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________________ जिसे उन्होंने परोपकार, सेवाभाव और जनहित सम्पादन करके अर्जित किया था । वह सुखद कीर्ति आज भी है और तब तक रहेगी ; जब तक उनके वंशजों में मानवता, परदुःखकातरता, सेवा वृत्ति और सत्कर्माचरण भावनाका सन्निवास है । शंकरदानका शरीर चला गया लेकिन नाम शंकरदान अमर रह गया । आन-बान और स्वाभिमानके धनी जिस नाहटावंशको ताराचन्द्रजी जैसे सुयोग्य सत्पुत्रने राजप्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान और सुग्राम में शुभ फलद स्थायी आवास दिया, उदयचन्द्रजी नाहटा जैसे मनस्वी, कर्मवीर, वंशज जिसे व्यवसाय विदग्धता, कर्मशीलता और श्रीसम्पन्नता प्रदान को; श्रष्ठिरत्न शंकरदान नाहटाने अपने सेवाभाव, उदारवृत्ति और साधनानिष्ठा से जिस वंशकी फलकीर्ति को चतुर्दिक् प्रसारित किया; समाजप्राण, वाग्मी नररत्न सेठ श्रीभैरूंदानजी नाहटा जैसे उत्साही, समाज और राष्ट्रसेवी व्यक्तित्वने जिसे चिन्तनशील-विवेक-बल दिया; स्वर्गीय श्री अभयराजजी नाहटा जैसी प्रतिभाशील देवमूत्तिने जिसे अपनी अद्भुत क्षमता, विनयशीलता और विद्वत्तासे विस्मयाविष्टपूर्वक विषादावृत भी किया, श्रीशुभैराजजीकी शुभदृष्टि से जो कल्याणसुखासीन बना और श्री मेघराजजी नाहटाकी लगनशीलता, मिलनसारिता और परोपकारिताने जिसे उच्चासनस्थ बनाया। ऐसे श्रीसम्पन्न, विपुलपरिवारयुक्त बीकानेरवासी नाहटा परिवार में श्री शंकरदानजी नाहाकी धर्मपत्नी श्री चुन्नीबाईकी दक्षिण कुक्षिमें संवत् १९६७ मिती चैत्र कृष्णचतुर्थी को बीकानेर में कनिष्ठ किन्तु कनिष्ठिकाधिष्ठित एक सारस्वत नररत्न उत्पन्न हुआ, जो हमारा चरितनायक है और जिसे भारत और भारतेतर भूभागका लक्ष्मी और सरस्वतीका संसार श्रीअगरचन्द नाहटाके नामसे सम्यवतया जानता है चौथ सुतिथि मधुमास पुनीता, कृष्ण पक्ष शुभग्रह सुख प्रीता । शंकर सुत मा चुन्नी नन्दन, प्रगट भए श्री गोष्पति मंडन || अर्थात् — चैत्रमासकी कृष्णा चतुर्थीको माता चुन्नीबाईको प्रसन्न करनेवाले श्री शंकरदानके पुत्र जो लक्ष्मपति और वाणीपतिके आभूषण हैं, उत्पन्न हुए । ' विशेष पुरुषों के जीवन के साथ कोई न कोई असामान्य घटना या बात प्रायः संलग्न रहती है । हमारे चरित नायक भी इसके अपवाद नहीं रहे हैं । सामान्यतः जातकका 'नामकरण' उसके जन्मके पश्चाद्वर्ती होता है, परन्तु हमारे चरितनायकका नामकरण जन्मसे पहिले ही हो गया था । उत्पत्तिसे पूर्वका यह नामकरण सहेतुक था । संवत् १९५८ में गवालपाड़ा (आसाम) से १०-१२ मील दूर स्थित 'चापड़' नामक स्थानपर नाहटा वंशजोंने एक राजरूप लक्ष्मीचन्द नामसे दुकानका श्रीगणेश किया था । बाद में नाम बदलने की आवश्यकता होनेपर संवत् १९६६ में भीनासर ( बीकानेर ) के सेठियोंने उस दुकानमें अपने पूर्वजका नाम अगरचन्द सहनाम के रूपमें रख दिया। इस प्रकार उस दुकानका नाम " अभयकरण ( नाहटा ) अगरचन्द ( सेठिया ) " चल पड़ा । पर चतुर व्यवसायी नाहटोंके मुनीम श्री सदारामजी सेठियाको इस अनपेक्षित नामके भावी परिणामको समझने में विलम्ब नहीं लगा । उन्होंने झटिति निर्णय लिया कि नाहटा वंशमें अब जो भी प्रथम पुत्र उत्पन्न होगा, उसका नाम 'अगरचन्द' ही रखा जायेगा । इस निर्णयके उपरान्त हमारे चरितनायकका जन्म हुआ और उन्हें पूर्वनिश्चित नाम 'अगरचन्द' प्राप्त हुआ । इस प्रकार आपने अपने जन्म से पारिवारिकों की दुश्चिन्ताका उन्मूलन तो किया ही, साथ में व्यापार संवृद्धिका शुभ संकेत भी दिया । जब आप कुछ बड़े हुए तो आपने अपनेको एक भरे-पूरे परिवारका सदस्य पाया। पिता, माता, चार सहोदर, दो बहिनें, बाबा षडीया, चाचा, चाची, दादियाँ, बड़ी माँ आदिको पर्याप्त संख्या थी । घरमें सेवाभावी और नौकर - नौकरानी थे । घर ग्रामीण संस्कृति और नागरिक सभ्यताका केन्द्र बना हुआ था। बीकानेर के १. कविवर आचार्य चन्द्रमौलि - नाहटा प्रशस्तिकासे उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only जीवन परिचय : १९ www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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