SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाहटाजीने साहित्य-साधनाको अपने जीवनका मुख्य प्रयोजन मान लिया है। घरमें एकमात्र महिला अपनी पुत्र वधूके अकाल दिवंगत हो जानेपर भी चेहरेपर शिकन नहीं, साहित्य-साघनामें व्यतिरेक नहीं। यह साहित्य-जगत्का सबसे बड़ा कर्मयोगी है । इनकी काव्यरूपों एवं साहित्यके इतिहासके धुधले पृष्ठों पर जो महत्त्वपूर्ण खोज हुई है, उसपर हिन्दी साहित्यके अनेक विद्वान शोध कर रहे हैं। यही नहीं. सैकड़ों शोधछात्रोंका ये मार्ग-दर्शन कर रहे हैं, हजारों जिज्ञासुओंको आवश्यक सूचनाएँ एवं सामग्री प्रदान कर रहे हैं। ये ऐसे साहित्यिक दानी है कि इनके यहाँसे कोई खाली हाथ नहीं लौटता। अतः परमात्मासे मेरी प्रार्थना है कि इस विधावारिधि, इतिहासरत्न, सिद्धान्ताचार्य, शोध-मनीषीको उनके लिए नहीं, उनके परिवार वालोंके लिए नहीं, उनके नगरके लिए नहीं बल्कि पूरे साहित्य-जगत्के लिए उनके यशकी भाँति उनके पार्थिव शरीरको कालजयी बनावें। प्राचीन साहित्यके उद्धारक-नाहटाजी डॉ० शिवगोपाल मिश्र १९५६ ई० में नाहटाजी ने मेरे अनुरोधपर अपने लेखों और कृतियोंकी एक सूची प्रेषित की थी जिसमें उनके १००० से अधिक लेख १५० से भी अधिक हिन्दीकी पत्र-पत्रिकाओंमें प्रकाशित होनेकी सूची थी। मैं उन दिनों कुतुबनकी 'मृगावती' के सम्पादनका प्रयास कर रहा था और मुझे नाहटाजी के अमूल्य सहयोगकी आकांक्षा थी। सहस्राधिक लेखोंकी सूची देखकर मेरे मन में सहसा विचार उमड़ा कि आखिर नाहटाजी ने इतने लेख कैसे लिख लिये ? क्या उनके पास कोई विशेष योग्यता है या केवल ज्ञान-पिपासाके वशीभूत होकर वे ऐसा कर रहे हैं ? ज्यों-ज्यों मैं उनके सम्पर्क में आता गया त्यों-त्यों इनका समाधान होता गया। मैंने देखा कि प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंकी जानकारी रखने तथा लगातार नवीन ग्रन्थोंकी खोज करते रहने में उनकी विशेष रुचि है। यद्यपि वे पांचवीं कक्षा तक ही शिक्षा प्राप्त कर सके किन्तु उनकी ज्ञान-पिपासाने उन्हें लगातार नये-नये ग्रन्थों से परिचित होने, उनकी विषय-वस्तु को हृदयंगम करने तथा उस जानकारीको अनुसंधित्सुओंतक सहज भावसे सम्प्रेषित करने में ऐसा उन्मुख किया है कि पिछले ४० वर्षों से वे इसी कार्य में लगे रहे हैं। यदि हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोजका सही-सही मूल्यांकन किया गया तो इसमें संदेह नहीं कि उसमें नाहटाजी का स्थान सर्वोपरि होगा। उन्होंने हस्तलिपियोंको एकत्र करने. उन्हें पढने लिखकर पत्रिकाओंमें प्रकाशित करते रहने में जो तत्परता दिखाई है, वह विरले ही व्यक्तियोंके लिए सम्भव है। नाहटाजी का एक अन्य विशेष गुण रहा है दूसरों पर शीघ्र ही विश्वास करके उनके समक्ष अपनी ज्ञान राशिको उपयोगके लिए प्रस्तुत कर देना । यही कारण है कि उन्हें उन महान् कृतियोंके सम्पादनका श्रेय नहीं मिल पाया जिन्हें उन्होंने या तो पहले खोजा या खोजकर दूसरोंके उपयोगके लिए प्रस्तुत किया। २५२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy