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" अभय जैन ग्रन्थालय " अपने आपमें विशिष्ट स्थान बनाये हुए है। इसमें लगभग ४० हजार हस्तलिखित एवं उतनी ही मुद्रित अर्थात् लगभग ८० हजार ग्रन्थों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है । आपने अपने अग्रज स्व. श्री अभयराज जी नाहटाकी स्मृति में स्थापित 'श्री अभय जैन ग्रन्थमाला' से २५ ग्रन्थ प्रकाशित कराये हैं । इसके अतिरिक्त अपने पिताकी स्मृति में स्थापित 'सेठ शंकरदान नाहटा कला भवन' में दुर्लभ सिक्कों, प्राचीन प्रतिमाओं एवं नानाविध कलाकृतियोंका महत्त्वपूर्ण संग्रह है । आप राजस्थानमें चल रही साहित्यिक प्रवृत्तियों के संरक्षक एवं पोषक रहे हैं । आपको लगत एवं अथक प्रयास के फलस्वरूप ही आज राजस्थान के विभिन्न साहित्यकारों की रचनाएँ प्रकाश में आ सकी हैं ।
इस उत्कट साहित्य साधनाके अलावा आपका व्यक्तिगत जीवन भी विशेष महत्त्वका है । आपका जीवन सादगी, सच्चरित्रता एवं निष्कटतासे ओतप्रोत है । आपके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता नियमितता है । प्रातःकालीन ब्राह्ममुहूर्त में उठकर सामायिक जैसी पवित्र एवं जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण क्रियासे अपनी दिनचर्या आरम्भ करते हैं एवं साहित्य व धार्मिक आराधना से ओत-प्रोत क्रियाएँ रात्रिके ११ बजे तक अबाध गति से चलती हैं । इसमें व्यवधान उत्पन्न नहीं होता ।
शासनदेव से प्रार्थना है कि इस नरपुंगवको दीर्घायु प्रदान करें, जिससे वे लम्बे समय तक देश व समाजकी सेवा कर सकें ।
श्रेष्ठिवर श्री अगरचन्दजी नाहटा
श्री कन्हैयालाल लोढ़ा एम. ए.
श्रेष्ठिवर श्री अगरचन्द जी नाहटा राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक हैं । आपने धर्म, दर्शन, आचार, नीति, साहित्य, इतिहास आदि विविध विषयोंका सुन्दर व सांगोपांग विवेचन किया है उससे आपकी प्रखर बुद्धि, मौलिक विचार एवं प्रकर्षविद्वत्ता स्पष्ट झलकती है ।
आपका स्वभाव बड़ा ही मिलनसार, हृदय बड़ा उदार, बुद्धि बड़ी ही प्रखर, और विचार बड़े ही गम्भीर हैं । आपके मिलनसार स्वभाव एवं उदार हृदयका ही प्रभाव है कि केवल जैनसमाज नहीं अपितु प्रत्येक समाज व संस्था आपकी उपस्थिति व सदस्यतासे अपनेको सौभाग्यशाली मानती है ।
आपकी शोध में विशेष रुचि है । प्राचीन साहित्यका अनुसंधान करते समय आपके समक्ष जो नवीन विषय-वस्तु आई वह जिस धर्म, सम्प्रदाय, संस्था, पत्रके लिए उपयोगी है, उसे निष्पक्षभावसे लेख-बद्ध कर भेज दी । आप अनेक शोधकर्त्ता छात्रोंको बराबर मार्गदर्शन कर प्रेरणा देते व उत्साह बढ़ाते रहते हैं । भारत के ऐतिहासिक शोध कार्यमें आपकी महत्त्वपूर्ण देन है ।
आप सरलता, सहृदयता, सज्जनता एवं सदाशयताकी तो साक्षात् मूर्ति ही हैं । इन गुणोंसे सभी संस्थाओं व व्यक्तियोंसे आपका आत्मीय संबंध है । आपका उद्देश्य सदैव सर्जनका रहा है विध्वंसका नहीं । अतः आपने संस्था व व्यक्तिकी उन्नति में ही सदैव योगदान दिया है, उसके दोषोंपर दृष्टि डालकर द्वेष कभी नही किया ।
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व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३७१
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