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________________ बारह दिनों में ही कुल मिलाकर एक भागकी जगह दो भागोंमें योग्य विवरण संगृहीत हो गये-(राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग-२, ११४७ ई० प्रस्तावना पृष्ठ, ६)। बीकानेर तब भी राजस्थान में साहित्यिक-सांस्कृतिक अनुसन्धान कार्यका विशेष केन्द्र था। श्री शार्दूल राजस्थानी रिसर्च सोसाइटी की स्थापना हो चुकी थी और लगभग सभी अध्येता इसी संस्थाके सक्रिय सहयोगी थे । पूरी मण्डली बीकानेरमें काम पर जमी थी और एक विशेष प्रेरक केन्द्र बनी हुई थी। बीकानेर पहुंचते ही स्व. नाथूरामजी खड्गावतने मेरे सम्मानमें एक आयोजन किया। सबसे प्रत्यक्ष परिचयके साथ ही राजस्थानीमें नई रचनाओंका आस्वादन प्राप्त हुआ । बादमें स्व० खड्गावतजी आजीवन मेरे लिये प्रेरक ही नहीं, मार्गदर्शन भी बने रहे। इस बीकानेर-प्रवासके पश्चात् श्रीमान् नाहटाजीसे मेरा घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गया। हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोजके सम्बन्धमें कई बार मैं बीकानेर गया और श्रीमान् नाहटाजी भी उदयपुर, जयपुर तथा जोधपुर स्वयं पधारकर सहयोगका आदान-प्रदान करते रहे। मेरे प्रत्येक पत्रको समुचित महत्त्व देते हुए उन्होंने तुरन्त ही आवश्यक कार्य पूर्ण करनेका प्रयत्न किया है। सन् १९४० से अव तक विद्यापीठ शोध संस्थान अथवा प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जहाँ भी मैंने कार्यभार ग्रहण किया श्रीमान नाहटाजीने पूर्ण क्रियात्मक सहयोग दिया है । श्रीमान् नाहटाजी अपने आपमें एक क्रियाशील संस्थाके रूपमें है। चारों ओरसे अध्येता इनके पास बीकानेर पहुँचते हैं और यथाशक्य सबका आप मार्गदर्शन करते हैं। बड़ी संख्यामें चारों ओरसे इनके पास पत्र भी पहुँचते हैं। प्रत्येक पत्रका उत्तर देते हुए अध्येताकी जिज्ञासा पूरी करनेका और उन्हें मार्गदर्शनका भरसक प्रयत्न करते हैं। श्रीमान् नाहटाजीका कार्य जितना ही त्वरित और विस्तृत हुआ है, इनका लेखन उनका उतना ही अस्पष्ट रहा है । प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानके जयपुरमें स्थापित होने पर इनके सम्बन्ध अनेक अध्येताओं से स्थापित हए तथा इनके पत्र भी बड़ी संख्यामें पहुँचने लगे। तब मेरा एक कार्य अध्येताओंके लिये इनके पत्रोंको पढ़ना भी हो गया। हमारे देशके सामने सांस्कृतिक अनुसन्धान-सम्बन्धी क्षेत्रमें एक लम्बा मार्ग है। इस क्षेत्रमें हम अनेक विकासशील देशोंसे पीछे हैं । सम्पूर्ण भारत मुख्यतः राजस्थान प्रदेश साहित्यिक-सांस्कृतिक सामग्रीसे बहत सम्पन्न है। इस सामग्रीके व्यापक सर्वेक्षण, संग्रह, संरक्षण, सम्पादन, प्रकाशन और उपयोगसे देशके अभ्युत्थान तथा सर्वांगीण विकासमें महत्त्वपूर्ण योग मिलता है। अतएव श्रीमान् नाहटाजी जैसे सरस्वतीपुत्रों एवं इनकी सेवाओंका विशेष महत्त्व है। यही कामना है कि श्रीमान् नाहटाजी सुदीर्घ, स्वस्थ और शान्तिमय जीवन प्राप्त करें। नाहटाजीसे प्रथम साक्षात्कार श्री किरण नाहटा जब मैं नाहटाजीके अध्ययन-कक्ष ( जोकि उनका पुस्तकालय भी है )में पहुँचा, तब वहाँ जो कुछ देखा वह सब कल्पनातीत था। सेठ-लोगोंकी पुरानी स्टाइलकी 'गद्दी की भान्ति उस कक्ष में एक ओर दीवारसे सटकर एक बड़ा गद्दा लगा हुआ था और उस पर 'गद्दी में ही काम ली जानेवाली काष्ठकी छोटी ३१० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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