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________________ ४९ Jain Education International धन्य हो रहा अभिनंदन करके जिनका अभिनंदन श्री शर्मनलाल जैन 'सरस' सकरार ( झाँसी ) नयी दिशा दे रहा देशको, जिनका जीवन नंदन | धन्य हो गया अभिनंदन, करके जिनका अभिनंदन ॥ ( १ ) जीवनभर जिसने समाजका हर क्षण अलख जगाया । अगरचंद न हटा नाहटा, जिसपर कदम बढ़ाया ॥ किया सत्यका सदा समर्थन, तोड़ भ्रांतिका घेरा । प्रज्ञा-दीप जला धरतीपर, जिसने हरा अँधेरा ॥ दिये सकड़ों ग्रंथ, किया साहित्य देशका भारी । वृद्धापन में तरुण-गतिसे, कलम आज भी जारी ॥ ऐसे ज्ञान - दिवाकरका, हम करें किस तरह वंदन । धन्य हो रहा अभिनंदन, करके जिनका अभिनंदन ॥ (. २ ) जैन - जातिके रत्न, देश-गौरव, जन-जन के प्यारे | युगों-युगों तक रहें आप, युगके बनकर रखवारे | पाकर सत सहयोग आपका, जन-मन बने विनोदी | बीकानेर नगरकी सूनी कभी न होवे गोदी || जिसकी श्वास- श्वासने भूकी, माटी कर दी चंदन । 'सरस' कलम कर रही सरस हो उनके पदका वंदन । धन्य हो रहा अभिनंदन करके जिनका अभिनंदन ॥ व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३८५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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