठिन है 'समयसुन्दरना गीतड़ा, भींता पर ना चीतरा या कुंभेराणां ना भींतड़ा ।' कविने अष्टलक्षी ग्रंथकी रचनाके १ पदके आठ लाख प्रामाणिक अर्थ पंडित विद्वत् सभा अकबरकी में मान्य करवाया था । दानवीर सेठ श्री भैरूंदानजी कोठारीका संक्षिप्त जीवनचरित्र जैसा कि नामसे ही स्पष्ट है, यह अत्यन्त लघु पुस्तिका दानवीर सेठ भैरूँदानजी के जीवनकी रूपरेखा मात्र प्रस्तुत करते हुए लिखी गयी है । प्रकृत्या यह पुस्तक न होकर लेखकका वक्तव्य है जो पुस्तकाि कर दिया गया है । स्व० सेठ साहबके दानीरूपको विज्ञापित करना लेखकका लक्ष्य रहा है । उसने प्रकारान्तरसे यह व्यंजित किया है कि धनका होना उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना उसका सदुपयोग महत्त्वपूर्ण होता है | लक्ष्मीपतियोंके लिए यह लघु पुस्तक प्रेरक बन सकती है । युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि | वैसे कवि अत्यन्त व्यापक है और उसकी लिखित रचित सामग्रीका पार पाना प्रस्तुत पुस्तक के लेखक नाहटाद्वय हैं । इसका प्रकाशन श्री अभय जैन ग्रंथमालाके बारहवें पुष्पके रूपमें हुआ है । इसे लेखकोंने अपने स्व० पिता एवं पितामह श्री शंकरदानजी नाहटाको समर्पित किया है । इसका प्रकाशन संवत् २००३ है । नाहटायने इस पुस्तकको लिखे जानेमें श्री जिनदत्तसूरिचरित्रनिर्णायक समिति फलौदीके द्वारा प्रकाशित उस विज्ञप्तिको कारण माना है; जिसमें उक्त समितिने ता० २१-७-१९३४ के पूर्व सूरिजीका जीवनचरित्र लिख भेजनेका निवेदन किया था । इस ग्रन्थको लिखनेके लिए लेखकद्वयको पर्याप्त श्रम करना पड़ा, तदर्थं जैसलमेरकी यात्रा भी करनी पड़ी। इस पुस्तककी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें गतानुगतिकता नहीं है । प्रत्येक घटना और तथ्यको ऐतिहासिकता के आधारपर परखनेका प्रयत्न किया गया है । सूरिजीके प्रामाणिक चरित्रको प्रस्तुत करके अन्तमें विशेष बातें, गोत्रसूची, पदव्यवस्था कतिपय स्तवन और विशेष नामसूची दी गयी है । ९ राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथोंकी खोज - द्वितीय भाग यह कृति हिन्दी के अज्ञात हस्तलिखित ग्रंथोंकी शोधविवरणिका है । इसका प्रकाशन प्राचीन साहित्य शोध संस्थान उदयपुरकी ओरसे सन् १९४७ में किया गया था । श्री अगरचन्दजी नाहटा लिखित इस पुस्तककी अनेक विशेषताएँ और मौलिकताएँ हैं । इस ग्रंथमें मूल ग्रंथके उद्धरण अधिक प्रमाणमें लिये गये हैं और लेखककी ओरसे कुछ भी नहीं या कमसे कम लिखनेकी नीति अपनायी गयी है । ग्रन्थका नाम, ग्रन्थकार, उनका जितना भी परिचय ग्रंथ में है, ग्रंथका रचनाकाल, ग्रंथ रचनेका आधार आदि ज्ञातव्य, जिस ग्रंथ में संक्षेप या विस्तारसे जितना मिला, विवरण में दे दिया गया है जिससे प्रत्येक व्यक्ति ऊपर निर्दिष्ट लेखकके लिखित सारको स्वयं जाँचकर निर्णय कर सकें । इसकी द्वितीय विशेषता यह है कि इसमें एक-एक विषय के अधिक से अधिक अज्ञात ग्रंथोंका विवरण संगृहीत किया गया है और उनका विषयानुसार वर्गीकरण कर दिया गया है। इसकी तीसरी विशेषता यह है कि इसमें ऐसे विषय एवं ग्रंथोंके विवरण हैं जो हिन्दी साहित्य के इतिहासमें एक नवीन जानकारी उपस्थित करते हैं, जैसे नगर वर्णनात्मक गजल साहित्य | "हिन्दी ग्रंथोंकी टीकाएँ" विभाग भी अपनी विशेषतासे परिपूर्ण है । इसमें हिन्दी ग्रंथोंपर तीन संस्कृत टीकाएँ एवं एक राजस्थानी टीकाका विवरण दिया गया है। अभी तक हिन्दी ग्रंथों पर संस्कृतमें टीकाएँ रची जाने की जानकारी शायद यहाँ पहली ही बार दी गई है । जीवन परिचय : ६५ Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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