________________
सभा, लाडेसर अर कलकत्तं रै दूजे राजस्थानी साहित्य-प्रेमियों री ओर सूं श्री नाहटाजी रो अभिनंदन कुरू' है अर कामना करूं' के उणरो सहयोग राजस्थानी नै भोक बरसां ताणी मिले।
नाहटाजी : एक संस्था
श्री उदय नागौरी गत चालीस वर्षोंसे हजारों अज्ञात ग्रंथों को प्रकाशमें लाकर नाहटाजीने हिन्दी साहित्य की जो सेवा की है उसे कौन नहीं जानता ? सीलन भरे अंधेरे बन्द कमरों में प्राचीन लिपियों एवं ग्रंथों को ध्यानसे देखते हुए जिसने उन्हें देखा है, वही जान सकता है इनके अथक परिश्रम एवं अटूट धैर्य को, जब भी, जैसी सामग्री इन्हें मिले, ये किसी पत्रिकामें उसे प्रकाशित कर देते हैं जिससे सबको उसका परिचय मिले । चार हजारसे अधिक लेख प्रकाशित करने के बाद भी इनका ध्येय यही रहा कि साहित्य अन्वेषण, पठन, सृजन, संरक्षणमें अधिकाधिक समय लगे। युवक-सा जीवट, संतों का चिंतन एवं सादगी का मिश्रण देखकर सहसा हमें कहना पड़ता है कि नाहटाजी का व्यक्तित्व किसी संस्थासे कम नहीं।
सन् १९५६ में नाहटाजीसे प्रथम परिचय हुआ था। तदनन्तर तो क्रमशः आपसे सम्पर्क बढ़ता ही गया और ज्ञात हआ किसादगी इनका स्वभाव है, कोई दिखावटी बात नहीं। बीकानेरी पगड़ी, ऊँची धोती, साधारण कमीज और चश्मेके मध्य इनका व्यक्तित्व कुल मिलाकर स्थानीय व्यापारी जैसा ही प्रतीत होता ह परतु वातीलाप और सम्पर्क द्वारा ज्ञानके अथाह समुद्रसे प्राप्त अनुभव रूपी मणियां हम प्राप्त होती हैं। सैंकड़ों पत्र-पत्रिकाओंमें प्रकाशित हए आपके लेखों का अम्बार अनेक पुस्तकोंमें संग्रहीत किया जा सकता है। आप अहंकारसे कोसों दूर हैं। कोई भी समस्या हो, संदर्भ ग्रंथोंके बारेमें आपसे पूछिए और देखिए कि असंख्य पृष्ठ खुल रहे हैं आपके लिए। जो व्यक्ति किसी को बाह्य वेश भूषासे देखते-नापते हों उनको अपनी धारणा बदलनी होगी इस सादगी की प्रतिमूर्ति को देख कर ।
नाहटाजीके सम्पर्क में आने पर कोई व्यक्ति शिथिल नहीं रह सकता । यदि किसीमें साहित्य-सृजनके लक्षण दृष्टिगोचर हुए तो नाहटाजी उसे समय-समय पर तीक्ष्ण करनेके लिए प्रेरणा देंगे।
आर्थिक कठिनाईमें फसे छात्रों को आंशिक कार्य देकर आप सहायता देते हैं और साथ ही कठोर परिश्रम की प्रेरणा। जब कोई कहता है कि-'समय नहीं मिलता' तो नाहटाजी पूरा समय विश्लेषण कर स्पष्ट कर देते हैं कि समय नहीं मिलना एक बहाना मात्र है, वास्तविकता नहीं ।
संक्षेपमें कहा जा सकता है कि आपका विराट् व्यक्तित्व पूरी एक संस्था है । ७०-८० हजार ग्रन्थों के निजी संग्रहमें जाकर अभीष्ट विषय की पुस्तकके बारेमें पूछिए तो रजिस्टर व सूचियों का सिर दर्द दूर । जैसे सारे रजिस्टर इन्हें कंठस्थ हैं। कैसी विचक्षण स्मरण शक्ति है ! ईश्वरसे प्रार्थना है कि आप शतायु हों।
२६८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org