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________________ स्रोत है । विश्वविद्यालयकी उच्चातिउच्च डिग्रियें प्राप्त करे या न करे यदि कोई व्यक्ति साहित्य कला अथवा विज्ञानके क्षेत्रमें विशिष्ट कार्य करनेको अभिरुचि विकसित करके निष्ठापूर्वक अपने आदर्श पूर्तिकी ओर अग्रसर हो तो बहुत बड़े-बड़े कार्य करके वह अपने जीवनकी सार्थकताके साथ-साथ राष्ट्रीय संस्कृति और सभ्यताके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता हुआ देशकी सुख समृद्धि बढ़ाने में सहायक हो सकता है। श्री नाहटाजीने अनवरत साधना द्वारा अपनी प्रकृत प्रतिभाको विकसित करके राजस्थानी साहित्य और कलाके क्षेत्रमें जो अभूतपूर्व कार्य किया है, वह मानव जीवनकी सार्थकताका ज्वलन्त उदाहरण है । आशा है उनके सान्निध्यमें रहकर कार्यरत अनेकों युवा पीडोके कला प्रेमीजन उनके पद चिह्नोंपर चलते हए उनके कार्यको उत्तरोत्तर आगे बढ़ाने में समर्थ होंगे। ज्ञान तपस्वी नाहटाजी सुश्री जया जैन, एम० ए० भारत विचित्र देश है। एक ओर मरुभूमिकी चमकीली रेत अपनी अनोखी आभासे हमारा ध्यान आकृष्ट करती है तो दूसरी ओर अथाह जलराशि हमारे नेत्रोंको तृप्त करती है। राजस्थानकी पावन भूमिमें जौहरकी ज्वालामें जलनेवाले सूरमाओंकी कमी नहीं तो दूसरी ओर हरिभद्र, चन्दवरदायी जैसे प्रतिभा सम्पन्न लेखकोंकी भी कमी नहीं। अगरचन्द नाहटा इसी राजस्थानके ऐसे सारस्वत हैं, जिन्होंने हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओंके लेखकोंमें अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया है। नाहटाजी का व्यक्तित्व ऐसा अधीती व्यक्तित्व है, जिसके समक्ष बड़े-बड़े उपाधिकारो फीके पड़ जाते हैं । किसीके व्यक्तित्वका अध्ययन उसकी प्रवृत्तियोंके अध्ययन से ही किया जा सकता है। नाहटाजी की प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही स्वाध्यायकी ओर रही है। इस शताब्दीके मूर्धन्य लेखकों और चिन्तकोंमें नाहटाजी का गणनीय स्थान है। उनकी प्रतिभा विलक्षण है। साथ ही उनका श्रुतज्ञान भी अनन्त है। प्रतिभा दो प्रकार की होती है । प्रथम तो वह प्रतिभा है जो जीवनकी संगत और उत्फुल्ल परिस्थितियोंमें अपने विकासका मार्गके कंकड़-पत्थरोंको हटाकर अनुकूल वातावरणका सृजन करती हुई चरम सीमा पर पहुंचनेका प्रयास करती है। इसमें इतनी समता होती है कि जीवनकी बाधाएँ मार्ग अवरुद्ध नहीं कर पातीं। द्वितीय प्रतिभा इस प्रतिभासे सर्वथा भिन्न होती है। वह जीवनकी असंगत और संघर्षशील परिस्थितियोंमें ही अपने विकासका मार्ग खोजती है। यह प्रतिभा संघर्षके साथ खेलती हुई आगे बढ़ती है। श्री नाहटाजी में यह दूसरे प्रकारकी प्रतिभा है, जो प्रतिकूल परिस्थितियोंमें अपने विकासका मार्ग तैयार करती हैं। नाहटाजी स्वनिर्मित साहित्य तपस्वी हैं। साधनाही इनके जीवनका लक्ष्य है और यही साधना इन्हें आगे बढ़ने के लिए निरन्तर प्रेरणा देती है। उनके शताधिक ग्रन्थ और सहस्राधिक निबन्ध प्रत्येक शोधा के लिए उपयोगी एवं मार्गदर्शक हैं। उनका विशाल ग्रन्थागार तथा उस ग्रन्थागारकी सहस्रों पांडुलिपियाँ हिन्दी अध्येताओंके लिए आकर्षणका केन्द्र हैं। आज बीकानेर नाहटाजी के कारण ही तीर्थभूमि है । अभय जैन पुस्तकालयमें नाहटाजी की जीवन प्रतिमा शोधस्थितियोंके मन और आत्माको पवित्र बनाने में अग्रसर रहती है। दूर-दूरके अध्येता भी उनके २२४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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