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________________ 'विश्व कोशमें अमर रहेगा अगरचन्दका नाम' जैसी कमनीय कीत्ति के भाजन है। राजस्थानीके प्रौढ़कवि श्री उदयराज उज्ज्वलने आपको मातृभाषाके सम्मानका आश्रय बताया है। इस प्रकार श्री अगरचन्द नाहटा जंगम-तीर्थ ऋषि-मुनियोंकी अहैतुकी कृपाके भाजन हैं ; ज्ञानराशिरस प्रमुदित पण्डित-मण्डलीके प्रमाण-पुरुष हैं; रसैकप्राण कवियोंकी भावधाराके अजस्र आलम्बन है। आप अनेक संस्थाओंके संचालक-निदेशक है। आपने अपने अगाध ज्ञान-प्रकाशसे अभिभाषकके रूपमें शतशः कृत्वा 'ज्योतिर्गमय' को साकारता प्रदान की है । आपकी ज्ञान-पिपासाने अनेक पुस्तक-कला-रत्नाकरोंको रूपायित किया है। आप शतशः अनुसंधित्सुओंके समर्थ संबल रहे है । इतिहासरत्न, सिद्धान्ताचार्य, विद्यावारिधि, राजस्थानी साहित्य वाचस्पति, जैनसंघरत्न, जैसी अतीव सम्मानजनक उपाधियोंसे विभूषित किए गए है। श्री नाहटाजी अपने आपमें परम-सारस्वत और विश्वकोष हैं । ऐसे उत्तम श्लोक श्री अगरचन्द जी नाहटाके दिव्य व्यक्तित्व एवं व्यापक कृतित्वके विषयमें अधिकाधिक जानने के लिए कौन सुधी समुत्सुक नहीं होगा। निवृत्ततरुपगीयमानात् भवौषधात् श्रोत्रमनोऽभिरामात् । क उत्तमश्लोक गुणानुवादात्, पुमान् विरज्येत विना पशघ्नात् ।।३ अर्थात्-सतत सन्तुष्ट विवेकशीलोंसे उपगीयमान, भवौषधिभून, मन और श्रोत्रेन्द्रियोंके लिए अभिराम, उत्तमश्लोक पुरुषोंके गुणानुवादसे पशुघ्न नराधमको छोड़कर और कौन विज्ञ नर विमुख होगा ! वे पुत्र धन्य है, जो अपने गण-प्रकर्षसे अपनी माताकी गोदको श्लाघ्य चरितार्थ कर देते हैं। तुलसीके कारण हलसीकी गोद और महाराणा प्रतापके कारण उनकी वन्दनीया जननीकी कुक्षि सुन्दर भावोंका आलम्बन बन सकी थी।" हमारे चरित-नायककी सतत सरस्वती समुपासना, संकल्प स्थिरता और प्रतिकूल परिस्थितियोंसे जूझनेके सफल उत्साहसे प्रेरित एक कविने माता चुन्नीबाई नाहटाकी कुक्षिकी किस प्रकार सराहना की है, अवलोकनीय है धन्य धन्य चुन्नी बाई, जिसने सुत जाया अगरचन्द । है नाहटा, ना हटा, सत्पथ से, गिर गये विषम विकराल बन्ध ।। पुण्य-भूमि भारतके स्वर्णिम इतिहासमें जो गौरव-मंडित स्थान वीर भूमि राजस्थानको प्राप्त है, वही स्थान राजस्थानकी गाथाओंमें सैकतावृतधरा बीकानेरको उपलब्ध है। यह स्थल प्रकृतिका लीला-स्थल है। 'सांवण बीकानेर' तो एक सर्वविदित उक्ति है। आकाशमें सघन घुमड़ते जलधर, उनमें सवीडा क्रीडारत सौदामिनीका लास्य, धरापर अंकुरित हरित शस्याबलि, इतस्ततः धरास्थित वीरवधूटी, रजत आभूषणोपम वर्षाजल, मन्द मदिर गतिसे थिरकने वाला हृद्य समीरण, सुदूर वन प्रान्तरमें वृक्षकी उच्च शाखासे उपांतमें प्रतिध्वनित मदिर केका, ग्राम सीमान्तमें सायंकाल प्रविष्ट पशुधनकी क्वणित-रणित घंटियों और कृपक-पुत्रके हृदयोल्लाससे अनायासोद्भुत 'तेजा' का स्वर-निनाद कितना आह्लादक है, कितना मादक है और कितना १. 'विश्व कोषमें अमर रहेगा, अगरचन्दका नाम' । २. बीकाणे बिदवान, अकट कीधा ईसवर, मातर भासा मांन, इसां सपूतां आसरै। ३ श्रीमद्भागवत दशम स्कन्ध पूर्वार्ध अध्याय १ श्लोक ३ । ४. सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहति अस होय । गोद लिए हलसी फिरें, तुलसी सो सुत होय । रहीम । ५. माई एहड़ा पूत जण, जैड़ा राण प्रताप; अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणे साप । ६. आचार्य चन्द्रमौलि, 'नाहटा प्रशस्तिका'। ५. निहसे वूठउ घण, विण नीलाणी, वसुधा थलि थलि जल वसइ प्रथम समागमि वसत्र पदमणी, लोधइ किरि ग्रहणा लसइं; क्रिसन-रुकमणी-री वेलि पद संख्या १९४ । ८. मारू देस सुहामणउ, साँवणि साँझी वार', 'ढोला मारूरा दूहा संख्या २५१' । ४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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