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________________ देसाई लिखित लेख पढ़ने में आया । राजस्थान में ये कवि अत्यन्त लोकप्रिय थे। इनकी कई रचनाएँ मुझे भी नित्य पढ़ने में आती थीं। इसलिए विचार हुआ कि राजस्थानके इस कविके सम्बन्धमें गुजरात के एक विद्वान्ने इतनी अधिक शोधकर प्रकाश डाला है, तो राजस्थान में शोध करने पर और भी नई जानकारी मिलनी चाहिये । उसी उद्देश्य को समझ कर बीकानेरके भण्डारोंकी हस्तलिखित प्रतियाँ देखना प्रारम्भ कर दिया । और उनमें जो जो रचनाएँ उनकी तथा अन्य कवियोंकी अच्छी लगीं, उनकी प्रतिलिपियाँ तैयार करना प्रारंभ कर दिया। यही शोध कार्य करते-करते मैं साहित्य क्षेत्र में प्रविष्ट हुआ । गुरुमहाराजके गुणानुवादके रूपमें कुछ हिन्दी कविताएँ करने का शौक लगा, कई वर्ष पश्चात् लेख इत्यादि लिखने प्रारम्भ किये । मैंने आगे प्रश्न पूछा - "आपकी कौन-कौन कृतियाँ कब कब प्रकाशित हुई ? इनका अनुभव सुनाइये ।" वे बोले “जैन धर्म प्रकाश" नामक पत्र में " विधवाकुलक" नामक प्राचीन लघु रचना लगभग संवत् १९८५ गुजराती अनुवादसे प्रकाशित हुई थी, उसे पढ़कर मैंने हिन्दी में विवेचन लिखना प्रारम्भ किया था, "विधवा कर्तव्य" शीर्षक से मैंने स्वतंत्र पुस्तक के रूपमें प्रकाशित किया । तदनंतर कविवर समयसुन्दरके दादा गुरु नितचंद सूरिका संक्षिप्त परिचय लिखा, जो पहले ३० वर्षमें किया था, फिर जैसे सामग्री उपलब्ध होती गई, बढ़ता गया, चौथोबार में वह ग्रन्थ ४०० पृष्ठोंके आकार का हो गया, यह सं० १९९० में “युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि" के नामसे अभय जैन ग्रंथमाला बीकानेरने प्रकाशित किया, इसमें सवासी ग्रंथों का निचोड़ था । यह ग्रंथ अत्यन्त लोक-प्रिय हुआ, इसीके आधार पर संस्कृतमें दो हजार अनुष्टुप् छंदों में एक काव्य जैनमुनि लब्धमुनिने किया । गुजरातीमें भी अनुवाद हुआ, श्री मोहनलाल दलिचंद देसाईने ४२ पृष्ठों में इसकी प्रस्तावना तथा स्व० ओझाजीने इसकी सम्मति लिखकर प्रोत्साहित किया । उसी समय से जैन भण्डारोंमें जो प्राचीन अपभ्रंश और प्राचीन राजस्थानी रचनायें हैं, उनमें से ऐतिहासिक रचनाओंका संग्रह तथा संपादन कर "ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह" के नामसे प्रकाशित किया, यह ग्रंथ साढ़े छै सौ पृष्ठोंका है । इसमें १२ वीं शताब्दी से २० वीं शताब्दीके प्रारंभ तककी अप्रकाशित ऐतिहासिक रचनायें प्रत्येक शताब्दी और पूर्वार्द्ध और उतरार्द्ध में रचित हैं, का संग्रह है । भाषा विज्ञानके अध्ययनकी दृष्टिसे यह ग्रन्थ मूल्यवान समझा गया है, डा० हीरालाल जैनने इसकी प्रस्तावना लिखी थी । खरतरगच्छमें चार आचार्य दादासाहब के नामसे प्रसिद्ध हैं । उनकी मूर्तियाँ, पादुकायें और मन्दिर सैकड़ों स्थानों में हैं युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि उन्हीं चारोंमें चौथे हैं । इनकी जीवनी प्रकाशित करनेके पश्चात् अन्य तीन आचार्यकी जीवनियां भी जैन भण्डारोंकी हस्तलिखित प्रतियोंसे एकत्रित कर क्रमश: दादा जिनकुशलसूरी, मणिधारी जिनचन्द्रसूरी तथा युग प्रधान जिनदत्तसूरी नामक तीन ग्रन्थ प्रकाशित किये। इनकी प्रस्तावन मुनि जिनविजयजी, डा० दशरथ शर्मा, तथा मुनि कान्तिसागरजी ने लिखी । इन तीनों के भी संस्कृत और गुजराती में अनुवाद प्रकाशित हुए । इसी समय जैन प्रतिमाओंके लेख संग्रहीत किये और समस्त बीकानेर राज्यके श्वेतांबर मन्दिरके ढाई हजार संग्रह करके " बीकानेर जैन लेखसंग्रहके नामसे ग्रंथ लिखा है, जो शीघ्र ही लेखों प्रकाशित होने वाला है । इसकी प्रस्तावना ११२ पृष्ठोंकी है । इसमें बीकानेर राज्यके मन्दिर, उपाश्रय, ज्ञान भण्डार, जैनोंसे राजकीय सम्बन्धों पर विस्तारसे प्रकाशन डाला गया है । यह ग्रंथ १५ वर्षोंके परिश्रम का परिणाम है । मैंने आगे नाहटाजीसे पूछा आपके शोध सम्बन्धी लेखोंका प्रिय विषय क्या है ? २८४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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