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बेखबर साहित्य के सागरमें लीन । धोती बंडीसे आवेष्ठित थुलथुल शरीर, घनी खिचड़ी मूँछे, सफाचट खोपड़ी और चश्मेसे झांकते ज्योतिपूर्ण सजग नेत्र । मैं स्तब्ध रह गया । क्षण भरके लिए असमंजसमें पड़ गया कि समाधि लीन इस साहित्यिक संतको डिस्टर्ब करूँ या नहीं ! पर इस प्रकार अधिक समयतक खड़े रहना भी संभव नहीं था अतः अभिवादन द्वारा मैंने उनका ध्यान आकृष्ट किया । स्नेहपूर्ण दृष्टिसे अभिवादनका उत्तर देते हुए उन्होंने मेरा परिचय पूछा तो गद्गद हो गए। प्रश्नोंकी झड़ी सी लग गई- कैसे आया हूँ ? कार्य बना या नहीं ? कहाँ ठहरा हूँ ? कोई असुविधा तो नहीं, लेखनकी क्या प्रगति है, शोधके लिए कौन-सा विषय ठीक रहेगा । इत्यादि । वार्तालाप द्वारा आपके मानवीय गुणोंका आभास पाकर मैं अभिभूत हो उठा । इसके पश्चात् मुझे आपका पुस्तकालय एवं संग्रहालय देखनेका शुभ अवसर प्राप्त हुआ । निचले कक्षसे लगाकर ऊपरी खंडतककी विपुल ज्ञान राशि एक अमूल्य खजाना है । दुर्लभ पांडुलिपियाँ आपके जीवनभरको अक्षय निधि 1
यही मेरी श्री नाहटाजी के साथ प्रथम मुलाकात थी । यह काफी वर्षो पहिलेकी बात है । परन्तु इन वर्षो में आप निरंतर मेरी खोज खबर लेते रहे हैं । मेरे लेखनकी क्या प्रगति इस सम्बन्धमें हर तीसरेचौथे महीने तो आप ज्ञात कर ही लेते हैं । मेरा तो अपना निजी अनुभव है ( दूसरोंकी बात मैं नहीं कहता ) कि राजस्थानी लेखनके क्षेत्र में खोज-खबर लेनेवाला और प्रेरणा देनेवाला यदि कोई व्यक्तित्व आज राजस्थानमें मौजूद है तो वह श्री नाहटाजी ही हैं ।
न मालूम कितने ज्ञान-पिपासु आपकी क्रोड़में अपनी तृषा शांत कर चुके होंगे, कितने शोध स्नातक आपसे मार्गदर्शन प्राप्त कर 'डॉक्टर' बन चुके होंगे और बन रहे होंगे ।
मेरे मन में समय-समयपर अनेक बार यह प्रश्न उठता है कि इस साहित्यिक संतसे हमने बहुत कुछ प्राप्त किया मगर बदले में उन्हें दिया क्या ? क्या राजस्थानी -समाजने इस प्रतिभाको उचित सम्मान देनेकी दिशामें कभी सोचा भी है ! मैं समझता हूँ इस मामले में हमने अत्यन्त कृपणतासे काम लिया है। समय रहते हमें इस ओर शीघ्र ध्यान देना चाहिए । राजस्थानके विश्वविद्यालयोंको भी एक योग्य विद्वान्का उचित सम्मान कर अपनी निष्पक्ष परम्परा कायम करनी चाहिए ।
मैं आपके शतायु होनेकी शुभ कामना करता हुआ आशा करता हूँ कि माँ राजस्थानीको आपकी सेवाका अधिक से अधिक अवसर प्राप्त होगा ।
अग्रणी अध्येता - नाहटाजी
डॉ० पुरुषोत्तम लाल मेनारिया एम० ए०, पी-एच० डी०, साहित्यरत्न
सुदूर आसाम और कलकत्तामें चलनेवाले अपने परम्परागत व्यवसायकी अपेक्षा राजस्थान में रहते हुए विद्या - व्यसनको महत्त्व देनेवाले तथा कठोर परिश्रम और पवित्र जीवनके पक्षधर श्री अगरचन्द नाहटा देशके अग्रणी अध्येताओंमें हैं । अध्येता भी ऐसे कि प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंके क्षेत्रमें राजस्थानी, हिंदी, संस्कृत और गुजराती आदि भाषा-साहित्य सम्बन्धी कोई अनुसन्धान कार्य इनके मार्ग-दर्शन तथा सहयोगके ३०८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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