________________
नाटाजी के कृतित्वका यह प्रधान अंग है । इसके अतिरिक्त उन्होंने भाषा तथा साहित्य, जैन धर्म, पुरातत्त्व आदि के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान किया है। उनके द्वारा स्थापित 'अभय जैन ग्रंथालय' उनकी सुरुचि एवं उनके कर्तृत्वका उद्घोषक है। किसी प्रकारकी ख्यातिकी परवाह किये बिना नाहटाजी एकान्त भावसे हिन्दी की सेवा करते रहे हैं ।
अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास सम्बन्धी ज्ञानके आधार पर उन्होंने इतिहासकी भद्दी से भद्दी भूलोंकी ओर संकेत किया है। वे प्राचीन परम्परा के होते हुए भी चिर नवीन हैं । वे परम जिज्ञासु हैं और अपने से छोटों से भी सीखने में संकोच नहीं करते ।
प्रेरणा के स्रोत
हाजी ने स्वीकार किया है कि पुस्तकोंके विवरण लेनेकी पद्धतिमें जैन साहित्यके महारथी स्व० मोहनलाल देशाईसे उन्होंने प्रेरणा प्राप्त की । अन्यत्र वे लिखते हैं कि अनुभवी विद्वान्का सहयोग प्राप्त न होने पर हमने अपनी अत्यधिक साहित्य रुचि और अदम्य उत्साहसे प्रेरित होकर यथासाध्य सम्पादन किया ......... हम विद्वान् नहीं हैं, अभ्यासी हैं" 1
हाजी का विशेष झुकाव जैन साहित्यकी ओर रहा | वे स्वयं जैनी हैं किन्तु वे लिखते हैं कि ज्ञानसारजी के साहित्यसे हमारा सम्बन्ध विद्यार्थी कालसे है । हमने अपनी माँ के लिए पहले पाठ नकल किया और जब कृपाचन्द्रसूरि बीकानेर पधारे और चातुर्मास किया तो उनके सम्पर्कसे जैन तत्त्व ज्ञान और साहित्यकी ओर रुचि विकसित हुई ।
साहित्यान्वेषण के साथ-साथ उन्होंने अपना ध्यान कूड़े-कचरे में डाले जाने वाले प्राचीन साहित्यकी अमूल्य निधिकी ओर फेरा जो विनष्ट हो रहा था ।
ऐसे कर्मठ तपस्वी, साहित्यकार एवं प्राचीन साहित्यके उद्धारकको सेवामें शतशत अभिनन्दन एवं विनीत प्रणाम है ।
मधुर स्मृति प्रो० अखिलेश, एम० ए०
सन् १९५८ में एम० ए० परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त अनुसन्धान कार्य करने की और मेरी सहज प्रवृत्ति हुई और मैं अपने मनोनुकूल विषय चयन करने हेतु प्रयत्नशील हुआ। आगरे से स्व० बाबू गुलाबराय एम० ए० एवं आदरणीय डा० सत्येन्द्र जी (जयपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष ) के कुशल सम्पादन में 'साहित्य सन्देश' नियमित रूप से प्रकाशित होता था । उसमें 'अज्ञात कविपरिचय' नामक लेखमाला के लेखकके रूप में प्रायः आदरणीय श्री अगरचन्दजी नाहटाके लेख प्रकाशित होते थे । संयोगवश
१. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, भाग २, प्रस्तावना |
२. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह की भूमिका ।
३. ज्ञानसार ग्रंथावलीकी भूमिका । ४. वही ।
Jain Education International
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २५३
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org