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________________ प्रयत्नोंका अनथक परिश्रम किया उनमें नाहटाजी का नाम सर्वोपरि है । आज तक लगभग एक लाख हस्तलिखित ग्रन्थ उनकी दृष्टिमें आए हैं । उनके अपने अभय जैन ग्रन्थालयमें जहाँ ४० हजार मुद्रित ग्रन्थ व पुस्तकें हैं वहाँ ४० हजार हस्तलिखित प्रतियाँ भी । देशके किसी कोने में उन्हें ऐसे भंडारकी या ग्रन्थकी सूचना मिलनी चाहिए, वे जेबसे खर्चकर अनेक कष्ट सहकर भी वायुगतिसे वहाँ पहंचेंगे और पूरा पता करेंगे। उनका अपना संग्रहालय केवल पुस्तकों शास्त्रों तक ही सीमित नहीं, अपितु उसमें अनेक कला मूर्तियाँ चित्र पुराने सिक्के व मर्तियाँ आदि भी समाविष्ट हैं। उनका परिवार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए हजारों रुपये प्रति वर्ष खर्च करता है। आजतक नाहटाजी के लगभग तीन सौ पत्र-पत्रिकाओंमें तीन हजारसे भी ऊपर लेख प्रकाशित हो चुके हैं । प्रकाशित ग्रन्थोंकी संख्या भी तीस से ऊपर है। अनेक पुस्तकोंकी आपने विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावनाएँ लिखी हैं । वे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश हिन्दी गुजराती राजस्थानी भाषाओंमें प्रवीण हैं। जैन समाजकी बहत सी संस्थाओंके वे पदाधिकारी और कर्मठ सदस्य हैं । अनेक शोध पत्र-पत्रिकाओंके सम्पादक मण्डलमें उनका नाम है। उन्होंने कोई परीक्षा नहीं दी किन्तु उनके प्रकाण्ड पाण्डित्य साहित्य सेवासे प्रभावित हो कुछ विश्वविद्यालयोंने उन्हें पी-एच. डी. के छात्रोंका निर्देशक स्वीकृत किया है। उनके भाषणोंके एक-एक शब्दसे गहन विद्वत्ता प्रकट होती है। उनके साहित्य सेवा परायण जीवन तथा अनुपम विद्यानुरागसे प्रभावित हो समाज एवं साहित्यिक जगत् भिन्न-भिन्न अवसरोपर उन्हें इतिहास रत्न सिद्धान्ताचार्य तथा विद्यावारिधि आदि पदवियोंसे विभूषित कर चुका है। गत मार्चमें बम्बईमें श्री मानतुङ्ग सूरि सारस्वत समारोहमें जिन आठ विद्वानों, समाज-सेवियों व शिक्षा-शास्त्रियोंका सम्मान हआ, उनमें नाहटाजी विशेष रूपेण उल्लेखनीय हैं। साहित्य सेवाके इस महारथीका कोटिशः हार्दिक अभिनन्दन एवं दीर्घायुके लिए अन्तः प्रार्थना । साहित्य उपवन का एक माली डॉ० पवन कुमार जैन, एम. ए., पी-एच. डी. यह लिखते हुए मुझे लेशमात्र भी संकोच नहीं हो रहा है कि नाहटाजोसे मेरा प्रत्यक्ष परिचय अधिक पुराना नहीं है । मुझे उनके दर्शनका सौभाग्य कभी प्राप्त नहीं हुआ। मैंने उन्हें कभी निकट से देखा नहीं । कभी बात नहीं की किन्तु पुस्तकालयोंमें, उनके ग्रन्थोंमें. उनसे अनेकों बार मिल चुका हूँ। दि० २६-९-७१ को उनके अभिनन्दन समारोहके विषयका पत्र प्राप्त हुआ था। उस पत्र पर नाहटाजीका चित्र छपा था। मैंने तो उनका एक काल्पनिक चित्र बना रखा था। किन्तु यह चित्र उससे विपरीत था-राजस्थानी पगड़ी, आँखों पर चश्मा, होटों पर भरी हुई मूछोंमें उनका व्यक्तित्व, इस प्रकार झलक रहा था, जैसे पके अंगूरोंमें उनका रस । बहुत देर तक टकटकी लगाये उनका चित्र देखता रहा । मैं सोचने लगा, क्या यही वह व्यक्ति है जिसने १९६८ में जब मैं पी-एच. डी० उपाधिके लिए शोध प्रबन्ध लिख रहा था, मुझे 'सलोकों काव्यों की सूची भेज कर मेरा मार्गदर्शन किया था। क्षेत्रमें इतना उदार और सहृदय व्यक्ति मेरे जीवनमें दूसरा नहीं आया। हिन्दीके मठाधीश जहाँ नवयुवकों को उपेक्षा की दृष्टिसे देखते हैं, दिशा ज्ञानके स्थान पर भटकाव उत्पन्न करते हैं, वहाँ नाहटाजी शोध एवं २४६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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