________________
ऊंटोंपर तीन सवार आ गये । एक ऊंटपर सिर्फ एक राजपूत था, जो किसी छोटे ठिकाणे का शासक था, और दूसरे ऊंटपर कोई नवयुवक बाणिया ससुरालसे अपनी सेठाणीको विदा करवा कर ला रहा था । फूटे गढ़में दोनोंने शरण ली और जमीनपर बैठ गये । लेकिन अकलमंद बाणिये युवकने ऊंटकी काठीपरसे गलीचा निकालकर राजपूतके नीचे बिछाकर कहा, " ठाकुर साहब, यहां बिराजिये । राजपूतके अहंको जरा तस्कीन हुई और उसने अपने सम्मानको गर्वीला बनाने के लिए मूंछोंपर ताव देते हुए गलीचेपर आसन ग्रहण कर लिया। थोड़ी देर बाद उसने बोरेमें से ससुरालकी मिठाई निकालकर राजपूतको और खिला दी । इधर रात सिरपर उतरती रही, बारिशका समा तेज होता गया । आखिर जब सोनेकी तैयारी हुई, तो बाणियेका बेटा अपने रजाई गद्दे बिछाकर एक अलग कोने में अपनी सेठाणीके साथ सो गया लेकिन राजपूतजी गलीचेपर बिना ओढ़ना बिछौना सिर्फ बैठे रहे । अब वे अंधेरेमें किसे दिखाने अपनी मूंछों पर दें ? सुबह तक उन्होंने गलीचे पर बैठकर कष्ट पाते रात निकाली । जब भोर हुआ तो बाणियेका बेटा सेठाणी को लेकर ऊंटपर बैठा और ऊंघते राजपूत के नीचे अपना गलीचा बिछा रहने दिया । राजपूतको बहुत क्रोध था कि मुझे रातको सोनेको बिछौना नहीं मिला । लेकिन जब बाणियेका बेटा ऊंटपर राम-राम कहकर चलने लगा तो राजपूतने इसे भी अपना अपमान समझा कि यह गलीचा मुझपर दया दिखाकर छोड़कर जा रहा है । उसने आवाज देकर बाणियेका ऊंट वापस बुलवाया और हवा में गलीचा फेंकते हुए कहा, "बाणियेका छोरा, गलीचा यहाँ छोड़कर जा रहा है ? कहीं आगे सेठाणी मत छोड़ जाना ।" बाणियेके बेटेने कहा, " ठाकुर साहब, मैं तो छोड़ भी दूं, पर या सेठाणी मूने पूरी जिंदगी ताई छोड़े तो थाने खबर देश्यूं ।”
मित्रोंने जोरका कहकहा लगाया, तब मैंने अगरचंदजी नाहटाके जीवन दर्शनका सरलीकरण करते हुए कहा, "अगरचंदजीके पास सारे भारत के इतिहासकी सामग्री बहुत है, लेकिन जैनधर्मकी सामग्री उनका पतिव्रता पत्नीकी तरह पीछा ही नहीं छोड़ती !! "
यह बात काशीकी है ।
अगरचंदजीका जीवन अभीतक अनेक दृष्टियोंसे रहस्यमय बना हुआ है। उनका कितना समय साहित्य-सृजनमें जाता है, कितना समय वे अपने व्यापारमें देते हैं, यह अभी तक अलिखित रहा है । परिवार में उनका वरद हस्त किस तरह सक्रिय है और अपने समाजमें उनका हस्त किस तरह वरद बना हुआ है, इस पर भी किसीने अध्ययन और शोध अनुसंधान नहीं किया है। लेकिन जितना हमने उन्हें निकट से देखा है, हम उसके बलपर एक अद्भुत रहस्योद्घाटन अवश्य कर देना चाहते हैं कि अगरचंदजी के पास अभी इतनी सामग्री अलिखित पड़ी है कि यदि कोई शोध - अनुसंधानका विद्यार्थी उनके पास केवल मौखिक डिक्टेशन लेनेका तप साधन कर सके तो कमसे कम हजार-हजार पृष्ठों के पांच ग्रंथ तो आगामी पांच वर्षो में सहज भावसे तैयार किये जा सकते हैं ।
मेरा विनय भावसे साहित्य के ऐसे मनीषीको श्रद्धा-निवेदन ।
२७० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org