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________________ नाहटाजी केवल विचारक व लेखक ही नहीं, कर्मठ कार्यकर्ता व सुधारक भी हैं। समय-समयपर अपने समाजको महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये एवं उन्हें व्यावहारिक व रचनात्मक रूप भी दिया। अभी-अभी आपने एक अत्यन्त उपयोगी सुझाव प्रस्तुत किया है कि श्वेताम्बर समाजके अनेक विद्वान् व विचारक जो छिपे व इधर-उधर बिखरे हुए हैं, उन्हें प्रकाश में लाया जाय और इन्हें संगठित कर परस्पर प्रेरणा देने, प्रगति करने, पूरक बनने व ऊंचा उठानेके लिए प्रोत्साहन दिया जाय । सर्वतोमुखी प्रतिभाके धनी नाहटाजी भारत की अमूल्य निधि हैं। आपने तन, मन, धन, लेखन, प्रवचन आदिसे धर्म व समाजको जो महान् सेवा की है एतदर्थ आप शतशः अभिनंदनके पात्र हैं । आप शतायु हों धर्म, समाज व राष्ट्रकी सेवा करते रहें, यही मेरी शुभ भावना है। मूर्तिमान् ज्ञानकोष-श्री नाहटा श्री भंवरलालजी पोल्याका जबसे मैंने होश संभाला और हिन्दी पत्र-पत्रिकाओंको रुचि मेरे हृदयमें जागत हई तबसे ही श्री अगरचन्दजी नाहटासे उनकी कृतियोंके कारण मेरा परोक्ष परिचय हुआ। पत्रिकाओंमें जिन लेखकोंकी रचनाएँ मैं ध्यानपूर्वक पढ़ता था उनमें श्री नाहटाजी भी थे । शायद ही कभी ऐसा हआ हो कि उनकी लिखी कोई रचना मेरे हाथमें आई हो और मैंने उसे बिना पढ़े छोड़ा हो। इसका कारण था उनकी रचनामें अकाट्य युक्तियों एवं तर्को द्वारा तथ्योंका प्रस्तुतीकरण । जब किसी विद्वान् द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत वे अपनी बात उसके विरुद्ध रखते थे तो सचमुच ही बड़ा आनन्द आता था। एक विद्वान् द्वारा दूसरे विद्वान्की स्थापनाओंका निराकरण उनके निबन्धोंमें पढ़ता था तो एक प्रकारसे आत्मतुष्टिका अनुभव करता था। तुष्टिपानका यह लोभ ही मुझे प्रारम्भमें उनकी रचनाओंको पढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा। अब भी यह प्रवृत्ति कायम है किन्तु दृष्टिकोणमें परिवर्तन हो गया है। अब उनकी रचनाएँ मैं अपने स्वयं के ज्ञानकोषकी वृद्धि हेतु ही पढ़ता हूँ। श्री नाहटाजीका जन्म बीकानेरके एक व्यापारिक परिवारमें हुआ अतः इनके पिताकी इच्छा इन्हें एक सफल व्यापारी बनाने की रही हो तो इसमें आश्चर्य क्या ? उनके पिताकी यह इच्छा फलवती भी हई और श्री नाहटा साहित्य सेवीके साथ-साथ सफल व्यापारी एवं लक्ष्मीपति भी बने । शायद यही कारण है कि उनकी रहन-सहनमें एक व्यापारीको सादगी परिलक्षित होती है । ऊँची चौड़े पाड़की बीकानेरी ढंगसे बंधी पगड़ी, श्यामल चेहरे पर घनी काली मूछे, लम्बा बन्द गलेका कोट और घुटनोंसे कुछ ही नीची तीन लांगकी धोती इस पहनावेमें वे सचमुच ही पहली नजरमें कोई सेठ मालूम होते हैं । बिना परिचय दिये कोई शायद ही उन्हें इस वेषभूषामें साहित्यकारके रूपमें अनुमान कर सके । इस सम्बन्धमें स्वर्गीय पूज्य गुरुदेव श्री पं० चैनसुखदासजी एक संस्मरण सुनाया करते थे। नाहटाजी जब प्रथम बार किसी कारणवश जयपुर आए तो स्वभावतः वे पण्डित साहबसे मिलने हेतु संस्कृत कालेज आए। पण्डित साहब उस समय ३७२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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