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________________ जैन साहित्यके शुभोदयका कणाद ऋषि श्री ऋषि जैमिनी कौशिक 'बरुआ' बीकानेर भारतके राजनीतिक नक्शे पर महाराजा गंगासिंहजीके कारण विख्यात हुआ, विश्वके शूटिंग मानचित्र पर महाराजा करणी सिंहजीके कारण और राष्ट्रभारतीके मानचित्र पर अगरचंदजी नाहटाके कारण-यह मेरी निश्चित मान्यता है। उन भारतीय लेखकोंमें, जिन्होंने भारतकी प्राचीनताको आधुनिक वाङ्मयमें प्रतिष्ठित और समुद्रित किया है, उनकी संख्या कई हजार है । ये सम्पूर्ण भारतमें फैले हुए हैं । लेकिन जैन साहित्य और इतिहासके जिन अपठनीय पृष्ठों को, जिन्होंने पठनीय बनाया है और उनका पूर्वापर सम्बंध सार्वदेशीय इतिहाससे सूत्रबद्ध कर दिया है, उनमें अगरचंदजी नाहटाका नाम सबसे अग्रणी पंक्तिमें प्रतिष्ठित हो चुका है। मैं संकोचवश अग्रणी पंक्तिमें कह रहा हूँ, अन्यथा मेरा विचार यह है कि अग्रणी पंक्तिमें भी वे ज्येष्ठ भावके अधिकारी है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा काशीमें एक बार सन् १९५५-५६ की बात है, हम कुछ लेखक-मित्र चाय-चक्रमका रसास्वादन ले रहे थे। सहसा ही उन भारतीय लेखकों की चर्चा चल पड़ी, जिन्होंने २०वीं सदीके प्रारंभमें ब्रिटिश हिस्टोरियनोंसे कसकर लोहा लेते हुए, भारतीय सत्यकी प्रतिष्ठा भारतके हितमें अत्यधिक की और अपनी शक्ति भर भारतीय इतिहासको भारतीयकरणकी रीति-नीतिसे परिशद्ध किया। बात काशीसे चली, पंजाबको दायरे में लेती हई, गुजरात और दक्षिण भारतके स्वनामधन्य लेखकों पर होती हुई, बंगालके लेखकों पर जाकर बात टिक गई। उसी समय मैंने बात को राजस्थानकी ओर अभिमुखी बनाते हुए डा. गौरीचंद हीराचंद ओझा पर सबकी विचारधारा केन्द्रित कर दी, जिनके सम्मानमें काशी नागरी प्रचारिणी सभाने एक आयु-संवर्द्धन ग्रंथ भी प्रकाशित किया था। मैंने कहा, "यदि जेम्स टाड राजस्थानके इतिहासका १९वीं सदीमें एक विदेशी सूत्रधार है तो भारतीय सूत्रधार ओझाजी हुए। टाडमें किवंदन्तियोंका प्रमाद अधिक है, ओझाजीमें तथ्यपूर्ण विवेक अधिक केशरका स्वाद देता है।" इस मंतव्य पर कुछ मतामत चला ही था, कि मुझे एक विनोद सूझा और मैंने कहा, "जबकि अन्य भारतीय लेखक यूरोपीय वेशभूषाके व्यामोहमें अपनेको सज-संवरनेका लोभ रोक नहीं पा रहे थे, उस समय ओझाजीने और हमारे अगरचंदजी नाहटाने अपनी पगड़ियोंका चमत्कार धूमधामसे बकरार रखा। एक ब्राह्मण और एक वैश्य, लेकिन दोनोंने राजस्थानकी पगड़ियोंको सारे भारतमें पूजित करवाया।" इस बात पर सभी मित्र हँस पड़े और ओझाजीसे बात हटकर अगरचंदजी नाहटा पर आकर स्थिर हो गई। मैंने कहा कि यदि नाहटाजीकी लिखी हुई सामग्रीको एक सिलसिलेसे काशीकी गलियोंमें बिछायाजाये, तो शायद काशीकी कोई गली ही अछुती रह सके । सभी मित्रोंको इसपर आश्चर्य हुआ। मुझे बातके दौरान कहना पड़ा कि नाहटाजी अपने जैन धर्मके प्रति इतने सत्यनिष्ठ है कि वे उसकी मर्यादाओंके प्राचीर को दृढ़ हुआ देखा चाहते हैं। कर्मसे व्यापारी, धर्मसे लेखक; और मुझसे विनोद किये बिना नहीं रहा गया, मैंने एक कहानी सुनाई, जिसे काशीके मित्रोंको यह एहसास हो सके कि अगरचंदजीका यथार्थ परिचय वास्तव में क्या है ? मैंने कहा कि राजस्थानके एक गांवमें एक उजाड़ खंडहर गढ़ (किला) एकांत जंगलमें पड़ा हुआ था। एक दिन संयोगसे, पहले रेतीला तूफान चला और फिर घनघोर बारिस होने लगी। दो दिशाओंसे दो व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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