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________________ ही पहनते हैं । सच ही तो है-व्यक्ति वस्त्रोंसे नहीं, गणोंसे पहचाना जाता है। यही नहीं, भावोंकी उच्चताके कारण आप कई शुभ कार्यो में आर्थिक योग भी देते रहते हैं । सात्त्विक जीवन यापन करते हुए भी आप अपने अध्ययनको निरन्तर विस्तृत बनाते जा रहे हैं। अध्ययन व लेखन कार्यमें व्यस्त होते हुए भी आप समय-समय पर विभिन्न सभाओं, आयोजनों में भी सम्मिलित होते हैं व हर आगन्तुकसे इस तरहका व्यवहार करते हैं कि इसका तो स्वयं ही अनुभव किया जा सकता है। आपको भाषण कला व शैली अत्यन्त आकर्षक एवं ज्ञानवर्द्धक है । आपके विस्तृत व्यक्तित्वका अनुभव तो सम्पर्कमें आकर ही किया जा सकता है। जहाँतक मेरा नाहटाजीसे परिचयका संबन्ध है, मुझे अपने आपपर गर्व होना चाहिए कि श्रीनाहटाजी मेरे अत्यन्त निकट सम्बन्धी व पूज्य हैं। परन्तु हम नवयुवकों का यह दुर्भाग्य ही है कि हमने घरकी ज्ञानगंगासे भी लाभान्वित होनेका कभी प्रयास तक नहीं किया । यद्यपि कुछ साथी प्रसंगवश कहा करते है कि श्री नाहटाजी के निर्मल ज्ञानका लाभ अवश्य प्राप्त करना चाहिए मगर व्यवहारमें कोई भी उनके पास बैठकर उनके विचारोंसे लाभान्वित होनेका प्रयास नहीं करता , तथापि नाहटाजी स्वयं मुझे बुलाबा भेजकर कुछ देना चाहते हैं। मैंने अनुभव किया है कि आप इस ६१ वर्षकी वृद्धावस्थाके बावजूद अपनी साधनामें ज्योंके त्यों संलग्न हैं । आपकी कार्यक्षमता अद्भुत है । आप पुस्तकालय व संग्रहालयके संचालन, पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदिके लेखन व प्रकाशनके साथ ही रात्रिमें ग्यारह बजे तक अध्ययन भी किया करते है और सुबह भी ब्राह्ममहत में उठकर फिर अपनी साधनाम जुट जाते हैं। साहित्यिक साधनाके अतिरिक्त आप धामिक क्रियाएँ-सामायिक, प्रतिक्रमण, देवपूजन, आदि भी नियमित रूपसे करते रहते हैं । निष्कर्ष के तौरपर हम यही कह सकते हैं, कि नाहटाजी अपनी साधनाकी सफलता हेतु हर संभव उचित प्रयास करते हैं। वह गृहस्थमें रहते हुए भी अत्यन्त सरल व सात्त्विक जीवन यापन करते हैं। आवश्यकता इस बातकी है कि आपके नवयुवक व सम्पूर्ण नयी पीढ़ी श्री नाहटाजीके लिये दीर्घायुकी कामना करते हुए उनके जीवनसे गुणग्रहण करके साहित्य व समाजकी सेवा की ओर प्रवृत्त हो। आपके द्वारा इस पवित्र वसुन्धरा पर निरन्तर ज्ञान सुधारसको वृष्टि होती रहे-यही कामना है। राजस्थानकी महान् विभूति श्री अगरचन्दजी नाहटा श्री देवेन्द्रकुमार कोचर (B. Com. LL. B.) राजस्थान बहत प्राचीन कालसे ही अपने शौर्य, साहित्य एवं कलाके कारण अपना विशिष्ट स्थान बनाये हए है। राजस्थान अनेक प्रसिद्ध शूरवीरों, विद्वानों, कवियों एवं कलाकारोंकी जन्मभूमि होने के साथसाथ उनकी प्रश्रय भूभि भी रहा है, जिनका भारतीय इतिहास में विशिष्ट स्थान है। अर्वाचीन कालमें राजस्थानकी भूमि जिन महान् विभूतियोंको जन्म देकर कृतार्थ हुई, उनमें एक विभूति श्रीअगरचन्दजी नाहटा भी हैं। . साहित्यके क्षेत्र में इनका योगदान विशेष महत्त्वका है। स्वयं जाने माने लेखक सम्पादक होने के साथसाथ अनेक साहित्यकार आपके सानिध्यसे आज देशमें अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त कर चुके है। आपका ३७० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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