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स्रोत और सम्बन्ध डॉ० महेन्द्र सागर प्रचण्डिया
टसनास
मेले दशहरे तथा पर्व-पखवारे व्यक्तिसे व्यक्तिको मिलानेके प्रायः सहज साधन हुआ करते है । इसी प्रकार सावरमतीसे तटवर्ती ऐतिहासिक नगर अहमदाबाद में सन् १९५२में आयोजित एक साहित्यिक अनुष्ठानमें मुझे अनेक साहित्यिकोंसे साक्षात्कार हुआ था । मैं अहमदाबाद अपने आदरणीय मातुल श्रीमान् बा० कामताप्रसाद जैन (अलीगंज) के साथ गया था।
टखनोंकी ओर लपकती हुई सफेद धोती, बंदगलेका कोट तथा राजस्थानी धजका पीला ऊँची पागार का साफा धारण किये बधा शरीर भ० रणछोड़जीके रंगसे समता रखने वाला वर्ण, गौरवतापूर्ण काली मूंछे मझ जैसा नव सिखिया कलमका मजदूर पूछे, ये सज्जन हैं कौन? बाबू कामता प्रसाद जैन द्वारा मैं जान पाया कि चचित सज्जन राजस्थानी वाङ्मयके विश्वकोश तथा सरस्वती और लक्ष्मीदेवीके बेनजीर उपासक श्री मान पं० अगरचन्द नाहटा हैं। यद्यपि नाहटाजीसे मेरा यह पहला आत्मसाक्षात्कार था तथापि उनके नामसे मैं उस समयसे ही परिचित हूँ जब मैं पृथ्वीराजरासोकी प्रामाणिकता विषयक अध्ययन कर रहा था।
अहमदाबादमें मेरे प्रथम परिचयके पश्चात् उन्होंने मुझे शोध करनेके लिए उत्प्रेरित किया। गवेषणा की गम्भीरता लगन और हस्तलिखित ग्रन्थों की जानकारीमें बेजोड़ महापंडित अगरचन्दजी नाहटाके निर्देशनमें पी-एच०डी० उपाधिके लिये गवेषणा करनेकी भावना मेरे मनमें उत्पन्न हई और जब मैं के० एम० मुंशी हिन्दी विद्यापीठ, आगरा विश्वविद्यालय का संस्थागत अनुसंधित्सु बना तो संयोग से मुझे निर्देशन मिला श्रद्धय डा०सत्येन्द्रजी का । यह जानकर मुझे भारी प्रसम्नता हुई कि डाक्टर साहबका नाहटाजीसे अत्यन्त निकट का सम्बन्ध है।
मैं बीकानेर पहुँचा और नाहटाजीसे मिला । उन्होंने घर ही मुझे ठहराया बिल्कुल परिजनों की भाँति मेरे साथ आहार-व्यवहार ? अपने अभय पुस्तकालयके अतिरिक्त नगरके अन्य ग्रन्थभाण्डारोंमें अपने साथ ले जा कर मेरा मार्ग दर्शन करना, ग्रन्थोंकी प्राप्तिमें आगत कठिनाइयोंको अपने व्यक्तित्व तथा सुझ-बूझसे हल करवा देना तथा अपनी गंभीर जानकारीके बल बूतेपर हमारे निर्णयोंको पुष्ट करना वस्तुतः नाहटाजी की उदारता और विद्यादानका सजीव और अजीब उदाहरण है।।
नाहटाजीके यहाँ दूसरी बार मैं अपने आदरणीय बन्धु प्रो० श्रीकृष्णजी वार्ष्णेय, अध्यक्ष हिन्दी विभाग, श्री वार्ष्णेय कालिज अलीगढ़ के साथ शोध कार्यसे ही गया। सारी सुविधाएँ मान्य नाहटाजी द्वारा पुनः प्राप्त हुई और डॉ० वार्ष्णेयजीके मनपर श्री नाहटाजीकी माँ सरस्वतीकी सेवाओंका अच्छा प्रभाव पड़ा । और आज वे भी उनके प्रशंसक हो गये।
तीसरी बार मैं अपने प्रिय शिष्य श्री ब्रजेन्द्रपाल सिंह चौहानके साथ नाहटा निवासपर गया। श्री चौहान जैन कवि श्री भूधरदासपर शोध कार्य कर रहे थे। सदैवकी भांति इस बार भी नाहटाजीने हम लोगोंको सारस्वत सहायता प्रदानकर हमें आगे बढ़नेके लिए प्रोत्साहित किया। नाहटाजी समूचे राजस्थानमें बिखरे हस्तलिखित ग्रन्थोंके वस्तुतः साकार इन्साइक्लोपीडिया हैं ।
इसके अतिरिक्त नाहटाजीसे मेरा मिलना अनेक अहिंसा-सम्मेलनों तथा सभाओंमें हुआ, जहाँ वे मुझे एक ओजस्वी वक्ता, विचारक और समाज सेवीके रूपमें परिलक्षित हुए। मुझे स्मरण है कि श्री नाहटाजी जब मैं राजामण्डी, आगरामें रहता था, मेरे निवासपर पहुँचे । मेरी देवीजीसे मेरे विषयमें पड़तालकर जब वे
२६२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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