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आतम गुण निष्पन्न, भिन्न पुद्गल परभाव। भये बुद्ध अति शुद्ध, सिद्ध निज आत्म स्वभाव ।। आतम विभव अनंत, अंत जसु आवत नांहि । तुलना इस जग मांहि, देनको वस्तु न पाहि ।।५।। वाणी तव संताप ताप, भव अनल बुझा।। भटकत भव जल मांहि, उन्हें सन्मार्ग सुझावै ।। वस्तु स्वभाव स्वरूप, अनूप प्रकाशक भानु । बहै अमिय रसधार, सार गुण कितै बखानु ॥६॥ स्यादवाद संयुक्त, युक्त नय भंग प्रमाण । तत्वान्वेषण गहिर रुचिर, निष्पक्ष विनाण ॥ प्राकृत वाणी सुबोध बोध, पावत भट भविजन । सत्य प्रिय अति हिय, असर तत्काल करत मन ।।७।। भवसागरके पोत, स्रोत समता सिन्धुके । बसे जाय मनभाय, सिद्धि सुस्थान जु नीके । निविकार वीतराग आग क्रोधादि विनाशी। गुणागार भव पार करो, यह वीनति प्रकाशी ॥८॥ हो सर्वज्ञ विज्ञ सब भावोंके तुम सन्मति । सेवक जन आधार सार तारो यह वीनति ॥ 'अगर' सदा मन मुदा भक्ति भर ललित गुण स्तुति ।
तव पद वंदन कर्म निकंदन, प्राप्ति परम गति ॥९॥ श्री नाहटाजीमें मूर्धन्य कोटिके कविमें पाये जानेवाले गुण बीज रूपमें हमें उपलब्ध होते हैं । अगर निरन्तर अभ्यास बना रहता तो वे कविता क्षेत्रके वरवरेण्य कवियोंमेंसे एक होते। यह पूछा जानेपर कि आपने कविता करना क्यों छोड़ दिया, तो श्रीनाहटाने उत्तर दिया :
"कवितामें मेरी रुचि थी लेकिन जब मैंने देखा कि मेरेसे सहस्रगुणित अच्छे कवियोंकी कविता समाजमें उपेक्षित भावसे देखी जाती है। कोई भी व्यक्ति तन-मन-धन और सच्ची लगनसे उसका उद्धार नहीं कर रहा है। ऐसी स्थितिमें मेरे मानसने मुझसे यही कहा, कविता लिखनेका नहीं, उसका उद्धार करनेका समय है और मेरी अन्तः-ध्वनिने मझे कविता करनेके क्षेत्रसे निकालकर प्राचीन कवियोंकी कृतियोंके शोधक्षेत्रका पथिक बना दिया ।
श्री नाहटाजीने अपनी आत्मकथा भी लिखी है। अपने विषयमें तटस्थ भावसे लिखना कितना कठिन होता है यह इसी तथ्यसे स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दी-साहित्यमें सच्चे अर्थमें बहुत कम आत्मकथाएँ लिखी गयी हैं। इधर भारतीय भाषाओंमें भी इस विधाका समृद्ध स्वरूप दृष्टिगत नहीं होता। श्री नाहटाजी इस दृष्टिसे आत्मकथाकी उस परम्परामें आते हैं जिसका आरम्भ श्री बनारसीदास जैनने लगभग चार सौ पहिले 'अर्द्ध कथानक' लिखकर अपनी चारित्रिक त्रुटियोंका उद्घाटन किया था। स्वामी श्रद्धानन्द और महात्मा गाँधीने भी अपने गुण-दोषोंको पाठकोंके सम्मुख रखने में तनिक भी मन्दता प्रदर्शित नहीं की। श्री नाहटाजी भी उसी पद्धतिके पदाति हैं। उन्होंने आत्मकथाके रूपमें बहत थोड़ा लिखा है लेकिन जो लिखा
जीवन परिचय : ६१
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