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________________ श्री नाहटाजी माँ शारदाके वरद हस्तका शुभ आशीर्वाद एवं वरदान प्राप्त किए हुए हैं। एक लंबे समयसे आप राजस्थानी भाषा एवं साहित्यके साथ ही साथ जनसाहित्यके संबंधमें गवेषणात्मक कार्य करते हुए तथा अतलकी गहराइयोंसे जो अमूल्य निधियां साहित्यिक जगत्को प्रस्तुत करते रहे हैं, वे उनकी प्रखर मेधाशक्ति, दूरदर्शिता एवं उनके साहसिक परिधमकी परिचायक हैं। श्री नाहटाजीका सम्पूर्ण जीवन शोधकार्यके क्षेत्रमें उस विशाल वृक्षकी भाँति है, जो अपने सम्पर्कमें आनेवाले प्रत्येक शोधार्थीको शीतल छाया एवं मधुर फल तो प्रदान करता ही है, किन्तु साथ ही साथ उस वृक्षका प्रत्येक तत्त्व वैधिक दृष्टिसे समाजके लिए लाभदायक सिद्ध होता है। श्री नाहटाजी जैसे उच्चकोटिके अध्यवसायी, धुनके धनी, लगनशील एवं कर्तव्यपरायण व्यक्तिके संबंधमें अधिक कुछ कहनेसे उनके मेधावी व्यक्तित्वपर शब्दजालका आवरण आ सकता है, फिर भी साहित्यके क्षेत्रमें मौन भी नहीं रहा जा सकता। साहित्यिक जगत्में शोधकार्यके अतिरिक्त व्यावहारिकताकी दृष्टिसे भी नाहटाजीका सामाजिक वैशिष्ट्य अनुकरणीय है। कोई भी शोधार्थी जो एक बार आपके सम्पर्क में आ जाता है वह आपका संसर्ग छोड़नेको कभी तैयार नहीं होता। नाहटाजी भी मुक्तहस्तसे उसे कुछ न कुछ तथ्य प्रदान करते ही रहते हैं । यह आपकी व्यावहारिकता एवं मिलनसारीका ही प्रतिफलन है। श्री नाहटाजीका शोध कक्ष ही वर्षोंसे की हुई उनकी साहित्यिक तपश्चर्या तथा शोधकार्यका एक ऐसा दर्पण है जिसमें झाँकनेपर नाहटाजीके सम्पूर्ण व्यक्तित्वकी झलक प्राप्त हो सकती है। साधारणतः दर्पणमें झाँकनेपर व्यक्ति अपना ही प्रतिबिंब देखता है, किन्तु नाहटाजीके संग्रहालय रूपी दर्पणमें झांकनेपर दर्शक अपने व्यक्तित्वको खो देता है और नाहटाजीके व्यक्तित्वकी झलक पाने लगता है, यही उनके कलात्मक व्यक्तित्वका विरोधाभास है। शोधकार्यके क्षेत्रमें, शोधकर्ताके लिए एक-एक पल अमूल्य होता है। श्री नाहटाजी जब कभी भी शोधके संबंधमें किसीके लिए समय निर्धारित करते हैं तो वे पूर्व निर्धारित समयके भीतर ही विषय संबंधी सम्पूर्ण सामग्रीसे शोधकर्ताको अवगत करानेको तैयार रहते हैं । यही कारण है कि नाहटाजीका शोधात्मक निर्णय एवं तथ्य संबंधी ज्ञान कसौटीपर पूर्ण तथा खरा उतरता है। सामान्यतः वाणिज्य और साहित्यमें विरोध दिखाई देता है। समाजकी औसत धारणा रहती आई है कि वाणिज्य और उद्योगमें तत्परशील व्यक्ति एक अच्छा साहित्यकार नहीं हो सकता, किन्तु मेरी ऐसी मान्यता है कि वाणिज्य अपनी चरमावस्थामें साहित्यके अन्तर्गत आ सकता है, परन्तु साहित्य वाणिज्य नहीं हो सकता । यदि साहित्यको वाणिज्यमें लानेका प्रयास किया गया तो साहित्य नामकी कोई वस्तु शेष नहीं रह जायगी। श्री नाहटाजी वाणिज्यमें कुशल है, किन्तु उनका वाणिज्य उनके साहित्य एवं शोधकार्यके समुद्र में स्वयमेव लीन हो रहा है। दूसरे शब्दोंमें नाहटाजीका गवेषणात्मक व्यक्तित्व उनके वाणिज्यपर पूर्णरूपसे हावी हो चुका है। नाहटाजी सेठ हैं अवश्य, किन्तु नाहटाजीका सेठ उनके शोधकर्ताका सहायक बन चुका है। राजस्थानके आधुनिक कालके विद्वानोंमें नाहटाजी अग्रणी हैं। आपने अपनी मातृभाषा और साहित्यसे उदासीन राजस्थानवासियोंका अपनी मातृभाषाकी ओर ध्यान आकृष्ट किया और उसकी साहित्यिक समृद्धि एवं विशेषताओंको उनके सामने रखा। एक नहीं, अनेक तमाच्छन्न तथा संदिग्ध ग्रंथोंपर समचित प्रकाश डालकर साहित्य प्रेमियोंका मार्गदर्शन करते रहते हैं। उसके अतिरिक्त नाहटाजी सिद्धहस्त लेखक २९८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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