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उपयोगी है; क्योंकि इसमें १२ वीं शताब्दीसे लेकर बीसवीं शताब्दी तक लगभग आठ सौ वर्षोंके, प्रत्येक शताब्दीके थोड़े-बहुत काव्य अवश्य संग्रहीत हैं । इस संग्रहसे भाषाविज्ञानके अभ्यासियोंको शताब्दीवार भाषाओंके अतिरिक्त कई प्रान्तीय भाषाओंका भी अच्छा ज्ञान हो सकता है। कतिपय काव्य हिन्दी, कई राजस्थानी और कुछ गुजरातीके हैं । अपभ्रंश भाषाके लिए तो यह संग्रह विशेषतः महत्त्वपूर्ण है वैसे इसमें संस्कृत और प्राकृतके काव्य भी दे दिये गये हैं।
काव्यकी दृष्टिसे जिनेश्वरसूरि, जिनोदयसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनपतिसूरि आदिके रास-विशेष महत्त्व रखते हैं।
इसमें रास सार भी दे दिया गया है जो अति संक्षिप्त और सारगर्भित है। लेखकद्वयने काव्य रचनाकालका संक्षिप्त शताब्दी अनुक्रम भी दिया है। श्री हीरालाल जैनने इसकी विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लिखी है। 'प्रति परिचय' शीर्षकके अर्न्तगत उन पाण्डुलिपियोंका परिचय दिया गया है; जिनका उपयोग इस ग्रन्थमें किया गया है । प्रकाशक, पाण्डुलिपि, ताडपत्र, हस्तलिपि आदिसे सम्बद्ध एकादश चित्रोंसे ग्रंथ सुसज्जित है, पुस्तकान्तमें कठिन शब्दकोष और विशेष नामोंकी सूची देकर उसे और भी उपयोगी बना दिया गया है। सर्वान्तमें 'शुद्धाशुद्धि पत्रम्' रक्खा गया है । समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि
श्री अगरचन्द नाहटा एवं श्री भंवरलाल नाहटाके संग्रहकत्व एवं सम्पादकत्वमें श्री अभय जैन ग्रंथमालाके पंचदशम पुष्पके रूपमें प्रस्फुटित यह कृति अपना विशेष महत्त्व रखती है। इसमें कविवर समयसुन्दरकी ५६३ लघु रचनाओंका संग्रह है। श्री हजारीप्रसादजी द्विवेदीने इसकी भूमिका लिखकर-इस ग्रंथके महत्त्वका उद्घाटनपर्वक पुरस्सरण किया है। महोपाध्याय श्री विनयसागरजीने अपनी प्रखर विद्वत्तासे समयसुन्दरके व्यक्तित्व एवं कृतित्वका सार संभरित मूल्यांकन किया है और उस महाकविको असाधारण मेधावी, और सर्वतोमुखी प्रतिभाके धनीके रूपमें प्रस्तुत किया है। यह शोधपूर्ण साहित्यिक कृति परम अध्यवसायी, सहृदय, शोधनिरत, महान् परिश्रमी और निष्णात साहित्य महारथी स्व० श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाईको समर्पित की गयी है।
समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलिग्रंथ भाषा, छन्द, शैली और ऐतिहासिक सामग्रीकी दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें सन् १६८७के अकालका बड़ा ही जीवन्त वर्णन है । वह बड़ा हृदयद्रावक और प्रभावक है। इस ग्रंथकारके विषयमें श्री नाहटाजीने नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके सं० २००९के प्रथम अंकमें जो लिखा था, उससे ज्ञात होता है कि श्री समयसुन्दरकी जन्मभूमि मारवाड़ प्रान्तका सांचौर स्थान है। ये पोरवाड़ वंशके रत्न थे और इनका जन्मकाल संभवतः संवत् १६२० है। अकबरके आमंत्रणपर इनके दादागुरुजी भी लाहौरमें सम्राटसे मिलने गये थे तो ये भी गये थे । इन्होंने संस्कृतमें पच्चीस और भाषामें तेईस ग्रंथ लिखे थे । संवत् १७०२में चैत्र शुक्ला त्रयोदशीके दिन अहमदाबादमें इन्होंने अनशन आराधनापूर्वक शरीरत्याग किया।
'समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि'से कविकी कवित्वशक्तिकी प्रौढ़ताका निदर्शन होता है। कविकी भाषामें भावोंको अभिव्यक्त करनेकी अद्भुत क्षमता है । कविका ज्ञान परिसर बहुत ही विस्तृत है; इसलिए वह किसी भी कर्म विषयको बिना आयासके सहज ही संभाल लेता है । कवि द्वारा प्रयुक्त छन्दों और रागोंसे तत्कालीन ब्रजभाषामें प्रचलित पद शैलीके अध्ययनमें सहायता मिल सकती है।
वस्तुतः नाहटाजीने इस ग्रंथका संपादन-प्रकाशन करके हिन्दी साहित्यके अध्येताओंके सामने बहुत ६४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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