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________________ साहित्य-निर्माण के क्षेत्र में नवयुवकोंके मार्ग में शूलोंको हटाकर फूल बिखेरते रहे हैं । 'वीर' के सम्पादक पं० परमेष्ठीदास जैनने उनके सम्बन्धमें ठीक ही लिखा है- 'नाहटाजीने शताधिक शोध छात्रोंका मार्ग-दर्शन किया और जीवन भर साहित्य सेवा में रत रहे । उनके द्वारा निष्काम भावसे की जाने वाली महती साहित्यसेवा सदैव स्मरणीय रहेगी ।' साहित्यका ऐसा कौन-सा अंधेरा कोना है जिसमें नाहटाजी ज्ञान दीप लेकर न पहुँचे हों । आपने सब कुछ किया है - संपादन, मौलिक ग्रन्थ-लेखन, सूचि - निर्माण, संग्रह या शोध छात्रों का मार्ग दर्शन । एक ही व्यक्ति पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनोंकी कृपा हो, ऐसा बहुत कम देखने में आता है । नाहटाजी के जीवन में लक्ष्मी और सरस्वती का अनोखा संगम दर्शनीय है । नाहाजी ने साहित्य - मन्दिरकी वेदीपर अगणित ग्रन्थ पुष्पों को चढ़ाकर जो सेवा की है, क्या साहित्यसंसार उसे कभी भूल सकेगा ? उनके नामके साथ विद्यावारिधि, इतिहासरत्न, सिद्धान्ताचार्य, शोधमनीषी जैसे विशेषण भी उनके महत्त्वपर प्रकाश डालने में असमर्थ हैं । स्वतन्त्रता आन्दोलन में जो स्थान गांधीजी का है, वही स्थान साहित्य के क्षेत्र में नाहटाजी का है । संसारके किसी भी देशमें, जब भारतके स्वतन्त्रता आन्दोलनकी चर्चा की जायगी, तो गांधीजीका नाम अवश्य स्मरण किया जायेगा । इसी प्रकार राजस्थानी और हिन्दी साहित्यका नाम जहाँ भी आयेगा, नाहटाजी का नाम श्रद्धासे लिया जायेगा । यदि ताजमहलका सम्पूर्ण निर्माण शाहजहाँ आलकंरिक शैली में करता, तो सम्भवतः ताजका इतना प्रभाव न होता । उसीकी सादगी में जो बात है वह आलकरिकतामें न रहती । इसी प्रकार जो बात 'नाहटा' शब्द में है वह विद्यावारिधि जैसे आलंकारिक शब्दों में कहाँ ? सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी नाहटाजी श्री उदयचन्द्र जैन श्रीमान् अगरचन्दजी नाहटा एक सुप्रसिद्ध लेखक, विचारक और मूर्धन्य विद्वान् हैं । जनवरी १९६३ में जैन सिद्धान्त भवन आराके हीरक जयन्ती महोत्सव के अवसरपर मुझे आपसे मिलनेका पहली बार सौभाग्य प्राप्त हुआ था । उक्त अवसरपर बिहार के तत्कालीन राजपाल श्री अनन्तशयनम् आयंगरके कर कमलों द्वारा आपको सिद्धान्ताचार्य की उपाधि से विभूषित किया गया था। इसके बाद दो तीन बार और भी आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मैं आपके व्यक्तित्व तथा विद्वत्तासे बहुत ही प्रभावित हूँ । नाहटाजी का जीवन हम लोगों के लिए अनुकरणीय है । आपसे अपरिचित व्यक्ति आपकी वेशभूषा देखकर यही कल्पना करेगा कि आप कोई बड़े सेठ हैं । आप धनकी दृष्टिसे बड़े सेठ चाहे न भी हों किन्तु अध्ययन और लेखनकी दृष्टिसे महान् पुरुष अवश्य हैं । आपने विधिवत् विशेष शिक्षा प्राप्त नहीं की है और न डिग्रियोंका संग्रह किया है । परन्तु आपने अपनी लगन और अध्यवसाय से जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह अनुकरणीय और प्रशंसनीय है । आप व्यवसायके क्ष ेत्र में रहते हुए भी अपना अधिकांश समय साहित्य सेवा और ज्ञानार्जनमें लगा रहे हैं, यह एक गौरव की बात है । आप लेखन कलामें सिद्धहस्त हैं । कैसा भी विषय क्यों न हो, उसपर आपकी व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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