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________________ तो लगभग सफल हो गया हूँ किन्तु उनके व्यक्तित्वको पूरी तरहसे समझना उतना सरल और सहज नहीं अतः अभिनन्दनके इस अवसर पर आड़ी-तिरछी रेखाओंसे उनके व्यक्तित्वका एक लघु रेखाचित्र प्रस्तुत करते हुए मैं शुभकामना करता हूँ कि वे सफल स्वास्थ्यपूर्ण शतायु बनकर साहित्यकी सेवा करते रहें । श्री अगरचन्द नाहटा : एक व्यक्तित्व श्री ताजमलजी बोथरा 1 भाई साहब श्री अगरचन्दजी नाहटासे मेरा सम्बन्ध हुए प्रायः ४ युग व्यतीत होने आये हैं । सं० १९८४-८५ की बात होगी जब हम गाँव पूनरासर में रहा करते थे और बीच-बीच में मैं बीकानेर आया करता था । उस समय पूज्य महाराज साहब १००८ श्री जिन कृपाचन्द्रसूरिजी इनके बीकानेर स्थित नोहरे में ही विराजा करते थे और उक्त महाशय, पूज्य महाराज साहबकी सेवामें प्रायः वहीं मिलते। उनसे वहीं बीच-बीच में मुलाकातें होतीं । इस तरह सं० १९८७ की वह शुभ घड़ी भी आई जब कि हम लोग बीकानेर में आ बसे तबसे हमारा और इनका सम्पर्क बढ़ने लगा । हमारा सम्बन्ध दृढ़तर होनेका यह भी एक कारण या कि इनकी पूज्य मातुश्रीजी बोथरोंकी लड़की होनेके नाते मेरे पूज्यपिताजीको भाईजीके नामसे सम्बोधित किया करती थीं, और वे इनको बाई साहबके नामसे सम्बोधित किया करते थे, इस तरह इन भाई-बहिनों का संबंध भी दृढ़तम हो गया। पिताजीको ये लोग मामाजी और हमलोग इन भाइयोंको भाई साहब के नामसे पुकारते। इस तरह हमारा समागम बढ़ने लगा। समागम जरूर बढ़ने लगा पर केवल व्यावहारिकही ज्ञान गरिमा की दृष्टिसे नहीं मुझे कई जगह इनके साथ यात्रा करनेका सुअवसर प्राप्त हुआ। कई तीर्थों एवं मीटिंगों आदिमें भी इनके साथ गया । आपका व्यापारिक ज्ञान भी उच्चकोटि का था। आप पहले आसाममें जहाँ कि आपका कारोबार था, जाया करते थे और महीनों वहीं रहा करते तथा काम-काज देखा करते थे पर उस व्यस्तता पूर्ण वातावरण में भी आपका साहित्यिक प्रेम स्पष्टरूपसे परिलक्षित होता था । जब देखिये तब साहित्य सेवामें ही लीन । व्यापारिक कार्योंसे अवकाश मिलते ही आप साहित्य साधना में जुट जाया करते थे। यहाँके योग्य विद्वानों, साहित्यकारोंसे मिलना-जुलना समय-समय पर जब भी धार्मिक, जयंतिया, सभाष आदिका भव्य आयोजन होता उस समय स्थानीय विद्वान् मंडलिया आदि साहित्यिक गोष्ठी आदिका आयोजन करना अपनी अपनी साहित्यिक अभिरुचिका परिचय देता रहा। इस तरह कई वर्ष समयकी गतिने आपके कार्यक्रमोंमें भी कुछ परिवर्तन कर दिया। इधर अब कई वर्षोंसे वर्ष में एक बार जाते हैं, उसमें भी तो कई घण्टा वही काम । जब मैं इनकी साहित्य सेवाका अन्दाज लगाता है तो मस्तिष्क चक्कर काटने लगता है। दैनिक एवं मासिक लेकर प्रायः एक सौ तो पत्र आते हैं । उन सबोंको देखना जिनको कुछ लिखना आवश्यक हो उनको लिखना, अन्यान्य विषयों पर लेख लिखवाना, कई पत्रादि लिखवाना, आये हुए महानुभावोंसे बातचीत ३६६ :: अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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