________________
अलंकृत कर रहे हैं । मुझे भी इस ग्रंथ हेतु कुछ लिखनेका आदेश मिला है सो, सोहनराज द्विवेदीकी उस रावतीके अनुसार
वन्दाके इन स्वरोंमें एक स्वर मेरा भी मिला लो।
हो जाओ बलिशीश अगणित एक स्वर मेरा भी मिला लो । के अनुसार मैं भी चन्द पंक्तियाँ लिख भेज रहा हूँ सो स्वीकृत की जाँय । ऐसे मौकेपर मैं भी उन्हें
__"प्रबुद्ध चमकते जैन सितारे" उपाधि प्रदान कर दूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कि यह बात गलत हो। इसी आशाके साथ मैं लेखक भी आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ छोटी-सी सामग्री श्रद्धारूप भेज रहा है सो अभिनन्दन ग्रन्थ द्वारा उनके चरणकमलोंको सदा-सर्वदा छुती रहे तथा उनके दीर्घ जीवनकी प्रभु पितासे प्रार्थना भी करती
नाहटा बन्धुओंकी विशिष्ट उपलब्धि
श्री शुभकरण सिंह हमारे लिए तरुण वय काल था अतः इसे विवर्तकाल भी कहें तो अयुक्त नहीं होगा । सभीके जीवन मैं यह समय आता ही है एवं अपने-अपने संयोगके अनुसार उपलब्ध वातावरणका स्थायो-अस्थायी प्रभाव ग्रहण करना ही पड़ता है किन्तु जब किसीको उस वयमें सामान्योंकी भांति राग-रंगकी प्रवृत्तियोंसे तनिक सम्हल कर विद्याध्ययनका विस्तृत अवकाश न मिलने पर भी, पठन-शोध-लेखन वृत्तिकी ओर सोत्साह झुकते ही नहीं, बढ़ते हुए देखा तो स्वभावतः आकर्षण हुआ। प्रेरणाका स्रोत कुछ भी क्यों न हो कायिक आमोदप्रमोदके बहावसे अपने आपको यथा संभव वंचित रख एवं सुसांसारिक नियमोंका यथाशक्य अनुगमन कर जीवनकी धाराको अपने पारिवारिक व्यवसायका अवलम्बन करते हए भी साहित्य-साधन व ज्ञानार्जनकी ओर उन्मुख करना उस वयमें असहनीय कहा जायेगा।
नाहटा बन्धुओंने अपने जीवनके प्रारम्भमें ही साहित्य-साधनाका आग्रह मानों अतीताजित संस्कारोंसे पाया हो-ऐसा प्रतीत होता है । कलकत्ता महानगरीमें हम कतिपय समरुचि मित्र यत्र-तत्र सप्ताहांतमें सन्ध्या समय उन दिनों किसी स्थान पर परस्पर-नैतिक-धार्मिक विचार चिन्तनके लिए एकत्रित हुआ करते थे । इन प्रसंगोंमें नाहटा बन्धुओंका सहयोग अनिवार्य था। चर्चा प्रसंगमें अनेक संध्याएं प्रातःकालमें परिणत हो जाती-समय, विचार आदान-प्रदानमें बहता रहता नाहटा बन्धु ॐबते कभी नहीं देखे गये। विशेषकर श्री अगरचन्दजी अपनी मधुर स्वर-लहरीमें योगी आनन्द घनजीके पद या स्तवनोंको गाते व उन पद्योंमें भरे हुए आध्यात्मिक भावोंका स्पष्टीकरण करने व उन्हें हृदयंगम करने की चर्चा-धारा बह चलती। जीवनको कैसे विवेककी ओर बढ़ाया जाय ? जैन संस्कार पाकर भी तदनुसार जीवनको मात्र
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३६१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org