________________
इन्होंने अपने जीवनका अधिकतर समय किस क्षेत्रमें लगाया ? 'प्रत्यक्षको क्या प्रमाण ? सादगी, सरलता, नम्रता आदि अनेक गुण इनके जीवनमें एक साथ उभरे हैं, जिनके कारण स्वतः ही मन इनकी ओर आकर्षित हो जाता है ।
जीवन के क्षणोंका सदुपयोग करनेके लिए अनेक मानवीय गुणोंके विकास में इनमें स्पष्ट परिलक्षित मानवको आकर्षित करता है । इन सब गुर्णीके अतिरिक्त एक विशिष्ट गुण इनके जीवनमें और है, जिसका महत्त्व इन सब गुणोंसे भी कहीं अधिक है । वह है आत्मिक साधनाकी वृत्ति । इसका अनुभव उन्हीं व्यक्तियोंको होगा, जिन्होंने इनके जीवनको निकट से देखा है । अनेक प्रवृत्तियोंमें प्रवृत्त रहते हुए भी हर समय आप इन भावों में रमण करते रहते हैं कि मैं आत्मद्रव्य हूँ, अमूर्त हूँ, अखंड हूँ एवं शाश्वत रहनेवाला हूं । संयोगवियोग आदि नाना अवस्थाओंका जो अनुभव होता है, यह स्वभावगत नहीं, संसर्गके कारण है । जब तक चेतन जड़के संसर्गमें है तब तक संसार परिभ्रमण है । जब यह जडसे पृथक् होनेकी आत्मसाघनामें पूर्णरूपेण लग जायेगा, उसी क्षण आत्मा 'स्व' रूपमें लीन हो जायेगी । श्री नाहटाजी आत्म-उत्थान के लिए अंतरंग साधना करनेमें सुषुप्त नहीं, वरन् जागृत हैं । प्रातःकाल तीन-चार घंटेका समय ये चिंतन, मनन व स्वाध्याय में ही व्यतीत करते हैं । इस कार्य में कभी-कभी तो आप इतने लीन हो जाते हैं कि इन्हें यह ध्यान ही नहीं रहता कि कब तीन-चार घंटे व्यतीत हो गये ।
इस प्रकार श्री नाहटाजीके जीवनगत गुणों का अवलोकन करते हुए हम यह निश्चित रूपसे कह सकते हैं कि आप जैन समाजके एक विशिष्ट व्यक्ति हैं । व्यावहारिक धार्मिक उपासना पद्धति में खरतरगच्छ संघ में आपका विशेष स्थान है ।
आपकी प्रतिभाका लाभ जैन समाज ही नहीं, अपितु समस्त साहित्य जगत् उठा रहा है, जिससे विद्वत् वर्ग परिचित है ।
हमारी शुभ कामना है कि आप दीर्घकाल तक साहित्य सेवा, शासनसेवा एवं आत्मसाधनामें संलग्न रहकर जीवन के क्षणोंका सदुपयोग करते रहें ।
राजस्थानकी साहित्यिक विभूति
डा० स्वर्णलता अग्रवाल
विश्वविख्यात कवि गोस्वामी तुलसीदासने न किसी विश्व विद्यालय में अध्ययन किया, न परीक्षायें पास कीं, वह अपनी प्रतिभा एवं आन्तरिक स्फुरणाके बलसे हिंदी जगत्को अनुपम विभूति बन गये । उनका रामचरितमानस सैकड़ों वर्ष पुराना होकर भी आज तक भारतीय इतिहासमें अपना अनुपम स्थान बनाए हुए है । न केवल रामचरितमानस बल्कि गोस्वामीजीकी अन्य रचनायें भी भाव एवं कला दोनों ही दृष्टियोंसे अद्वितीय हैं - उनकी ये कृतियाँ साहित्यिक प्रतिभाके लिये प्रेरणाका स्रोत सिद्ध हुई हैं ।
इसी प्रकार बीकानेरकी मरुधरामें जन्म लेकर श्री अगरचन्द नाहटाने सुसंस्कृत उर्वर मानस प्राप्त किया और विरोधी सामाजिक व पारिवारिक परिस्थितियोंके कारण बिना तथाकथित शिक्षा प्राप्त किये ही जन्मजात प्रतिभा और कलाप्रेमके फलस्वरूप राजस्थानकी अनुपम साहित्यिक विभूति बन गये ।
२२२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org