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________________ निवास भवनमें ग्राम डांडूसर और उसके आसपासके व्यक्ति प्रायः आते ही रहते थे और पूर्ण सत्कार पाते थे। उस सेवा-टहलमें घरके सभी आबालवृद्ध सक्रिय रहते थे। बालक अगरचन्दको भी यथाशक्ति सेवाका संभार वहन करना पड़ता था । चूँकि नाहटा बन्धुओंका व्यापार दूरवर्ती परदेशमें था, अतः वहाँसे आनेवाले व्यक्ति भी दूकानका कुशल-समाचार अथवा कोई वस्तु देनेके लिए आते थे और रोचक अनुभव सुनाते थे। स्थानीय व्यक्ति भी अपनी विविध समस्याओंका समाधान पानेके लिए उपस्थित होते थे। इस प्रकार श्री नाहटाका घर उनके शैशवमें विभिन्न प्रवृत्ति के लोगोंका केन्द्रस्थल बन गया था और उसके प्रत्यक्ष और परोक्ष संस्कार बालक अगरचन्दपर भी जम रहे थे। शैशवमें हमारे चरितनायकका सबसे प्रियपात्र था लाभू बाबा। वह नाहटा-परिवारका अत्यन्त विश्वस्त भत्य था, लेकिन सारा परिवार उसे अपना अभिन्न अंग समझता था और उसका आदर करता था। श्री भंवरलालजी नाहटाने उसका बड़ा सुन्दर रेखाचित्र खींचा है __'धोते मढेरो छोरो, जवान हो जद वहीं म्हारै घरमें रैवतो आयो हो। हो तो बौ दो रुपियां को महीनदार पण म्हारा घररां लोगां उणन कदेई नोकरको समझियो नीं-कोई छोटा अर कोई बड़ा-सगला उणरो आदर करता । बड़ा लोग लाभू, लुगायां लाभूजी अर म्हे टाबर 'लाभूबाबोकै बतलावता।'' लाभू बाबा बच्चोंको कहानियाँ, दोहे, भजन, हरजस बात आदि सुनाता था, उन्हें गोदी-कंधे और पीठपर बिठाकर काम करता था, जिससे बच्चे बड़े ही प्रसन्न रहते थे। वह बच्चोंके साथ खाता भी था, उन्हें खिलाता भी था और उन्हें थपथपाकर सुलाता भी था। श्री भंवरलालजी नाहटाके शब्दोंमें : "टाबरां ने, विसेसकर म्हां तीनों नै-काकोजी मेघराजजी, काकोजी अगरचन्दजी, और मन, बड़ी हीयाली सूराखतो। एक नै गोदीमें, दूजा ने खांधा माथै अर तीजै नै मगरां माथै राखियाँ काम करतो रतो । म्हांनै घणां ओखाणा अर दूहा सुणावतो । सिंज्या पड़ती जद म्हें लाभू बाबा ने बात कैवण वासतै पकड़ने बैठाय लेता। बाबो म्हारी फरमास अर रुचि मुजब बांता सुणावतो-कदेई रामायण री-कदेई महाभारतरी कदैई इतिहास री, कदैई धूनीरी, कदैई पैलाद री, कदैई नरसी जी रै माहेरैरी"२ । लाभू बाबा एक क्षण भी व्यर्थ और बिना काम बैठना नहीं चाहता था। वह कुछ न कुछ गाता जाता था और तल्लीनतापूर्वक काम करता रहता था। उसे अनेक 'ख्याल' याद थे-प्रभातियाँ याद थीं-रामचरित मानसकी चौपाइयाँ-दोहे, नीति-वचन आदि प्रायः कंठस्थ थे। वह कहा करता था-'नांणो अंटरो, विद्या कंठरी'३ । नाहटा-परिवार लाभू बाबा की अन्तिम समय तक इज्जत करता रहा और आज भी उस प्रेमपुजारी की स्मति उसमें वैसी ही बनी है। श्री भंवरलालजी नाहटाके शब्दोंमें "लाभू बाब नै सर्गवासी हयां आज तीस बरस हग्या; पण म्हारै मनमैं बाबरी अर बाबै रै गुणांरी याद आज भी ताजी है''४ । हमारे चरित-नायक अब भी लाभू बाबाका गुणगान करते नहीं अघाते । लाभू बाबाका निष्कपट सहज स्नेह, उसकी श्रमशीलता और उसका आत्मीयभाव-जब उनके स्मृति पथमें आते हैं तो वे सुदूर अतीतमें खो जाते हैं और उसके व्यक्तित्वसे प्रेरणा प्राप्त करतेसे प्रतीत होते हैं।। श्री नाहटाजीको जब अपनी शैशवलीलाका एक अन्य पात्र याद आता है तो भी वे थोड़ा सा मुस्करा देते हैं। उनके चेहरेकी सहज गंभीरता एक क्षणके लिए दूर हट जाती है और वे स्मितिके साथ उसका नाम १ श्री भंवरलाल नाहटा-बानगी पृ० ७ । २. श्रीभंवरलाल नाहटा-'बानगी' पृ० ८ । ३. श्रीभंवरलाल नाहटा-बानगी पृ० ७ । ४. श्रीभंवरलाल नाहटा-बानगी पृ० ९। २० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International www.jainelibrary.org | For Private & Personal Use Only
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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