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________________ परिणाम होगा । और इससे बढ़कर मैं उनकी उदारता देखकर दंग था कि 'तेरापन्थ' के इतर सम्प्रदायके अनुयायी होने पर भी उनमें संकीर्णताका कहीं भी लेशमात्र नहीं है। नाहटाजीके सम्पर्कमें जो व्यक्ति आते हैं वे उनकी सहज सहयोग देनेकी उदार वृत्ति, सादगीसे जीवन यापन करनेकी प्रवृत्ति, विज्ञापनसे अरुचि, मिथ्या आडम्बरसे विरक्ति, तथा आत्मीयताकी भावनासे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते । अपने परिचित किसी छोटे या महान् व्यक्तिके यहाँ खुशी या गमीके अवसर पर जाने में वे संकोच नहीं करते। उनके व्यवहारमें निष्कपट भाव सर्वदा देखनेको मिलता है। ___अन्तमें कृतज्ञता पूर्वक इतना ही कहना पर्याप्त समझता हूँ कि नाहटाजीके जिस स्नेहका भाजन मैं बन सका हूँ बस मेरे लिए गौरवकी बात है। ऐसे महान् व्यक्तित्त्वकी अहैतुक कृपाका ध्यान आते ही सिर श्रद्धासे नत हो जाता है। मनमें सदैव कामना रहती है कि श्रद्धेय नाहटाजी चिरंजीवी हों तथा साहित्यिक शोध-साधनामें रत रहकर माँ भारतीके अक्षय भण्डारको अलभ्य रत्नोंसे अलंकृत करते रहें। वयोवृद्ध, तपोवृद्ध एवं ज्ञानवृद्ध श्री नाहटाजी श्री जयशंकर देवशंकर शर्मा श्री अगरचन्दजी नाहटा जैसे प्रतिभासम्पन्न व्यक्तिक लिये लिखना सूर्यको दीपकसे दिखानेके समान है। आपके सान्निध्यमें रहकर अनेकोंने साहित्य-साधना की है और शोध-कार्य किया है। ऐसे व्यक्तिके सम्बन्धमें क्या लिखा जाय, यह एक जटिल कार्य है। मेरे बीकानेर आगमनके पश्चात राजस्थानीके साधक श्री मुरलीधरजी व्यासके माध्यमसे मैं आपके सम्पर्क में आया। यदि मैं नहीं भूलता हूँ तो यह राजस्थानी साहित्यकी एक मीटिंगका अवसर था । आपकी सादगी, साहित्य-साधना और मितव्ययताका ज्यों-ज्यों मुझे पता लगा, मेरी आपकी ओर श्रद्धा बढ़ने लगी। आप मिलनसार, निरभिमानी एवं इतिहासके प्राचीन वृत्तोंके प्रकाण्ड विद्वान् हैं । आपमें राजस्थानीके प्रति अगाध प्रेम है और आप सदैव इस प्रयत्नमें रहते हैं कि आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी राजस्थानी भाषाकी ओर आकर्षित हों। प्रेरणा देने, साधन जुटा देने में आपका सहयोग सदैव हर एकको मिलता रहा है और आशा है भविष्यमें भी मिलता रहेगा। साहित्य एवं पुरातत्त्व-सामग्रीकी खोज करना और उसे प्राप्त करना सदैव आपका लक्ष्य रहा है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आप द्वारा संचालित 'अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर' है। यद्यपि इस संस्थाका नाम जैन ग्रन्थालय है किन्तु इसमें जैनेतर साहित्य भी प्रचुर मात्रामें उपलब्ध है। यह तो मानना ही होगा कि जैन साधुओं द्वारा प्राचीन कालमें साहित्य-सेवा प्रचुर मात्रामें हुई और उनका संग्रह भी जैन विद्वान एवं जैन संस्थाओं द्वारा हुआ है। इसलिए अभय ग्रन्थालयके स्थान पर अभय जैन ग्रन्थालय नाम उपयुक्त ही है। मैं चिकित्सा क्षेत्रमें कार्य कर रहा है किन्तु साहित्य-साधनाकी ओर भी रुचि रखता हूँ। श्री नाहटाजी द्वारा मेरी रुचिको प्रोत्साहन मिलता रहा और साथ-ही-साथ तदनुकूल सामग्री भी। यही कारण है कि व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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