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________________ बणगी के राजस्थानी भासा ने पनपावणो चाईने, कारण अठ १ टाबरा र बौद्धिक विकास तदे ई संभव है जद के बांने सरू मायड़ भासा रै माध्यम सू पढ़ाई कराईजे । इण कारण आपरो प्रमुख विषय प्राचीन ग्रंथां माथे शोधकार्य हुवतां यक भी राजस्थानी भासा रे प्रचार खानी भी आप पूरो ध्यान दियो । राजस्थानी सू' रुचि राखणियो जिको आदमी आपरे ध्यानमें आय जावं, वो फेर आपरी निजर मू ओले नई हुय सकै । राजस्थानी विद्यापीठमें रचनापाठ री वेळा नाटेजी सूं पैली बार परिचय हुयो फेर जद विद्यापीठ री गोस्ठ्यां तो बंध हुयगी ही, पण 'राजस्थान भारती' रो अंक स्वार रचना देवण खातर आध्र मर्न बाद कर्यो भने समेसो मिल्यो के नाहजी जिसा विद्वान म्हारे कने सु ́ कहाणी मंगवावे, आ घणै हरख री बात ही अर इण तर म्हें म्हारी पैळी सू पैली म्हारी राजस्थानी अर हिन्दी री दूजी रचनावां छप जरूर चुकी ही । करणो हो, तो राजस्थानी विभागमें नाजी ब्रेक कहाणी मंगवाई है। वर वा भो 'राजस्थान भारती' में म्हारे खातर राजस्थानी कहाणी 'छत्तरया' त्यार करी । उण इण सू पैली री अंक पटना से उल्लेख भी जरूरी लागे । गुणप्रकाशक सज्जनालय में राजस्थानीगोस्ठी ₹ दौरान म्हारी ओक रचनामें हैं - गांव सूं बैन ने लावण खातर -- 'बाथड़' सबद रो प्रयोग कर्यो । नाहटोजी धीरें सीक बोल्या 'बाथड़' री जागा 'रळी' सबद ओपतो है । म्हैं उणी बगत सुधार कर लियो। मने पाल भी आयो के सायद पैली ही सबदा १ अरथ माथे इत्तो विचार नई करतो, पण पछे हूँ ध्यान राखण लागग्यो । नाहजी रे सुझाव पर्छ देखण में तो ऊ ऊरव है के जद विद्वानां रे घरे जावां तो बांनं बोलण खातर ई फुरसत नीठ लाघती दीसै अर बै जे बोले तो भी इसा भाव बतायां बिना नई रैवै के आगन्तुक माथे किरियावर कर हैं । पण नाहटोजी खाली बोलण री फुरसत काढ र ई राजी नई हुय जावे, राजस्थानीमें दो आखर मांडणियां लिखारां ₹ घरे भी पूग जावै अर बांरो लेखो - जोखो देखे अर तेज गत सू लिखण री प्रेरणा देव । प्रसिद्ध विद्वानांमें इण तरे प्रेरणा देवणआळा नाइटोजी संभवतः अकेला ई है। अंक पाश्चात्य लिखार बाबत भी म्हें बांच्चो के वै छोटे-मोटे लिखारां रे कागदां रो उथळो पक्कायत देवता; पण नाहटैजी ज्यू घरे नायर संभाळणाळा विद्वान आज तई सूण्यां देख्या कोनी | 1 बारं हुयग्वो तो साप्ताहिक गोस्ठ्यां रो काम नाहटैजी आपरे अभय जैन ग्रन्थालय में गोस्वां हुईं, जिनमें नाहर्टजी री आ प्रेरणा फेरी घणी फलदाई हुवे लिखनिया भी विचार में पड़ जावे के इयां पोल चलायां सरै न की ओपती रचना जरूर त्यार रंवणी चाईजे वे पूछसी कई लियो र लिख रहत हो । जद स्वामीजी रो स्थानान्तरण बीकानेर सूं इन्स्टीट्यूट अन्तर्गत लेय लियो और बरसां तई उपस्थित हुवणआळा | सगळा ई कोई-न-कोई नवी रचना लाएर सुणावता । शोथ रा विद्वान आमतौर सूं हस्तलिखित ग्रन्थां माथे शोध करें अर मार्च पोलिस अबवा नत्र ग्रन्थ वार करें नाहटाजो इस दरजैमें नई आवें हस्तलिखित ग्रंथा मार्च नई पण बांरी आपरी खोज करणी जद भी आपने फलाणो ग्रन्थ उपलब्ध हुवण री संभावना है तो आप उणने पावण सारू कोई कसर नई राखे - आपरा आदमी भेजे, पइसो खरचै अर खुद भी गांव गांव घूमै । आपरी मान्यतावां रे आधार आपरो प्रमुख काम तो है मालम पड़े के फलाणी जागा शोध सार्ग आप कळा रा भी मोटा पारसी सरूप ई आप स्व० पिताजी सेठ शंकरदानजी नाहीं री ३२४ : अगरचंद नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International कलम काटी ज्योडा म्हारे जिसा कदमका कोनी, अर अबकै नाहटोजी आवै जित्त कीं प्रेमी अर हिमायती हैं। इण कळा-प्रेम १ फळस्मृतिमें ओक कला भवन री भी घरपणा करी है, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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