________________
जिणमें सिक्का, मूरत्या अर कळा-कृतियां रै सिवाय तीन हजार दुरलभ चित्र भेळा कर राख्या है। नाहटजी ₹ इण कळां प्रेम सूकळा सागै लगाव राखणिया लोग परिचित है अर प्रायः रोजीने कोई-न-कोई आदमी कोई चित्र या कळाकृति लेयर आपरै कनै पूर्ण ई हैं। इण तर इण कळा-भवन री श्री वृद्धि रा बारणा भी खुल्ला है अर इणमें संदेह नई के अक दिन आपरो कळा भवन भी ग्रन्थालय जिसो बडो आकार बणाय लेसी।
धरम, साहित्य अर इतिहास रै क्षेत्रांमें आप जिकी अमोलक सेवा करी है, उण र प्रताप आप क्रमशः 'विद्यावारिधि', 'सिद्धान्ताचार्य' अर 'इतिहास रत्न' जिसी रळ्यिावणी उपाधियां स अलंकृत हया है तथा न्यारै-न्यार क्षेत्रांमें आपरो जिको सेवा हैं, उण पर हरेक माथै न्यारो ग्रन्थ लिखीजण री गुंजायश है।
इणी तर आप द्वारा रच्योड़े अर संपादित ग्रन्था माथ भी घणे विस्तार सू लिख्यां पार पड़े। आपरा निबंध भी सैकड़ नई हजारां री संख्यामें है, जिण सं आपरी साधना रो अन्दाजो सहज ही लाग जावे।
म्हारै विचार स नाहटेजी कनै जे सगळा सू बडो कोई चीज है- तो बा है,-साधना, साधना अर हूँ समझं के जे नाहटै जी नै 'साधनाचार्य' रो उपाधि जे दी जावती, तो बा संभवतः सगल्यां सं बेस! ओपती लागती। . इणों तर नाहटजी री अन्यत्र दुर्लभ विशेषता रो बखाण भी करयां बिना रैईजै कोनी अर बा है
। अक्रोध री वृत्ति । आप सूं ऊँचा अर बड़ां कनै सू तो सगळा ई लोग खरी-खोटी बात दोरी-सोरी सुण लेवै, पण आपरी बराबरी आळ अथवा आप सूनीची हैसियत आळे सू हळका बोल सुण्यां पर्छ भी सेर रो उथलो सवा सेर सूनई देवै, इसा - 'स्थितप्रज्ञ' धरती माथै नीठ निरावळ ई लाधै । भगवान नाहटैजी नै अक्रोष रों गुण उदारता सू बांट्यो है ! छोटां री मूरखता भरी छेड़छाड़ माथै भी आप उखड़े कोनी, मुळके-सायद भगवान सं अरदास करै के थोड़ी सावळ बुद्धि देव तो ठीक रवै । व्यक्तिगत जीवणमें आपरी क्षमा रा दरसण हुबता ई रैवै ।
आपरी षष्टिपूर्ति रै अवसर माथै अनेक आयोजन हुया, जिणांमें बीकानेरै सोनगिरी चौक रो आयोजन परम विशाल हो। जठै म्हारै साथ्यां नै डर हो के उपस्थिति काई ठा कित्तीक हसी। पण बढ़ तो मिनख माया ई कोनी । इण सभा रो सभापतित्व डा० मनोहर शर्मा को अर आयोजन बीकानेरी प्रमुख सात शैक्षणिक, साहित्यिक व शोध संस्थावां री तरफ सूहयो, जिणांमें राजस्थानी भासा समिति; बीकानेर, अग्रणी ही।
नाहटोजी धर्मनिष्ठ व्यक्ति है। आप नेम सू भजन-पूजन आराधना करै। धरम रे करडै नेमां ने भी आप पाळं। उदाहरण सारू जेठ असाढ री गरमोमें भी आप सूरज आथम्यां पछै जल नई पीवै। ईण धार्मिक साधना रो बेळ: भी सरधाल लोग आपरो सान्निध्य-लाभ उठावै अर सिंझ्वारी प्रार्थना आपरै सागै करया कर। पण इण साधनारे बिचालै भो के कोई साहित्य-प्रेमी आयग्यो तो उण रो मांग पैलो पूरो करण रो-पोथी या सुझाव देवण रो ध्यान पक्कायत राखसी । औ इण बात रो सबत है के धर्मनिष्ठ हुवण रै साथै साहित्य नैं आप सर्वोपरि दरजो देय राख्यो है। .
म्हारा केई साहित्यकार भाई तो सवाल उठावै नवी अर पुराणी पीढी रै संघर्ष रो, पण नाहटजी नै हमेसा इण बात रो फिकर रैयो है के साहित्यकारा री नवी पीढी त्यार हुई कोनी। जे कोइ कदमकाळ अक-दो ओळ्यां मांड दै तो उण स्की हवणी जाणी कोनी। इण कारण जठे भी नाहजी नै थोड़सीक
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३२५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org