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________________ कोरडियासे लाया । उसे कुछ रुपये सहायता दी । पालीतानेके कुछ लेख संग्रह किये । सतीवाब के शिलालेख को प्रगट करके ऐतिहासिक भ्रांति दूर की। यु० प्र० श्री जिनचन्द्रसूरि ग्रन्थ जिनकृपाचंदसूरिबीको पालीताने जाकर भेंट किया। आबूजी में विद्याविजयजी जयंतविजयजी आदिसे मिला। उनके शिलालेखादि देखे । यु०प्र० जिनचन्द्रजीके महान् शासन सेवा प्रकरणके पृष्ठ उनके अनुरोधसे बदल डाले जिसमें सिद्धि चन्द्रका नाम था । काकाजी अगरचंदजीने सं० १९८५ के बाद रात्रिभोजनका त्याग कर दिया। प्रतिदिन हम सुखसागर के साथ प्रतिक्रमण करते । हमें महीने में बारह दिनका हरी, रात्रिभोजनका त्याग था । चौमासे में तो मैं ये भी रात्रिभोजन त्याग दिया। बाकी दिन तिथिके अतिरिक्त काम पड़ता तो रात में कभी-कभी भोजन हो जाता पर सं० २०१० से सर्वथा त्याग दिया । काकाजी की स्वाध्याय क्रम बहुत जबर्दस्त था, श्रीमद्राजचंद, देवचन्द, आनन्दघन, चिदानन्द आदिके साहित्यका विशेष था । सिलहटके व्यस्त व्यापार में भी सामायिक दोनों वक्त होता था। एक बार आप कालीघाटके मकान में सामायिक कर रहे थे । रातका समय, आग लगी जोर की । बगलमें हमारा किरासन गुदाम और सामने मकान थे । सामने आग बढ़ती देखकर काकाजीको कहा आप उठिये, सर्वनाश हो जायगा । उन्होंने कहा— कोई चिन्ताकी बात नहीं। गुरुदेवकी कृपासे अग्नि शांत हो गई। आत्मविश्वास बड़ी चीज है । आपकी लेखसिद्धि इतनी जबरदस्त है कि किसी भी विषय में और कैसा भी जटिल हो तुरंत दस-बीस पेज लिख डालना आपके लिए आसान है । लोगोंको लेखन कार्यके मूडकी आवश्यकता होती है लेकिन यहां तो हर समय इसके लिए प्रस्तुत हैं । समयका काकाजी इतना सदुपयोग करते हैं कि सुबह से रात ग्यारह बजे तक निरर्थक पांच मिनट भी खोना आपको मर्दाश्त नहीं रोज इतनी डाक आती है पर जवाब हाथका हाथ दे देते हैं। लायब्रेरीकी तीस चालीस हजार मुद्रित और तीस पैंतीस हजार हस्तलिखित प्रतियों में से कोई भी पुस्तक तुरंत निकालकर प्रस्तुत कर देते हैं। किसीसे कुछ भी लेखादि तैयार कराना हो तो स्वयं मिनिटोंमें सारा साहित्य-साधन जुटा डालते हैं। आवश्यकताएं अस्प हैं अतः मुसाफिरीमें इनेगिने कपड़े बेडिंगमें डालते हैं और उसमें भी भार अधिकतर पुस्तकोंका ही रहता है। मुसाफिरीमें पेटी रखते नहीं यदि कुली नहीं मिला तो स्वयं ही बगलमें डालकर चल पड़ते हैं । कहीं भी जावें इतना व्यस्त प्रोग्राम रहता है कि दस दिनका काम एक दिनमें सलटा डालनेकी तमन्ना-शक्ति होनेसे अविश्रान्त उसी धुन में लगे रहते हैं । यही कारण है कि आपकी रेल मुसाफिरी प्रायः कष्टकर होती है क्योंकि पहले रिजर्वेशन कराते नहीं और कार्य व्यस्ततासे गाड़ी छूटते छूटते जाकर पकड़ते हैं । खानेपीनेकी पर्याह नहीं, दो वक्त खानेके अतिरिक्त व्यस्ततामें कुछ लेनेका अवकाश ही कहाँ । भागते दौड़ते जीमे और तुरंत चौविहार किया। रोज पांच छः सामायिक कर लेना आपका नित्यक्रम है । इसे हम श्रुत सामायिक कह सकते हैं क्योंकि अधिकांश स्वाध्याय ग्रंथोंका अध्ययन ही रहता है । इतने व्यस्त प्रोग्राम में भी व्याख्यान, पूजा, सभा-सोसाइटीमें जानेका समय निकाल लेते हैं क्योंकि उनके उद्देश्योंमें शारीरिक खुराक से अधिक बल मानसिक या आत्मिक खुराककी ओर बना है। विशाल अध्ययन । काकाजी अगरचंदजीके बहुश्रुत होने में इनके स्वाभाविक गुण विशेष कारणभूत हैं। ये अपना समय पर्थ एक मिनट भी नहीं खोते । ग्रन्थालय में जो भी ग्रंथ आते है एक बार सभीपर दृष्टि प्रतिलेखन हो जाता है और जो पढ़ने योग्य हैं उन्हें पूरा पढ़ डालते हैं । यदि कहीं भी भूल भ्रांति विदित हुई तो तुरंत संशोधन अंडर लाइन आदि कर डालते हैं । विशेष संशोधन योग्य हुई तो उन मूल भ्रांतियोंके सम्बन्धमें लेख भी लिख डालते हैं प्रेरणादायक गुणोंके अनुकरण हेतु जनतामें उन 'थोंका परिचय करानेवाले नोट भी व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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