SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंगीठी तप रहे थे । दासीने कहा-सेठां घड़ो उतरावो ! सेठ साहबने नौकरसे घड़ा उतारनेका कहा तो दासी खाली घड़ेको चौकीमें पटक कर घरमें चली गई। बादमें जब सेठ साहबने दासीको खाली घड़ा लानेका कारण पूछा तो उसने कहा-आपका यहाँ कोई कुँआ खुदवाया हुआ नहीं है, तब मुझे ताना सुनना पड़ा ! और इसीलिए मैं खाली घड़ा लिए लौट आई ! सेठ साह बने सारा वृतान्त ज्ञातकर, जब तक उस गाँवमें अपना कूप खुदकर तैयार न हो जाय, तब तक उस गाँवका पानी न पीनेकी प्रतिज्ञा कर ली और अपने चपरासी जलालसाहको शीघ्रातिशीघ्र आ खुदवानेकी आज्ञा देकर कूप-खनन प्रारंभ करवा दिया। अब दूसरे गाँवोंसे ऊँटों पर मीठा पानी लाया जाता और प्रणपालक सेठ केवल उसीसे पिपासा शान्त करते थे। संकल्पकी स्थिरतामें सिद्धिका निवास रहता है, सेठांका कूप अविलम्ब तैयार हो गया। धूमधामसे कुप-प्रतिष्ठा हुई और जलालसर ग्राममें स्वनिर्मित कूपको जनसाधारणके लिए उन्मुक्त करके अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की। सेठ साहबका मन जलालसरसे उखड़ा हुआ था । बीकानेर तहसीलमें जलालसरसे अनति दूर दक्षिणमें एक गाँव है; जिसे डांडसर कहते हैं। यह चारणोंका ग्राम था। यहाँके चारण वीर योद्धा और परम देवीभक्त रहे हैं । उनके पवित्र आचरण और सौहार्द भावने गाँवके जन-मानसको भी प्रभावित किया । जैसा राजा होता है; प्रजा भी वैसी ही बन जाती है-'यथा राजा तथा प्रजा' । गुणग्राहकता धर्मकथा श्रवण और परोपकार वत्ति इन लोगोंका आनवंशिक गुण रहा है। माताजी श्रीकरणीजी पर इनकी अनन्र आस्था है । इनका विश्वास है कि करणीजीके समान कोई देवता नहीं हैकरणी समो न देवता, गीता समो न पाठ । मोती समो न ऊजलो, चन्दण समो न काठ॥ जलालसर गाँव छोड़नेकी श्री ताराचन्दजी नाहटाकी इच्छाको जानकर डांडूसरके तत्कालीन ठाकुर साहब सेठजीके पास पहुँचे और उन्हें स्थायी रूपसे डांडसरमें ही बस जाने के लिए आग्रह व श्री ताराचन्दजीने अयाचितको अमत जानकर ठाकूर साहबके प्रस्तावको सहर्ष स्वीकार किया और सदलबल डाडसर ग्राममें रहने लगे। इस गाँव में ओसवाल जातिके लगभग बीस घर पहलेसे ही थे। श्री ताराचन्दजी जैसे सविख्यात धनी-मानी सेठको पाकर डांडूसर ग्राम अत्यन्त प्रसन्न हुआ। सज्जन और गणग्राहक ग्रामीणों में राचन्दजी बीकानेरको भलसे गये और बीकानेर का आना जाना समाप्त प्राय. हो गया। सेठ साहब डांसरसे प्रसन्न थे और डांडूसर सेठ साहब से । यहाँ तक कि आज तक भी डांसर नाहटा (सेठां) वाली प्रसिद्ध है। जामसर रेलवे स्टेशन पर धर्मशाला बनवायी, जहाँ गाँवसे बीकानेर आनेजाने वाले वहाँ ही ठहरते थे। कबीरने अपने छोटेसे दोहेमें संसारका बहुत बड़ा शाश्वत सत्य प्रस्तुत कर दिया है-'जो आते हैं; वे जाते हैं, चाहे राजा हों, रंक हों या फकीर हो।' लेकिन जाते समय सब एक ही तरहसे नहीं जातेपुण्यात्मा सिंहासनासीन होकर जाते हैं और पापात्मा निगडबद्ध स्थितिमें ।' कहनेकी आवश्यकता नहीं कि समय पाकर सेठ श्री ताराचन्दजी धवल कीत्तिके पावन विमान पर आसीन होकर इस संसारसे बिदा हए। उन्होंने नाहटा वंशको सुग्रामवास तो दिया ही; साथमें स्वाभिमान और सामाजिक-प्रतिष्ठा भी दी। परिवर्तिनि संसारे, मृतः को वा न जायते । स जातो येन जातेन, याति वंशः समुन्नतिम् ।। परिवर्तनशील इस संसारमें कौन नहीं मरता और कौन उत्पन्न नहीं होता ! उत्पन्न होना उसी प्राणीका सार्थक है; जिससे बंश उन्नत होता है। १. आये हैं सो जायँगे, राजा रंक फकीर, इक सिंहासन चढ़ि चले, इक बँधे जंजीर । ८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy