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________________ आप आजका काम कल पर नहीं छोड़ते अन्यथा इतना विशाल कार्य कदापि नहीं हो पाता । डाक निकालने के समय तक और उसके बाद तक आप काम निपटाते रहते हैं। किसी भी धार्मिक साहित्यिक शैक्षणिक कार्यो में आप सबसे आगे रहते हैं । जयन्तियोंमें आपकी उपस्थिति अनिवार्य है। वक्तृत्व कला आपकी ओजपूर्ण और सारतत्त्वसे ओत-प्रोत रहती है। विशाल अध्ययन एवं अथाह ज्ञान होनेके कारण आप किसी भी पिक्चर पर घन्टों बोल सकते हैं और सैकड़ों पेज लिख सकते हैं। स्कूलकी पांचवीं कक्षा तक शिक्षित व्यक्ति ग्रेजुएटोंके ग्रेजुएट व डाक्टरोंके डाक्टर है । चुने हुए विषयपर डिग्री हासिल करनेवालोंको आपके अथाह ज्ञानके सामने मस्तक झका लेना पड़ता है। किसी भी विषयके शोध छात्र आपके शरणमें आनेपर ही अपनेको सही निर्देशन व नेतृत्व में आया महसूस करता है। और जिस विषयपर कुछ भी साहित्य उपलब्ध न होता हो वह आपके सानिध्यमें प्रचुर सामग्री सम्पन्न अपना अध्ययन कक्ष बना सकता है। आप बहतसे विद्वानोंके लेखकोंके कवियोंके प्रेरणास्रोत हैं व गुरु हैं। उच्चकोटिके धर्माचार्यो, साध-साध्वियों व विद्वानोंको उचित परामर्श देने योग्य होनेके कारण हर क्षेत्र में आपका आदर है और आपकी सम्मतिको बडा ही मूल्यवान व आदरणीय, करणीय गिना जाता है। व्रत नियम. वत्ति संक्षेप आप बचपनसे ही व्रतनियमकी ओर अग्रसर रहे हैं। काकाजी अभयराजजीके पास प्रायः ८-९ वर्षको उम्रमें आठम चौदस हरी न खाने व रात्रिभोजनका नियम ले लिया था। १८ वर्षकी उम्रमें नित्य पौविहार, अभक्ष्य अनन्तकाय त्याग, आचार, विदूल वासी त्याग, शीतलासातम आदि ठण्डा न खाना, आर्द्रा नक्षत्रके बाद आमफल त्याग आदि सभी श्रावकोचित नियमोंमें रहते हैं। खाने-पीनेमें रसलोलुपता नहीं, कभी-कभी ऊणोदरी आदि करना, ऊपरसे नमक न लेना, जैसा हो उसीमें सन्तोष आदि गुणोंके कारण भोजन आलोचनादि विकथाओंसे विरत रहते हैं। आप दो वखत भोजनके सिवा प्रायः कुछ नहीं लेते। प्रतिदिन प्रायः पोरसी रहती है। चाय तो कभी भी नहीं पीते, दूध भी पोरसी आनेके बाद ही लेते हैं । नवकारसीसे पूर्व तो मुँहमें पानी डालनेका प्रश्न ही नहीं । इस अवस्थामें भी कठिन परिश्रममें लगे रहना यह तो अभ्यस्त हो गया है । यात्रामें आपके पास थोड़ेसे वस्त्र बीडिंगमें डाले रखते हैं, पेटी भी नहीं रखते । आपके पास भार रहता तो मात्र पुस्तकोंका, साहित्य सामग्रीका । ग्रन्थोंका शोक इतना है कि प्रति वर्ष हजारों पुस्तकें संग्रह क हैं। नाटक, सिनेमा आदि खेल-तमाशे देखने के लिये तो आपके पास समय ही कहाँ ? बेकारीकी गपशप और हथाई करनेसे बिलकुल दूर रहते हैं। इतने व्यस्त रहते हुए भी जहाँ मिलने-जुलने जाना आवश्यक है और सामाजिक मर्यादा पालनका प्रसंग हो तो उसमें अपना समय देने में पीछे नहीं हटते। अनेक संस्थाओंसे सम्बन्धित होनेसे व सार्वजनिक गतिविधियोंको सक्रिय योगदान करने में भी आप पश्चात्पद नहीं रहते । कई वर्षोंसे आप प्रायः व्यापारसे निवृत्तसे हैं फिर भी वर्षमें दो मास अपने व्यापारिक केन्द्रोंमें हो आते हैं। कामकाज देखकर उचित निर्देश देना व पत्र व्यवहार द्वारा निर्देश करना प्रेरणा देना आपका सतत चालू रहता है । खाता बही और हिसाब किताबके काम आप तुरन्त निरीक्षण कर निपटा देते हैं। चित्रकला, शिल्पकला, पुरातत्त्व, भाषा विज्ञान व लिपि विज्ञानपर आपका अच्छा अभ्यास है। किसी भी वस्तु विषयको देखकर उसका मूल्याङ्कन करना व उसके तलस्पर्शी सतहपर अधिकार पूर्वक कह देना यह आपकी बहुश्रुतता और विशेषज्ञताका द्योतक है। कलकत्ता यूनिवर्सिटीमें आपके भाषण, बम्बई यूनिवर्सिटीमें महानिबन्ध परीक्षक होना, उदयपुर वाराणसी, दिल्ली आदि स्थानोंमें आपके विविध विषयोंमें भाषण होना इसका प्रबल प्रमाण है। विविध संस्थाओंने विद्वत्तासे प्रभावित होकर संघ रत्न आदि ३८२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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