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________________ न खोल सका और आज २५-३० वर्षसे हमारी यह धरोहर लालगढ़में विद्यमान है जिसका उल्लेख ओझाजीने बीकानेर राज्यके इतिहास तकमें किया है, हमारे वर्तमान बीकानेरनरेश करणसिंहजीको चाहिए कि वे हमारे संग्रहालयकी धरोहरको सम्मानपूर्वक हमें लौटा देनेकी उदारता दिखायें । अस्तु । इस प्रकार चित्रादि प्राचीन कलात्मक वर तुओंके संग्रहमें भी हमारा ध्यान रहता और जहाँसे भी व प्राप्त होतीं, संग्रह कर ली जातीं। एक बार राजगृहीमें १५ दिन रहना हुआ और वहाँसे कुछ मृण्मूत्तियाँ (Terracotas) सोल, हरगौरी मूर्ति, एक कुशाणकालीन हविष्कको स्वर्णमुद्रा व २०-२२ चाँदी व १००-१२५ ताँबेके दो हजार वर्ष प्राचीन पंचमार्कड सिक्कों (Coins) का संग्रह १६०) रुपये खरीदकर लाया गया। श्री पूज्यजी महाराज श्री जिनचारित्रसूरिजीके संग्रहकी हस्तलिखित ग्रन्थोंको जब काकाजी अगरचन्दजीने व्यवस्थित कर सूची तैयार कर दी तो उन्होंने उदारतापूर्वक अपने संग्रहके कितने ही अपूर्ण ग्रन्थ हमारे संग्रहके लिए भेंट कर दिये थे। पृथ्वीराज रासोकी एक मध्यम संस्करणकी प्रति भी श्री पूज्यजी महाराजने हमें दी थी, जो बाहर एक आल्मारीके ऊपर पड़ी थी। हमने उसे डा० बूल्नरके अवलोकनार्थ डॉ० बनारसीदास जैनको लाहोर भेजा और आज भी वह हमारे संग्रहमें विद्यमान है। उन दिनों हमें एक ही धुन सवार थी कि संग्रह कैसे हो । रातमें सोते हुए स्वप्न भी ऐसे आते । कभी तो किसी ऐतिहासिक स्थानके दर्शन होते, कभी हस्तलिखित ग्रन्थ-चित्रादि दीखते। आश्चर्यकी बात है कि हरे रंगका एक चित्र स्वप्नमें दिखाई दिया, जिसमें भगवान् ऋषभदेव अपनी पुत्रियों, ब्राह्मी सुन्दरीको लिपि विज्ञान सिखा रहे हैं और सामने पूरी वर्णमाला (ब्राह्मी लिपिकी) लिखी हुई है । श्री देवचन्दजी महाराजके जन्मस्थानके संबन्धकी ऊहापोहमें स्वयं देवचन्दजी महाराज ऋषभदेवजीके मंदिरके (नाहटोंकी गवाड़) सामने मिलते हैं और अपना जन्मग्राम बतलाते है जो कि बीकानेर रियासत या जोधपुर रियासतमें है ? इस ऊहापोहमें विस्मृत हो जाता है । समयसुन्दरजीके माता-पिताके नामकी खोजमें दूसरे ही दिन बड़े उपाश्रयके एक संग्रहके पत्रोंमें उन्हीके शिष्यों द्वारा निर्मित गीत मिल जाते है और स्वप्न साकार हो जाता है। चित्तकी एकाग्रता और संग्रह तमन्ना ही इसके मुख्य कारण हो सकते हैं, जो भावनाओंके साकारको पूर्वसूचनारूप प्रतिभासित हो जाते हैं। जयपुरके श्री पूज्यजी श्री धरणेन्द्रसूरिजी महाराजने भी कुछ ताड़पत्रीय पन्ने आदि हमारे संग्रहमें आजसे २५ वर्ष पूर्व भेंट किये थे तथा जयपुरके दुकानदारोंके यहाँ घूमघामकर कई बार चित्रोंका संग्रह किया गया। हस्तलिखित ग्रन्थोंको जो चिपककर थेपड़े हो गये थे, उन्हें खोलने में बड़ी सावधानी रखनी होती है, उन्हें उचित मात्रामें सरदी पहुँचाने पर स्याहीका गोंद ढीला हो जाता और उनकी पकड़ ढीली हो जानेपर वे आसानीसे खुल जाते हैं । जितने मजबूत कागज होते हैं, उतने ही सरलतासे वे खुलते हैं और फटते नहीं। कभी-कभी असावधानीसे मल्यवान सामग्री भी गायब हो जाती है। एक बार एक विज्ञप्तिपत्र (संस्कृत) जो हमारे संग्रहमें था, किसीको मरोटियोंमें मिला और वह पत्र किसीने पाकर हमें दे दिया तो आ हाथ आ गया। उदयपुरका सचित्र विज्ञप्तिपत्र हमें श्री पूज्यजी श्री जिनचारित्रसूरिजी द्वारा प्राप्त हआ। रतनगढके उपाश्रयमें रखड़ते हए महत्त्वपूर्ण बौद्ध चित्रपटको हम जब सम्मेलनके अवसरपर गये तो संग्रह करके लाये। झंझुणकी यात्रामें किवामरासो-दौलत खां की पैड़ी आदि जानकविकी कृतियाँ मिली तथा फतेहपुर (शेखावादी)के यति श्री विसुनदयालजीसे पृथ्वीराज रासोका लघुतम संस्करण प्राप्त हुआ। जोवन परिचय : ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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