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आकर्षक है । मारूदेशका उक्त सौन्दर्य अपना द्वितीय नहीं रखता, जब बाजरियाँ हरी हो जाती हैं, उनके मध्यमें बेलोंमें फूल लग जाते हैं और सारा भाद्रपद मास बरसता रहता है।
यहाँ वर्षाऋतु जितनी आह्लादक है; सर्दी और ग्रीष्म भी उतनी ही सुखकर हैं । शीतका आरम्भ इसलिए मथर है कि काचर-बोर और मतीरोंको वह मीठा कर देता है
दीयाली रा दीया दीठां, काचर बोर मतीरा मीठा । ग्रीष्मका दिन अत्यन्त गर्म होता है लेकिन उसका सुखान्त-रात्रिपक्ष इतना मादक और शीतल होता है कि नींद अमृत-घूटके समान मधुर लगती है ।
ऊनाले में तप तावड़ो, लू आंरा लपका। रातड़ली इमरत बरसावै, नीदां रा गुटका ।।
बीकानेरके सुखद ऋतुपरिवर्तन और भौगोलिक परिवेशने स्थानीय जनजीवनको अत्यन्त उत्साही और स्पृहणीय बना दिया है । यहाँका जल आरोग्यप्रद और मानव मधुरभाषी होते है
'देस सुहावउ, जल सजल, मीठा बोला लोइ' बीकानेरीय भूखण्डका एक दूसरा पक्ष भी है, जो प्रत्यक्षमें आह्लादक न होते हुए भी गुणसर्जक अवश्य है । वर्षाके अभावमें यहाँ कई बार अकालकी स्थिति बन जाती है। कभी-कभी टिड्डीदल कृषककी आशाओंपर तुषारापात कर देता है; जंगल विषैले साँपोंसे भरा रहता है; सघन वृक्ष और शीतल सुखद छाया तो मिलती ही नहीं। लोग भुरट खाते हैं, भेड़ बकरियोंका दूध पीते हैं और ऊनी वस्त्र पहनते हैं। निस्सन्देह ऐसे कष्टकर भूखंडमें कठोरतासे जीवन जीनेवाली जाति स्वभावसे ही साहस-सहिष्णुता और वीरता-दृढ़ताकी धनी होगी । हमारे चरितनायकश्री अगरचन्द नाहटामें अगर ये गुण उभरे है तो इन्हे 'स्वर्गादपि गरीयसी' बीकानेरीवसुन्धराका वरदान ही समझना चाहिए।
मरुधराके राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक और नैतिक निर्माणमें ओसवाल जातिका बहुत बड़ा हाथ रहा है। नाहटा. वैद, बछावत. कोठारी. कोचर. सुराणा, खजांची. राखेचा. मेहता प्रभृति परिवारोंने जनता और जनपतियोंकी तन, मन, धनसे श्लाघ्य सेवा की है। बुद्धि और वैभवके धनी इन लोगोंने साम, दाम, दण्ड और भेद नीति द्वारा समय-समयपर आनेवाली विपत्तियोंसे जनता-जनार्दनकी केवल रक्षा ही नहीं, अपितु उसके सुख-सौभाग्यके संवर्द्धन हेतु प्राण पणसे प्रयत्न भी किये हैं। उन्होंने सन्धिविग्राहक. रक्षा-सचिव और सेनापति तथा दीवान जैसे पदोपर साधुवादाह कर्तव्यपालन किया है। ये अहिंसाके पजारी, धर्म और धरतीकी रक्षा हेतु खङ्गपाणि होकर समरांगणमें जूझते रहे हैं। ये आन-बान और शानके पक्के गिने जाते हैं और युद्ध में इनके बढ़ते चरण कट सकते थे लेकिन वे मुड़ नहीं सकते थे। हमारे चरित-नायकके पूर्वजोंके लिए यह निर्विवाद स्वीकृत ख्याति है कि वे जिस विषम परिस्थितिमें ज करते थे. वहाँ अडिगरूप बन जाते थे। शत्रुका दशगुणित बल, उनके उत्साह, शौर्यसम्पन्न व्यक्तित्वको 'भीरु' नहीं बना सकता था। युद्धकर्ममें रत उन पुण्य स्मरणीय पूर्वजोंको स्थानविचलित करना थी: वे अपने में अचला नगाधिराजका गुरुतर भार समाहित कर मानों रण-सरोवरमें अवगाहनार्थ उतरते थे और स्वस्थानसे हटने का नाम तक नहीं जानते थे। इसीलिए वे 'नाहटा' नामसे प्रसिद्ध हए । १. बारियां हरियालियाँ, बिचि बिचि बेलां फूल । जउ भरि बूठउ भाद्रवउ, मारू देस अमूल ॥'
-ढोला मारू रा दूहा संख्या २५० ।
जीवन परिचय : ५
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