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श्री नाहटाजी पिछले कई वर्षोंसे मेरे साथ सम्पकित थे। शोधके अनेक प्रसंगोंपर बहुत बार गहनं चर्चाएं होती थीं। किन्तु, विगत एक वर्षको अवधिने उस सम्पर्कको और प्रगाढ़ता प्रदान की है। उनकी निश्छल भक्ति-प्रवणताने किसी भी प्रकारकी दुरीको रहने नहीं दिया है। सारा दूरत्व सिमट गया है। सच ही है, धर्मका संश्लेष सदैव एकत्त्वकी अभिवृद्धि करता है। श्री नाहटाजीका सन्मान ज्ञान-प्रवणता तथा भक्ति-प्रवणताका प्रतीक है। जिन व्यक्तियोंने इस योजनाको आगे बढ़ाया है, निःसन्देह उन्होंने मूक साधकोंकी अनवद्य साधनाको अभिनन्दित कर एक नये प्रसंगकी ओर जन-मानसको आकर्षित किया है।
ज्ञान-प्रवण तथा भक्ति-प्रवण श्री भंवरलालजी नाहटा : ४०१
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