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________________ आपका विद्याव्यसन उस भगवती भागीरथीके समान है; जिसका सुमधुर जीवन सबको सुलभ होता रहता है। आपको जो भी व्यक्ति, संस्था, विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, शोधसंस्थान सप्रेम निमंत्रित हैं, आप उनका आग्रह स्वीकार करते हुए अपनी असुविधाओं और कठिनाइयोंको ध्यानान्तरित करते हुए, वहाँ पहुँचते हैं और बड़े ही शिष्ट तथा जिज्ञासु भावसे सुनते हैं और स्वाभिमत प्रस्तुत करते हैं। आप अखिल भारतीय स्तरके अनेक आसनोंके अभिभाषक रहे हैं। जिनमेंसे कतिपयके नाम उल्लेखनीय हैं: १. महाकवि सूर्यमल मिश्रण आसन, उदयपुर । २ नोपानी भाषणमाला, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कलकत्ता । ३. मध्य प्रदेश शासन परिषद्, भोपाल । ४. महाराणा कुंभा संगीत समारोह, उदयपुर । ५. महाराणा कुंभा पंचम शताब्दी महोत्सव, चित्तौड़गढ़ । ३. अखिल भारतीय लोक संस्कृति सम्मेलन, बम्बई । ७. व्रज साहित्य मंडल (साहित्य विभाग) उज्जैन । राष्ट्र के विभिन्न राज्योंमें हुए आपके सम्मानसे एक बार यह फिर चरितार्थ हो जाता है कि विद्वत्ता नृपत्व कभी भी समान नहीं है, क्योंकि राजाकी पूजा स्वदेशमें होती है जबकि विद्वान् सर्वत्र पूजा जाता है विद्वत्त्वं च, नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन । स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ।। . आपने अन्धकारमें उपेक्षित भावसे बँधे पड़े ज्ञानभण्डारोंके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी अनेक सूचियाँ बनाकर सारस्वत-संसारको उनका परिचय देते हुए उनके महत्त्वपर विद्वज्जनका ध्यान आकृष्ट किया है । आपने नई शोधकृतियोंके आधारपर नई मान्यताएँ स्थापित की हैं और प्राचीन भूलभरी मान्यताओंको अपदस्थ किया है। आपके द्वारा सम्पन्न सूचीनिर्माणकार्यमें बीकानेरके बृहद् खरतर गच्छ भण्डार बड़ा उपसराकी सूचीका नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। इसमें नौ ज्ञान भण्डारोंकी लगभग दस हजार प्रतियोंको छांटा-पढ़ा और उनका आद्यन्त लिख आपने पूर्ण विवरणके साथ सूचीबद्ध कर उन्हें तैयार किया है। इसी प्रकार आपने श्री जिनचारित्रसूरि ज्ञान भण्डार, उपाध्याय जयचन्दजी ज्ञान भण्डार, श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भण्डार तथा श्री अभय जैन ग्रंथालयकी हस्तलिखित करीब ६०००० प्रतियोंकी आवश्यक विवरण सहित सूची तैयार की है। आपने अनेक ज्ञानभण्डारोंकी सूचियोंका संशोधन भी किया है। आपके द्वारा अनेक अप्राप्य एवं अज्ञात छोटी-मोटी सैकड़ों रचनाओंकी प्रतिलिपियाँ की गई है और करवाई गई है। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंके सूची निर्माणका श्रम और समय-साध्य कार्य वही कर सकता है, जिसकी बैठक तकड़ी हो, जिसका धन अक्षय्य हो और जिसे शोधरसका चस्का लग चका हो। कहनेकी आवश्यकता नहीं है कि ये समस्त गुण हमारे चरितनायक श्री नाहटाजीमें विद्यमान हैं। वे कष्टको कष्ट समझते ही नहीं, धीरताके वे अगाध सागर हैं-एक स्थान पर निरन्तर घंटों तक बैठे रहनेकी उनकी सहज प्रवृत्ति है और 'शोधरस' के तो वे 'चाखनहार' हैं। यही कारण है कि उनकी श्रमशीलता और विद्याव्यसनने इतनी विशाल ग्रन्थसूचियोंका निर्माण कर साहित्यसंसारको और भी सम्पन्न बनाया है। आपके विद्याव्यसनका इससे अधिक और क्या प्रमाण हो सकता है कि आप स्वाध्याय-तल्लीनतामें खाना-पीना तक भूल जाते है। भोजन-वेलाका अतिक्रमण होते देख घरवालोंको बार-बार आपके पास सन्देश जीवन परिचय : ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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