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राजस्थान साहित्य अकादमी (संगम) उदयपुर
सम्मान-पत्र श्रीमान् अगरचन्द नाहटा • राजस्थान प्रदेशकी साहित्यिक तथा सांस्कृतिक चेतनाके प्रसार में आपके सृजन एवं अध्य
यनशील व्यक्तित्वका विशिष्ट योगदान रहा है । • आपने अपनी साधना तथा विद्वत्ता द्वारा राजस्थानकी प्रतिभाके विकासमें प्रेरणा प्रदान
की है । • आपके कर्तृत्व एवं परिशीलनसे राजस्थानका साहित्य और समाज लाभान्वित हुआ है ।
अस्तु-राजस्थान साहित्य अकादमी (संगम] उदयपुर यह सम्मान-पत्र सादर समर्पित करती है। निदेशक, उदयपुर
अध्यक्ष दिनांक ३०.५ १९६८
राजस्थान सरकार तो आपको विद्वतासे परिचित थी ही, केन्द्रीय सरकारने भी आपकी अगाध ज्ञानराशिसे एक बार लाभ उठाना चाहा था। जब उक्त प्रसंगको श्री भंवरलालजी नाहटाके शब्दोंमें पढ़ना और भी आह्लादक होगा : "जब सरदार वल्लभ भाई पटेलने आबूको राजस्थानसे निकालकर गुजरातमें मिला दिया था, तो श्री नेहरू सरकारने राजस्थानकी न्यायोचित मांगपर सद्विचार करना त किया, फलतः राजस्थानके प्रमुख विद्वानोंकी एक मंडली नियुक्त हुई, जिसने आबू प्रदेशमें भ्रमण कर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, वेशभूषा, बोलचाल-भाषा, रीति-रिवाज, कला आदिपर रिपोर्ट दी जिसमें आप भी एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे और उन्हींकी रिपोर्टोसे राजस्थानको उचित न्याय मिला था।'
हमारे चरितनायक श्री नाहटाका विद्याव्यसन लभगभग चार युग पुराना है। इस सुदीर्घ अवधिमें आपने लगभग चालीस ग्रंथ लिखे और सम्पादित किये हैं। तीन सौ पत्र-पत्रिकाओंमें आपके तीन हजार लेख प्रकाशित हो चुके हैं। आपके विद्या-व्यसनका लाभ, अनेक पत्र-पत्रिकाओंने आपको संपादक बनाकर अथवा सम्पादक मंडल में स्थान देकर, लिया है । आपके सम्पादकत्वसे लाभान्वित होनेवाली पत्रिकाओंमें 'राजस्थानी', 'राजस्थान भारती', 'विश्वम्भरा', 'परम्परा', 'मरु-भारती', 'वरदा', 'अन्वेषणा', 'वैचारिकी' आदि प्रमुख हैं । 'राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थको भी आपके सम्पादकत्वका गौरव प्राप्त होता है।
हमारे चरितनायक श्री नाहटाजीके विद्याव्यसनी कल्पवृक्षके सुमधुरफल मुक्तभावसे वितरित हुए हैं । कई लोगोंको ये अमरफल खिलाये गये हैं और अनेकोंको हठात दिलाये गये हैं। शताधिक शोध-छात्रोंका मार्ग-दर्शन आपने किया है और कर रहे हैं। ऐसे व्यक्तियोंकी संख्या हजारोंसे ऊपर है जिनको आपने आवश्यक जानकारी एवं सम्बन्धित विषयसामग्री प्रदान की है। आप शोध-प्रबन्धोंके परीक्षक भी रह चके हैं। आपने लाखसे अधिक हस्तलिखित प्रतियोंको खोज निकाला है और अश्र तपूर्व-अज्ञात ग्रन्थोंका विवरण प्रकाशित किया है।
१. श्री भंवरलालजी नाहटाके संस्मरणसे उद्धत ।
४२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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