________________
लेखनी निधिगतिसे चलती है और उस विषयका प्रतिपादन इतनी अच्छी तरहसे कर दिया जाता है कि साधारण व्यक्ति भी उसे सरलतासे हृदयंगम कर लेता है। आपकी लेखनीसे कोई भी विषय अछता नहीं बचा है। जैन पत्रोंमें ही नहीं किन्तु प्रायः समस्त भारतीय प्रमुख पत्र पत्रिकाओंमें आपके विद्वत्तापूर्ण और खोजपूर्ण लेख सदा ही प्रकाशित होते रहते हैं। इतने अधिक लेख शायद ही किसी दूसरे विद्वान्के प्रकाशित हुए हों। यदि आपके लेखोंका संग्रह किया जाय तो उसे कई भागोंमें प्रकाशित किया जा सकता है। आप सदा ही साहित्य तथा समाजकी सेवामें संलग्न रहते हैं। आप विशेष रूपसे जैन साहित्य की और उसमें भी राजस्थानी जैनसाहित्यकी विशेष सेवा कर रहे हैं। आपने साहित्य सेवाकी दृष्टिसे एक पुस्तकालयकी भी स्थापना की है जिसमें प्रकाशित तथा अप्रकाशित ग्रन्थोंका बड़ा भारी संग्रह है। आपका दृष्टिकोण उदार तथा व्यापक है । आपके हृदयमें साम्प्रदायिकताके लिये कोई स्थान नहीं है।
ऐसे महान विद्वान्का अभिनन्दन बहुत पहले ही किया जाना चाहिए था । यह हर्षका विषय है कि कुछ लोगों का ध्यान इम ओर गया है और अब आदरणीय नाहटाजीका अभिनन्दन किया जा रहा है। इस अवसरपर नहटाजीको अभिनन्दन ग्रन्थका भेंट किया जाना एक महत्त्वपूर्ण बात है। मैं भी इस शुभ वेलामें नाहटाजीका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और कामना करता है कि आप चिराय होकर इसी प्रकार साहित्य तथा समाज की सेवा चिरकाल तक करते रहें ।
साहित्यकी साकार मूर्ति
श्री विमल कुमार जैन सोरया विद्यावारिधि श्री अगरचन्द्रजी नाहटा इस युगायुगप्रधान साहित्यकार, उच्चकोटि के लेखक, सफल आलोचक और समीक्षक एवं प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् हैं । मुझे अपने स्नातकोत्तर विद्यार्थी जीवनमें श्री नाहटाजीके साहित्यको गम्भीरता से पढ़नेका सौभाग्य मिला । तभीसे क्रीनाहटाजीके साहित्यसे अपरिमित आकर्षण बढ़ा।
मैं अपने स्वर्गीय पिता श्री गुलजारी लालजी सोंरयाके संग्रहणीय पुस्तकालयमें आजसे ३०-४० वर्ष पुरानी अनेक प्रकार की पत्र-पत्रिकाओंकी फाइलें उलटता हूँ तो पाता हूँ कि प्रायः कोई ही ऐसी अभागी फाइल होगी जिसमें श्री नाहटाजीकी लेखनीका प्रेरणादायी शोधात्मक निबन्ध लिखा गया हो। जहाँ तक मैंने पाया श्री नाहटाजीने प्रत्येक विषय पर अपनी सशक्त लेखनी चलाई है।
श्री नाहटाजीने अपने इतनेसे जीवनमें अनन्त साहित्य धारा बहाकर अनेकों विद्वानोंको दिशादष्टि दी है। हजारों शोधार्थी इनके साहित्यसे अनुप्राणित हुए हैं । ऐसे साहित्य-महारथीके सम्मान में प्रकाशित हो रहे अभिनन्दन ग्रंथके लिये मेरी अनेक शुभ कामनाएं हैं।
२४८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |