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और पगड़ीकी पोशाकमें नाहटाजी सादगीकी सौम्य मति प्रतीत होते हैं। नाहटाजीने अन्वेषण कर जितना लिखा है, राजस्थान में उतना शायद ही किसीने लिखा हो तथा लोगोंको ज्ञानज्योति दी हो।
राजस्थान सरकारको चाहिए कि वह प्रान्तके इतने सीधे-सादे व महान् विद्वानकी तरफ भारत सरकारका ध्यान आकृष्ट कर सम्मानित करावें । नाहटाजीकी साहित्यिक सेवायें प्रान्त द्वारा भुलाई जाने योग्य कदापि नहीं है क्योंकि इन्होंने सदा ही नवागत साहित्यकारोंका स्वागत किया और प्रेरणा प्रकाशन दिया है।
साहित्य साधक श्री नाहटाजी
__ श्री भूरसिंह, राठौड़ श्री नाहटाजीने जैन और राजस्थानी साहित्यकी जो सेवा की है और कर रहे हैं, वह अक्षय रहेगी। मैं आपसे काफी समयसे परिचित हैं। जब-जब भी मैंने आपसे भेंट की है, आपको मैंने अपने साहित्य संग्रहालयमें ढेरों पुस्तकोंसे घिरे हुए, साहित्यके अध्ययन व मननमें रत और साहित्योद्धार जैसे पुनीत कार्यमें तल्लीन देखा है।
आपके लेखों और लिखित तथा सम्पादित ग्रंथोंने जैन और राजस्थानी साहित्यके असंख्य रत्नोंकी सुरक्षा ही नहीं की, उसे पठित जगत्के सम्मुख रखकर उसके मूल्यांकनके लिए विद्वानोंकी आँखें खोल देने एवं मार्ग प्रशस्त करने जैसा महत्त्वपूर्ण कार्य किया है ।
ऐसे कर्मठ साहित्यिकका यदि हम अभिनन्दन करते हैं तो एक बड़ी भारी भूलसे बचते हैं।
अनथक साहित्य खोजी : श्री नाहटाजी
डॉ० दयाकृष्ण विजयवर्गीय 'विजय' उदयपुर राजस्थान साहित्य अकादमीकी सरस्वती सभाकी बैठक, जहाँ अनेक परिचितोंके बीच बैठे श्री नाहटाजीको मैंने आकृतिसे ही अनुमान लिया था। भारी सुघड़ देह, आँखों पर भारी-सा चश्मा, सिर पर ओसवाली पगडी, लम्बा कोट, साहित्यकारकी कम, किसी श्रेष्ठिकी अधिक छवि दे रहे थे तो भी मेरा श्रद्धा-भाव इस रूप विशेषसे विचलित होनेवाला नहीं था; बल्कि उसकी पुष्टि ही तब हुई, जब उन्होंने किसी प्रसंग पर खड़े होकर अपने विचार प्रकट किये। उनकी वाणीमें विषयके ज्ञानको गम्भीरता तथा प्रौढ़ता बोल रही थी। उदयपुरमें ऐसे ही प्रसंगों पर फिर १-२ बार और आपके दर्शनोंका मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ।
श्री नाहटाजीके व्यक्तित्वके उपरान्त मुझे कृतित्वके निकट आनेका भी अवसर मिला, जब मैं राजस्थान विश्वविद्यालयसे 'राजस्थानी काव्यमें शृंगार-भावना' शीर्षकसे शोध प्रबन्ध लिखने में लगा हुआ था। राजस्थानीमें लौकिक एवं चारणी कामोंके अतिरिक्त प्रचुर मात्रामें जैन काव्य भी विद्यमान हैं। जिनमें
३००: अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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