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हैं । आपका ध्यान सदा विषयके स्पष्टीकरण की ओर रहता है, अतएव एक ही बातको प्रकारांतरसे इस तरह समझाते हैं कि पाठक हृदय पटलपर स्थायी रूपसे अंकित हो जाती है। शब्दाडंबर, पांडित्यप्रदर्शन और विषयवस्तुका अनावश्यक विस्तार आपमें नहीं मिलता। जो कुछ भी कहना होता है उससे संक्षेपमें, शालीनता एवं हृदयग्राही ढंगसे बिना किसी झिझकके कहते हैं।
अंतमें हम ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वतीके मंदिरमें श्री नाहटाजी राजस्थानी भाषा और साहित्यके विविध भाव भरे सुमन राजस्थानी भारतीके चरणों में अर्पित करते रहें तथा अच्छे स्वास्थ्यको धारण करते हुए दीर्घायु हों।
नाहटाजीकी राजस्थानीके प्रति ममता
श्रीमंतकुमार व्यास बात उस समय की है जब स्व० अद्भुतजी शास्त्री एवं सूर्यशंकर पारीकने रतनगढ़में साहित्य सम्मेलनका आयोजन किया था। सम्मेलनमें भाग लेनेके लिए राजस्थानके सभी इलाकों से साहित्यकार एकत्रित हुए थे । मैं भी सम्मिलित हुआ था। समारोह के विभिन्न कार्यक्रमोंमें राजस्थानीके लिए विचारविमर्श चला और राजस्थानी साहित्य सम्मेलन गठित करनेका निश्चय किया गया। संयोजक बना दिया मुझे और बनानेवालोंको निर्देश था श्री अगरचन्दजी नाहटा का ।
श्री नाहटाजीने मुझे संयोजक बनाकर बीकानेरके भारतीय विद्या मन्दिरमें अध्यापकके स्थान पर मेरी नियुक्ति भी करा दी और राजस्थानीका प्रचार-प्रसार करने हेतु कार्यालय भी कायम करा दिया। उनका परामर्श था कि राजस्थानी में एकांकी लिखकर उनका यत्र-तत्र प्रदर्शन किया जावे किन्तु मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर सका । लेकिन यह तो मेरी ही कमी थी उनकी प्रेरणामें तो कभी कोई कमी आई नहीं ।
वैसे नाहटाजी भारत प्रसिद्ध साहित्य-संशोधक हैं। उन्होंने अपनी विशाल लाइब्रेरी बहत ही लगनके साथ सजायी है, जहाँ बैठकर अनेक व्यक्ति डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। इनकी जितनी स्मरण शक्ति है, उतनी ही कार्यशक्ति और उतनी ही तीव्र लेखन शक्ति भी है।
भारतके इतने बड़े विद्वान की राजस्थानीके प्रति ममता एक बड़ी बात है। राजस्थानी साहित्यमें कौन-कौन लिख रहे हैं? कैसा लिख रहे हैं? उनका प्रकाशन हो रहा है या नहीं ? किसीकी प्रेरणाके अभावमें लिखनेकी शक्ति तो खतम नहीं हो रही है आदि बातोंके प्रति ये हमेशा जागरूक रहते हैं। मैं समझता हूँ राजस्थानी भाषाका प्रौढ़ या नवागत कोई भी ऐसा साहित्यकार नहीं होगा, जिसके पास इनका प्रेरक-पत्र न पहुँचा हो। ये सबका ध्यान रखते हैं और पत्रके जरिए बराबर लिखनेका प्रोत्साहन देते रहते हैं। इतना ही नहीं इनकी यह भी प्रेरणा रहती है कि नये आदमीको कलम थमाकर लिखना सिखावो। आलस्यका इनके पास काम नहीं। एक, दो, दस, बीस तब तक ये पत्र लिखते रहेंगे जब तक कि उनका प्रत्युत्तर न दे दिया जावे या सम्बन्धित कार्य पूरा न हो जावे ।।
एक बार नाहटाजीने कहा, "मैं दैनिक अखबार नहीं पढ़ता।" पूछनेपर उन्होंने बताया कि इससे दिमाग अनावश्यक रूपसे बोझल रहता है। फिर भी वे ज्ञानके अक्षय भंडार हैं। साधारण धोती, कमीज,
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २९९
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