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विविध उपाधियों से विभूषित किया है, सम्मानित किया है। आपकी विद्वत्ताके विषय में इससे अधिक क्या प्रमाण हो सकते हैं । जब सरदार वल्लभभाई पटेलने आबूको राजस्थानसे निकालकर गुजरात में मिला दिया था तो नेहरू सरकारने राजस्थानकी न्यायोचित मांगपर सद्विचार करना तै किया तो राजस्थानके प्रमुख विद्वानोंकी एक मंडली नियुक्त हुई जिसने आबू प्रदेशमें भ्रमणकर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, वेशभूषा, बोलचाल रीतिरिवाज आदिपर रिपोर्ट दी जिसमें आपभी एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे और उन्हीं रिपोर्टोंसे राजस्थानका उचित न्याय किया था। राजस्थानी भाषापर आपको बचपनसे ही प्रेम है । उसकी शोध में आपने हजारों रचनाएँ प्राप्त की और खोज रिपोर्टें लिखीं, भाषण दिए, ग्रंथ लिख दूसरों द्वारा भी प्रचुर निर्माण करवाया । सब कार्य मातृभाषा राजस्थानी की बड़ी भारी महत्त्वपूर्ण सेवाएं हैं ।
आपने पचासों ग्रंथों और हजारों निबन्धोंका लेखन, संपादन प्रकाशन तथा, कई पत्रोंका सम्पादन किया । जैनसाहित्य और राजस्थानी के इतिहासमें ये कार्य अभूतपूर्व और नींव के सुदृढ पत्थर हैं ।
आपके पास कोई भी छोटे मोटे पत्र संपादक आदि लेख माँगते रहते हैं और आप उन्हें निराश न कर यथोचित लेख तुरन्त दे डालते हैं यह आपके औडरदानी होनेका अद्भुत उदाहरण है जो बिना विशाल ज्ञान और लौह लेखनीके धनी बिना यह कार्य हर किसीके वशका नहीं है ।
सरकारी अर्द्ध सरकारी या जानतिक सार्वजनिक संस्थाएँ जो कार्य पचासों वर्षोंमें लाखोंके अर्थव्यय से नहीं कर सकतीं यह कार्य आपने व्यक्तिगत रूपसे समाप्त किया है। अबभी आपके पासजो प्रचुर सामग्री है पचासों विद्वानोंको सामग्री सप्लाई करनेके लिए पर्याप्त है जिससे वर्षोंतक उन्हें दिमागी खुराक प्राप्त होती रहे ।
आप साहित्यिकों के लिए तीर्थरूप हैं और ज्ञान-गरिमाकी चलती फिरती इनसाइक्लोपीडिया है । सैकड़ों वर्षोंमें एकाध व्यक्ति ही क्वचित् इसप्रकारकी निष्ठावाला और वह भी व्यापारी वर्ग में प्राप्त हो जाय तो बहुत समझिये । साधु सन्तोंकी बात दूसरी है वे भी इतना समय निरन्तर लगावें वैसे कम मिलते हैं पर गृहस्थों में इतनी अप्रमत्त जागरूपता एक अनुपम आदर्श और दृष्टान्त जैसी ही है ।
ज्ञानके खोजी : श्रद्धय नाहटाजी
श्री विजयशंकर श्रीवास्तव
अधीक्षक पुरातत्त्व व संग्रहालय विभाग, जोधपुर
ज्ञानके खोज स्वयंमें एक ऐसी उपलब्धि है— जो खोजीको अनिर्वचनीय सुख एवं आत्मिक शान्ति या संतोष प्रदान करती है और इसीके सम्बलसे वह जीवन पर्यन्त कर्मठतापूर्वक कार्यरत रहता है। श्रद्धेय अगरचंद नाहटा इसके मूर्तरूप हैं । उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के संदर्भ में मेरे मानस पटलपर 'दिनकर' जी की वे पंक्तियाँ सदा मुखरित हो उठी हैं जिसमें नाहटाजी जैसे कर्मठ व्यक्तित्वको ही स्मरण कर लिखा गया होगा, "बड़ा बह आदमी जो जिन्दगी भर काम करता है ।" निश्चयतः नाहटाजीने "ज्ञानकी खोजमें,
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३८३
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