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________________ हमारे चरितनायक श्री अगरचन्दजी नाहटाके लिए यह उक्ति यथार्थ नहीं है क्योंकि वे विद्वान् भी हैं और धनी भी हैं। उनकी गणना अच्छे सीमन्त सेठोंमें की जाती है। पंजाब, बंगाल, आसाम और दिल्ली प्रभृति नगरोंमें आपका अच्छा व्यापार है और वह भी आजका नहीं, सैकड़ों वर्ष पुराना । साहित्य संसारमें जिस प्रकार आपकी ख्याति है, विद्वान् आपकी बातको सुप्रामाणिक समझते हैं, उसी प्रकार व्यापार-क्षेत्रमें भी आपकी सुप्रतिष्ठा है, व्यापारी आपकी सम्मतिको जैसे अनुपालनार्थ ही सुनते हैं। जिस प्रकार समाजमें आपकी लोकप्रियता, निःस्पहता और निर्लोभता प्रसिद्ध है, उसी प्रकार नाहटा वंशमें भी आपकी अत्यन्त प्रतिष्ठा है । बड़े-छोटे सब आपको श्रद्धाभाजन समझते हैं। परिवारकी पवित्र भावना है कि जिस दुकानमें आपका नाम रहता है। वहाँ सुख, शान्ति और श्री सम्पन्नताका अधिवास होता है । यही कारण है कि परिवारकी अधिकांश दुकानोंमें आपका नाम दिया गया है-जैसे १. श्री मेघराज अगरचन्द-संवत् १९८० में स्थापित बड़ी गद्दी, सिलहट २. श्री मेघराज अगरचन्द-रिटेल कपड़ेकी दुकान, सिलहट ३. श्री अगरचन्द नाहटा-गल्लेकी दुकान, सिलहट ४. श्री अभयकरण अगरचन्द-थापड़ ५. श्री अभयकरण अगरचन्द-बोलपुर ६. श्री अगरचन्द नाहटा-बाबुर हाट ७. श्री ए० सी० नाहटा एण्ड कंपनी-बम्बई साहित्य संसारने जिस प्रकार आपका अनेकशः सम्मान किया है, और अनुवर्ष अधिकसे अधिक सम्मानित करनेको लालायित है, उसी प्रकार व्यापारी वर्गने भी आपका भूरिशः सम्मान किया है । संवत् १९९० के आसपासकी एक ऐसी ही घटना हमारे चरितनायकके मुखसे सुननेको मिली थी, उसे प्रायः उन्हींके शब्दोंमें उद्धृत कर रहा हूँ "बाबुरहाटकी हमारी दूकान विशेष प्रसिद्ध थी; यह ढाकाके पास थी; तांती कपड़ेका बाजार था; मारवाड़ीकी यही दुकान थी। वहाँ हमारे मुनीमजी थे किसनलालजी बुच्चा। बड़े जोरदार आदमी, साख भी जोरदार-साहसी कर्मठ, अपार सम्पदाके स्वामी जैसा प्रभाव-जैसे सारे हाटको खरीदनेकी शक्ति रखते होंसबसे अधिक माल खरीदते थे, बड़े-बड़े सशस्त्र सिपाही सुरक्षा और शानके लिए बाहर खड़े रहते। उस गाँवके जमींदार पर नाहटा-व्यापार और वंशका इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि जब हमारे चरितनायक वहाँ प्रथम बार पहुँचे तो उनके लिए जमींदार साहबने बड़ी सुन्दर चमकती हई सुसज्जित कहारोंकी पालकी भेजी: सैकड़ों आदमी स्वागतके लिए भेजे, पुष्प मालाओंकी तो संख्या ही नहीं थी; अपने अधिकारियोंको समारोहके लिए भेजे-सारा गाँव ही स्वागतके लिए जैसे उमड़ पड़ा, हर जबानपर एक ही वाक्य था “सेठ अगरचन्द नाहटा आइस, अगरचन्द नाहटा आइसै'। श्री नाहटाजीकी व्यापार और साहित्य दोनोंमें समान गति है। आप अपने सेवा भावी कर्मचारियोंको एक मासमें जो व्यवस्था और मार्गदर्शन देते हैं, वह साल भर के लिए पर्याप्त रहता है। वर्षान्तमें आप फिर निर्देश दे देते हैं जिसका स्वरूप अग्रिम वर्ष के लिए पर्याप्त रहता है। और इस प्रकार आपके पथ-दर्शनमें व्यापार चलता रहता है । आप वर्ष भरके खाता पत्रोंकी परीक्षा कुछ ही घंटोंमें कर देने में सक्षम हैं और इसी तीव्र गतिसे सालभरका काम घंटोंमें ही जांच लेते हैं। नाहटावंशके विभिन्न स्थानोंमें चल रहे व्यापारव्यवसायमें जो सबसे बड़ा और तनिक पेचीदा है; उस व्यापारको आप ही संभालते हैं और सबसे कम समय में । एक बार आपने प्रतिदिनके मालके स्टाकको जाँचते रहनेका आदेश दिया; गमाश्तोंने इस कामको असंभव ५० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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