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________________ प्रतिभा रा दरसण हुवै उण ने आगे लावण री चेष्टा करे। स्व० गिरधारी सिंहजी पड़िहार जदपी राजस्थानी में घणा बरसां सं ओष्ठखीजताको हा नी, पण जद बै अकाओक आगे आया, तो झट बांरो नांव 'बांठिया पुरस्कार' सारू सामने आयग्यो । 2 दूजे सेठां सारू ज्यू इष्ट रुपियो है; नाइटजी रों इष्ट साहित्य है। बीकानेर री जेठ असाड री गरमी में थे-म्हें बैठा अळसावण लाग जास अर तावड़में आडा हुवर तीन-व्यार घंटा मजे सू गमाय देसा पण ( बगत गमावणो नाहटोजी सोख्या ई कोनी) मौसम रो इणां मार्च असर कोनी सरदी १ डर सूं बैगा विछावण में बड़े कोनी तो गरमी र कारण उदास्यां ने नूंतो देवे कोनी जिको आदमी इस तरे अथक गति सूं साहित्य रे सागरमें डूबयां लगावतो ई रेवे, वो पक्कायत सागर तळ सूं घणमोला रतन काढर लावै अर तीर मार्च ऊमोड़ा अनुभवी अर विद्वान चकरायोड़ा हुवे ज्यू देखता वै । 'वरंवेति चरैवेति'चालता वो, चालता रैवो इण सूत्र ने नाहजी आपरे सामनें राख्यो हुवे ज्यू माळम पड़ें। फेर वें ऊंच आसण रा अधिकारी किया नई वर्ण ? , घणी वार देखण में आई है के आछाआछा निखार भी मंच मार्च उभर आपरा विचार सावळे । जाहिर कर सकै कोनी, कारण वक्तृता भी तो खुद ओक कळा है आ कळा भी किणीमें ईश्वर दत्त ई हुबै, जरूरी कोनी । जिका लोग सरूमें मंच माथै, ऊंभतां ई धुजण लाग जावै, याद कड़ी या घोट्योड़ी बातां अकदम भूल जावे अर जिकां री आंख्यां आगे जमीन घूमती लागे, वे ई सागी लोग अभ्यास करतां करतां धड़ल्ले सू भाषण देवण लाग जावे। माहजी भी आपरे जीवणमें साहित्यिक ज्ञान रे साग-सा भाषण कला से क्रमिक विकास को है, भर आज तो आपरी शैली इत्ती मनभावणी है के अनेक विश्वविद्यालयां री तरफ सूं आपरे कनै भाषण साह निमन्त्रण आवता ई रे है । इण संबंध नाहींजी री कळकत्ता-यात्रा री चरचा भी करीज सके है। बठे ओक सार्वजनिक सभामें आप राजस्थानी भाषा बाबत परिचयात्मक भाषण दियो जिण सूं प्रभावित हुयनै स्व० सेठ सोहनलालजी दूगड़ उणी बगत पाँच हजार रुपियां रो चेक राजस्थानी री पोथ्यां छपावण सारू भेंट कर दियो । उणी रकम सू म्हारी पोची 'सबड़का' व्यासजी री 'इक्केवाळी' अर डा० जयशंकर देवशंकर जी री 'प्रकृति से वर्षा ज्ञान' दो भागांमें छपी । - राजस्थान भासा प्रचार सभा, जयपुर ( परीक्षा विभाग, सारू 'राजस्थानी साहित्य वाचस्पति री उपाधि रो प्रावधान है। क जा सके है, जिकां री साहित्य, इतिहास, संस्कृति आदि भासा प्रचार सभा री तरफ सूं जुलाई १९७१ में अंक विराट आम सभा हुई जिनमें राजस्थानी र तीन विद्वाना ने 'राजस्थानी साहित्य वाचस्पति' री उपाधि सूं सम्मानित कर्या में है सर्व श्री अगरचंदजी नाहटो, मुरलीधरजी व्यास, 'राजस्थानी' अर सीतारामजी लाळस । Jain Education International बीकानेर ) रं पाठ्यक्रम में शोध रे छात्रां इण उपाधि सु वै विद्वान भी सम्मानित क्षेत्रांमें नामजादीक सेवा गिणीजती हुवें । नवी पीढ़ी रा कैवावाणियां के ई लोग छोटा म्हांले के पुरानी पीढ़ी रा लोग खाली बोदी पोथ्या सू' माघो लगावता रेया, इण रे सिवाय वां राजस्थानी से कोई सेवा नई करी इण संदर्भ आ बात भुलणजोग कोनी के राजस्थानी ने जिकी साहित्यिक भाषा रे रूपमें मान्यता मिली है, उणरो सेबरो आपाने प्राचीन साहित्य रे मार्च ई बांधणो चाइजे नवो साहित्य हाल इत्ती प्रचुर मात्रा में लिखीयो कोनी के आपां छाती ताणर उभ जावां प्राचीन साहित्य में जिका साधक अर तपसी प्रकाशमें लाया है, बांरे मांय नाजी रो प्रमुख स्थान है। इण कारण राजस्थानी री साहित्यिक मान्यता सारू आपां प्राचीन ३२६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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